अरे ज़िज्जी ,ये क्या बहुरिया अभी तक सो रही हैँ ! कोई शर्म हया हैँ कि नहीं ! अभी ब्याह को छह महीने हुए हैँ ! अच्छा लगता हैँ ! घर में मेहमान आयें हैँ महारानी बिस्तर पर हैँ ! हमाई तो चार बजे से पांच मिनट भी लेट उठी तो इतनी खरी खोटी सुनाती हूँ कि चुपचाप रोती हुई काम में लग जाती हैँ ! सरला जी की छोटी बहन विमला जी मुंह बनाते हुए बोली !
सरला जी – अरे विमला ,इतवार हैँ ! छोटे (बेटे ) की छुट्टी हैँ ! बच्चों की भी छुट्टी हैँ ! रोज तो जल्दी उठती हैँ ! नेक सी उम्र हैँ बहू कि आते ही दो छोटे बच्चों की ज़िम्मेदारी मिल गयी उसे ! रूबी ( सरला जी की बीटिया ) की अकस्मात मौत ने सबको तोड़कर रख दिया था ! बेचारी बहू ने इतने अच्छे से संभाला हैँ बच्चों को ! इसके आगे पीछे घुमते हैँ ! मायके भी जाती हैँ तो ले जाती हैँ बच्चों को ! उसके बिना रह ही नहीं पाते ! आ दिखाऊँ तुझे ! दोनों बहनें चुपचाप बहू के कमरे के बाहर खड़ी हो गयी ! कमरा खुला था ! झांककर देखा तो पतले दुबले शरीर की सुन्दर सी बहूरानी एक बच्चें के सीने पर हाथ रखे ,दूसरे को बोतल से दूध पिला रही थी ! बेटा दूर पलंग पर सो रहा था !
अरे ज़िज्जी ,बहुरिया जाग रही हैँ तो बाहर कब आयी दूध लेने ??
सरला – विमला ,वो का कहते हैँ इंडक्शन ज़िसपे दूध गर्म हो जाता हैँ बिजली से ! उसे पास ही रखकर सोती हैँ ! ताकि गुडिया को जब भी भूख लगे उसे बिना रूलाये पिला दे ! पूरी रात जागती हैँ !
ज़िज्जी ,मोये माफ कर दियों ! तुमने ज़रूर कोई अच्छे कर्म किये होंगे जो इतनी समझदार बहू मिली ! विमला अन्दर गयी ! बहू एकदम से डर गयी !
डर मत रे ,मैं बस तुझे आशीर्वाद देने आयी हूँ ! बहू ने पैर छूये ! दूधो नहायो ,पूतो फलो बहुरिया !
अरे नहीं नहीं ,मौसी जी ! मेरे तो पहले से ही दो बच्चें हैँ ! बस इनकी लम्बी उम्र की दुआ दिजिये !
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किस मिट्टी की बनी हैँ रे तू ,सरला जी बोली ! सिस्कते हुए अपनी बहू को गले से लगा लिया ! तू मेरी रूबी बीटिया जैसी हैँ !
रखती है ख़्याल बेटे से बढ़कर उसे बहू कैसे कहूँ
मुस्कान में दिखे बेटी की झलक उसे बहू कैसे कहूँ
कभी ज़ोर की साँस ले लूँ तो वो उठ खड़ी होती है
जो थकती नहीं है माँ माँ कहते उसे बहू कैसे कहूँ!!
बेटा भी अपनी पत्नी के मुंह से ये शब्द सुन भावुक हो गया ! और ऐसी पत्नी मिलने पर खुद को धन्य मान रहा था !!
मीनाक्षी सिंह की कलम से
आगरा