हाय मैं शर्म से लाल हुई – नीलिमा सिंघल

रजनी के विवाह को 2 साल बीत गए थे ,ससुराल मे उसको सब बहुत प्यार करते थे।

एक दिन सोफ़े के कवर ठीक करते हुए हेमलता जी यानी रजनी की सासु माँ ने कहा, “बहु आज शाम मेरी किटी पार्टी है तो जरा नया टी सेट निकाल देना “

रजनी बोली, ” वही ना मम्मी जी, जो मैं अपने मायके से लायी थी “

2 सालों मे हेमलता जी रजनी की इस आदत से बखूबी जानकर हो गयी थी, इसीलिए चुप रही और अपना काम करती रही।

शाम को जब सारी सहेलियाँ आयी और चाय पीते हुए टी सेट की तारीफ करने लगी, “हेमलता बहुत अच्छे कप हैं डिजाइन भी बहुत प्यारा है, “

हेमलता जी कुछ बोल पाती उससे पहले ही आदत से मजबूर रजनी बोल उठी, ” हैं ना आंटी जी! मैं अपने मायके से लायी थी,”

हेमलता जी ने अपनी बहु को देखा पर कहा कुछ नहीं।

रविवार की शाम को राजीव ने अपनी पत्नि रजनी को बोला,”रजनी चाय बना लाओ साथ ही कुछ हल्का खाने को भी ले आना “

रजनी ने फटाफट चाय बनाई और एक प्लेट मे मठरी और लड्डू रखकर ले आयी।

राजीव ने लड्डू मठरी खाते ही कहा “वाकई रजनी ये तो बहुत स्वादिष्ट हैं “

रजनी जो कि कुछ दिन पहले ही मायके गयी थी और वहीं से लड्डू मठरी ले आयी थी, तपाक से बोली, “सच कह रहे हो ना,,मैं अपने मायके से लायी थी “




खाते खाते कुछ पल के लिए राजीव रुका फिर हसने लगा,

क्यूंकि हेमलता जी के साथ-साथ सोहनलाल और राजीव सभी रजनी की इस बात से वाकिफ हो चुके थे। ।

शुरू शुरू मे रजनी की ये बात सभी को बुरी लगती थी पर अब सबने इग्नोर करना शुरू कर दिया था, क्यूंकि रजनी सरल और सुशील थी कभी किसी से ऊंची आवाज मे बात नहीं करती थी, और घर का बाहर का सभी काम आसानी से कर देती थी, घर को सजा कर रखना और नए नए सामान से घर सजाना भी उसकी एक खूबी थी।

जब भी मायके जाती आराम करती, उसकी माँ रसोई मे भी नहीं आने देती थी इसीलिए मायके आकर रजनी काफी फ्री रहती थी, माँ पैसे दे दिया करती थी, जिससे वो मनचाही शॉपिंग करती थी और अपना घर सजाने को कुछ ना कुछ ले आती थी,,पर क्यूंकि पैसे माँ देती थी इसीलिए कहती रहती थी “मायके से लायी हूं “

एक दिन हेमलता जी ने कहा,”बहु, आज आरती (उसकी नन्द) और जमाई जी आ रहे हैं रुकेंगे भी नयी वाली चादर बिछा देना “

रजनी ने सारा कमरा सजा दिया और नयी चादर भी बिछा दी।

नियत समय पर आरती और राकेश जी आए, खा पीकर दोपहर को जब लेटने लगे तो आरती ने कहा ,”भाभी चादर तो बड़ी अच्छी बिछायी है डिजाइन भी अच्छा है “

रजनी बोली “हाँ दीदी, मैं अपने मायके से लायी हूं,

आरती और राकेश भी रजनी की आदत के बारे मे जानते थे,




पर इस बार राकेश को मज़ाक सूझा उसने रजनी की 2 महीने की परी को गोद मे उठाया और बोलने लगा ,” अरे वाह! गुड़िया तुम तो बड़ी प्यारी हो गयी हो, आंखे कितनी चमकदार लग रही हैं,,और नाक तो बिल्कुल पापा पर गयी है,,फूले फूले गाल देखो कितने अच्छे लग रहे हैं “

रसोई से आती रजनी बोली,” है ना जीजाजी! मैं अपने मायके से लायी हूं “

रजनी के इतना कहते ही सब जोर से हँस पड़े,,

,,हेमलता जी बोली,” नहीं रे बहु,,ये तुम मायके से नहीं लायी ये तो ससुराल की ही है “

रजनी को जब अपनी बात समझ आयी तो वो शर्म से लाल हो गयी,,

इसी बात का नतीज़ा निकला कि उसकी ये आदत ही बदल गयी।

इतिश्री

नीलिमा सिंघल

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