अब मैं ना नहीं कहूँगी – रश्मि प्रकाश : Moral Stories in Hindi

बहुत दिनों से चल रहे शीत युद्ध का आज अंत हो गया जब   घर की मुखिया ने अपने पोते के पक्ष में फ़ैसला सुना दिया और जिसे सुनकर राधिका की ख़ुशियाँ थामे नहीं थम रही थी, आज उसकी सास ने बात ही ऐसी कह दी कि जो वो कभी सपने में भी नहीं सोच सकती थी ।

राधिका इतनी ख़ुश क्यों थी इसके लिए चलिए आपको थोड़ा पीछे ले चलते है…….

बहुत दिनों से घर में क्लेश चल रहा था ।

क्लेश भी दो अंतर वाली पीढ़ियों के बीच जिसमें बेचारी राधिका फँसी हुई थी ।

सारे जतन कर लिए थे राधिका ने दोनों को समझाने की कि दोनों में से कोई एक तो झुक जाए पर ख़ानदानी खून की गर्मी दोनों में बस उबल ही रही थी , कोई झुकने को तैयार ही नहीं हो रहा था ।

हार कर राधिका ने दोनों से बात करनी बंद कर दी और कह दिया,“ जो भी फ़ैसला होगा सबकी रज़ामंदी और ख़ुशी से ही होगा… किसी का दिल दुखा कर कोई खुश नहीं रह सकता इसलिए अब आप दोनों ही अपनी अपनी बात एक दूसरे को समझाएँ… मेरा इस मामले में चुप रहना ही बेहतर है ।

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बात बस इतनी सी थी कि राधिका के डॉक्टर बेटे रचित को अपनी पसंद की डॉक्टर गार्गी से शादी करनी थी और राधिका की सास का कहना था ,” घर में बहू घरेलू ही आए तो अच्छा है जो घर परिवार को ठीक से सँभाल सके.. बिलकुल मेरी राधिका बहू जैसी।”

इस बात को सुनकर रचित ने भी थोड़ा ग़ुस्सा दिखाते हुए कह दिया,”आपको तो अपनी बहू की अच्छाई के आगे कुछ दिखाई ही नहीं पड़ता है… मुझे भी पता है मेरी माँ कैसी है और उनके लिए बहू कैसी होनी चाहिए पर आप ना तो उससे मिलना चाहती हो ना मेरी बात सुनना चाहती हो…एक बार मिलने में हर्ज ही क्या है आपको…. बस मन में बिठा लिया है अपनी पसंद की अपनी बहू जैसी बहू।”

ये सब सुन कर भी दादी ना पिघली और फिर राधिका ने दादी पोते के बीच से खुद को बाहर कर लिया अब जो होगा परिवार की रज़ामंदी से ही हो जिसमें शायद किसी एक का दिल दुखेगा भी पर वो अपनी सास के खिलाफ जाकर बहू लाने के पक्ष में भी नहीं थी ।

अब बेटा अपनी ज़िद्द पर तो उसकी दादी अपनी ज़िद्द पर अड़ी हुई थी ।

दादी के लाख समझाने पर भी रचित घरेलू लड़की से शादी करने को तैयार नहीं हो रहा था, राधिका को रचित की पसंद से कोई आपत्ति नहीं थी पर वो चाहती थी सास के मन मुताबिक़ सब कुछ हो तो घर खुशहाल रहेगा। 

राधिका के पति इस मामले में बोल कर देख चुके थे तो राधिका से कह दिया,“ अपने लाडले को डॉक्टर तो बना दिया थोड़ी बड़ों के बात का मान रखना भी सीखा देती, माँ के खिलाफ मैं नहीं जाने वाला तो बेहतर है बेटे को समझाओ और अपनी पसंद की लड़की का ख़्याल दिल दिमाग़ से निकालने बोलों ।”

बेटा बस इतना ही कह रहा था,“ एक बार आप सब मिल तो लो..।”

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पर जिस घर जाना नहीं तो पता पूछ कर क्या करना,फिर भी बेटे की ख़ातिर राधिका गार्गी से मिल आई थी और वो उससे बहुत प्रभावित भी हुई थी, फिर एक समझदार माँ यहीं तो चाहती है कि बच्चे ख़ुश रहे।

संजोग से एक दिन दादी के सीने में दर्द महसूस हुआ तुरंत उन्हें अस्पताल ले जाया गया ….रचित दादी को अपने ही अस्पताल में ले गया ।

दादी की देखने जो डॉक्टर आई वो उनसे  बहुत प्यार से बात करती और समय समय पर आकर उनकी देखभाल करती। वैसे जो काम नर्स को करने होते वो खुद ही आकर कर रही थी ।दादी उस डॉक्टर को आशीर्वाद देते नहीं थक रही थी ।

दूसरे दिन दादी को देखने कोई दूसरे डॉक्टर आए….. वो बस राउंड मार कर चले गए ।

 रचित अपनी ड्यूटी के साथ साथ दादी को भी देखने आता रहता।

दादी को दूसरे दिन उस डॉक्टर की कमी खलने लगी , जब नर्स दवा देने आई तो उससे पूछी,” कल जो लेडी डॉक्टर आई थी वो आज नहीं दिख रही? “

“ वो डॉक्टर गार्गी…वो बहुत अच्छी है सब मरीज़ों से बहुत प्यार से बातें करती स्वभाव की इतनी अच्छी डॉक्टर हमने अब तक नहीं देखी… वो फोन करके आपके बारे में हज़ार बार पूछ चूँकि है आप कैसी हैं? आज उनकी ड्यूटी दूसरे वार्ड में है… जैसे ही उनको वक़्त मिलेगा वो आपको देखने आएगी वैसे वो आपकी कुछ लगती हैं क्या? क्योंकि इतना ख़्याल तो किसी मरीज का किसी भी डॉक्टर को रखते हुए नही देखा।” नर्स ने कहा 

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अच्छा तो यही है रचित की डॉक्टर गार्गी… दादी मन ही मन सोची और बोली,“हाँ लगती है ना तभी तो पूछ रही हूँ।” कहकर दादी मन ही मन मुस्कुरा दी

रचित दादी को बीच बीच में आकर देख जाता था, हार्ट अटैक का हल्का असर था , जल्दी से अस्पताल ले आने और निगरानी में रहने की वजह से ज़्यादा दिक़्क़त नहीं हुई। 

शाम को रचित दादी को मिलने आया तो आज दादी बहुत बदली बदली नजर आ रही थी ।

उसके क़रीब एक घंटे बाद गार्गी दादी की सब रिपोर्ट देखने आई।

“ रचित जरा तेरी माँ को फोन कर ।” दादी ने रचित से कहा 

“ राधिका बहू सुन…अपने बेटे की पसंद की बहू ले आ अब मैं ना नहीं कहूँगी।” राधिका से सास ने कहा 

रचित और गार्गी आश्चर्य से एक दूसरे को देखने लगे।ये काया पलट कैसे हुआ … और दादी  गार्गी को कैसे पहचान गई ।

“ तो डॉक्टर गार्गी… हमेशा मेरा इतना ही ख़्याल रख सकोगी?” दादी ने गार्गी से सीधे सवाल कर दिया 

“ जीऽऽ जीऽऽऽ !! गार्गी कुछ कह ही नहीं पाई

तभी कमरे में वो नर्स आ गई जिसने दादी को डॉक्टर गार्गी का परिचय दिया था, “अरे डॉक्टर गार्गी आ गई आप ,डॉक्टर रचित की दादी जी आज आपके लिए पूछ रही थी ।”

दोनों को माजरा समझ आ गया था । 

मतलब दादी गार्गी के बारे में जान गई थी और मिल कर उसकी अच्छाई समझ गई थी… यही तो चाहती थी वो आने वाली बहू परिवार का ख़याल रखें… गार्गी भरसक इस बात को जानतीं थी

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कि वो रचित की दादी है पर दादी को पता नहीं था…फिर जो ये बात भी जान रही थी कि दादी इन दोनों की शादी के ख़िलाफ़ है फिर भी इतनी फ़िक्र करना दादी को कही ना कही अच्छा लग रहा था बस इसलिए वो इन दोनों की शादी के लिए मान गई थी ।

इस बात को सुनकर राधिका की ख़ुशियाँ थामे नहीं थम रही थी ,क्योंकि मन ही मन वो भी गार्गी को बहू के रूप में देखने लगी थी ।

दादी और पोते के बीच भी अब ठीक से बातें होने लगी थी।

पूरे परिवार की रज़ामंदी और दादी के आशीर्वाद से रचित और गार्गी एक पवित्र गठबंधन में बँध गए ।

बहुत बार हम परिवार ,समाज और अपने बच्चों के बीच खुद को मजबूर महसूस करते हैं पर चाहते सब यही है जो भी हो पूरे परिवार की रज़ामंदी और ख़ुशी से हो ताकि किसी के सवालों का सामना ना करना पड़े ।

आज समाज में बहुत बदलाव आए हैं पर कुछ पुराने लोग आज भी शादी में अपना फ़ैसला सर्वोपरि मानते हैं जिसका हर्जाना कहीं ना कहीं बच्चों को भुगतना पड़ता है, अलगाव उनमें से एक है इसलिए कभी कभी अपने स्तर पर भी छानबीन कर बच्चों की ख़ुशी में अपनी ख़ुशी खोज लेनी चाहिए ।

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धन्यवाद 

रश्मि प्रकाश 

#वाक्यकहानीप्रतियोगिता 

#आपको तो अपनी बहू की अच्छाई के आगे कुछ दिखाई ही नहीं पड़ता है…

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