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सोनाझुरी और कबीगुरु (भाग 7) – श्वेत कुमार सिन्हा : Moral Stories in Hindi – Betiyan.in

सोनाझुरी और कबीगुरु (भाग 7) – श्वेत कुमार सिन्हा : Moral Stories in Hindi

…परिधि का स्वभाव और उसका बात-व्यवहार देख नमिता ने उसके तलाक के कारण का अंदाजा लगा लिया था। लेकिन उसे बुरा लग रहा था तो केवल शौमित के लिए। माँ-बाप के बीच वह मासूम बेवजह घून की तरह पीस चुका था। हालांकि सुमित के पास कोई चारा न बचा था और तिल-तिल करके मरने के बजाय उसने कड़ा निर्णय लेना ही बेहतर समझा। तलाक के पश्चात परिधि को शौमित की कस्टडी मिली थी। पर उसके बुरे व्यवहार की वजह से शौमित के भविष्य पर भी विपरीत प्रभाव पड़ने लगा था। सुमित के कानों में ये बात पड़ते ही उसने उसे हॉस्टल में डालना बेहतर समझा।

नमिता ने परिधि को बोलपूर स्टेशन पर हुई अपनी दुर्घटना की सारी बातें बतायी, जिसे सुन परिधि का मुंह लटक गया और चेहरा ग्लानि से भर आया।

नमिता के पास बैठे शौमित की तरफ देख परिधि बोली– “कोर्ट ने शौमित की कस्टडी हमको(मुझे) सौंपी है। पर ई(ये) लड़का न तो मेरा कोई बात सुनता है और न ही ठीक से पढ़ता-लिखता है। खाली(केवल) हमको बदनाम करे(करने) पर पड़ल(पड़ा हुआ) है! हमेशा पापा-पापा करते रहता है, जैसे हम तो एकर(इसका) कुछ हैईये(है ही) नहीं हैं। हमको तो समझ में नहीं आता कि हम का(क्या) करें!! ई(ये) अपन नानीघर में भी सबसे अच्छा बर्ताव नहीं करता आऊ(और) खूब डांट खाता है! सही करते हैं वे सब! ई(ये) लड़का एकरे(इसी का) भागी है! खैर छोड़िए, केतना(कितना) सुनाए अपन राम कहानी!” फिर पास खड़े अपनी बड़ी बहन के बेटे की तरफ इशारा करके बोली- ई(ये) हमर(मेरा) भतीजा है। बहुत होशियार, एकर(शौमित) जैसन(जैसा) बुड़बक नहीं! दू(दो) दिन से कह कर रहा था इहाँ(यहाँ) घूमने के लिए, इसलिए हमलोग आ गये।” परिधि की बातों में शौमित के लिए घृणा और तिरस्कार की बू आ रही थी, जिसे सुनकर शौमित अपना सिर झुंकाए बैठा था।

नमिता ने एक नज़र शौमित के मुरझाए चेहरे पर फेरा और फिर परिधि की तरफ देखकर बोली– “बच्चों का मन कच्चे घड़े जैसा होता है, परिधि जी। वे केवल प्यार के भूखे होते हैं। आप उनसे जैसे पेश आएंगी, वे वैसे ही होते चले जाएंगे। एकबार इनका दोस्त बनकर देखिए, फिर वह आपकी हर एक बात सुनेगा।” यह बोलकर नमिता ने पास बैठे शौमित के सिर पर हाथ फेर उसे प्यार से पुचकारा।

“वाह, लगता है आपको तो बहुत एक्सपेरिएन्स है बच्चा पालने का! जो भी आपका पति बनेगा, उसका तो किस्मते (किस्मत ही) खुल जाएगा।” – परिधि ने चेहरे पर कुटिल मुस्कान बिखेरते हुए कहा। फिर आँखों से शौमित की तरफ इशारा करते हुए बोली- “लगता है शौमित और इसके पापा को भी आप पर बहुत भरोसा हो गया है! है न, सही बोल रहे हैं न हम!! आप शौमित के पापा से ही शादी क्यूँ नहीं कर लेती!!”

परिधि की बातों ने नमिता को भीतर तक कुरेद कर रख दिया था। बड़ी मुश्किल से अपने आंसुओं को आँखों के पोरों में छिपाकर खड़ी हुई और जाने की इजाजत लेते हुए बोली– “अब शाम होने वाली है। मुझे चलना चाहिए। मेरी सहेलियाँ भी साथ हैं। वे मेरा इंतज़ार कर रही होंगी!” नमिता के साथ शौमित भी खड़ा हो गया और अपनी माँ की तरफ ऐसे देखने लगा जैसे जाने की इजाजत मांग रहा हो।

“चलो बेटा। माँ को बाय कर दो!” –शौमित का हाथ थामते हुए नमिता ने उससे कहा। भावहीन चेहरे से अपनी माँ की तरफ देखते हुए शौमित ने उसे “बाय” कहा और नमिता के हाथ पकड़ रिसोर्ट की तरफ बढ़ने लगा। भारी मन से परिधि उन दोनों को दूर तक जाते हुए देखती रही जबतक कि वे उसकी नज़रों से ओझल न हो गये।

सारे रास्ते नमिता ने किसी से कोई बात नहीं किया। सहेलियों के चटर-पटर के बीच भी वह चुप रही। आशा और नबनिता उसके गंभीर चेहरे को देखकर चिंतित थे। रिसोर्ट पहुँचकर नमिता ने शौमित को उसके कमरे तक छोड़ा और बिना कुछ बोले अपने कमरे में लौट आयी। सुमित के आवाज़ देने पर भी वह न रुकी।

शौमित को उसके पापा के पास पहुंचा नमिता अपने कमरे में लौट आयी जहां आशा और नबनीता बैठे उसकी राह देख रहे थे।

“की होलो! तोमार मुख एमन झुलछे केनो (तुम्हारा मुंह यूँ लटका हुआ क्यूँ है!!) –नमिता के चेहरे की गम्भीरता को पढकर नबनिता ने उससे पूछा।

“कुछ नहीं हुआ! मैं ठीक हूँ।” -नमिता ने धीमे से लेकिन गंभीर होकर कहा और बिस्तर पर लेटकर अपना मुंह दूसरी तरफ फेर लिया।

“लगता है शौमित और इसके पापा को भी आप पर बहुत भरोसा हो गया है! आप शौमित के पापा से शादी क्यूँ नहीं कर लेती??” –परिधि की कही बातें नमिता के हृदय पर कटार बनकर लग रहे थे और आँसू आँखों से उतरने को बेताब थे। ज्यादा देर वह अपनी भावनाओं पर काबू न पा पायी और तकिये में मुंह गड़ाए फूट-फूटकर बिलखने लगी।   

“क्या हुआ रे, नमिता!! तू रो क्यूँ रही है? किसी ने कुछ कहा तुझसे?”- बिस्तर पर लेटी नमिता का सिर अपने गोद में रखते हुए आशा ने उससे पूछा। पर बिना कुछ बोले वह लगातार रोती ही रही।

“क्या हुआ, मुझे बता!! सुमित जी ने कुछ कहा तुझसे या उनकी कोई बात तेरे दिल को लग गई। अभी उनकी खबर लेती हूँ कि मेरी सहेली का दिल क्यूँ दुखाया आपने!!”- आशा ने नमिता के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा तो वह हिचकते हुए बोली- “हु हु…नहीं! सुमित जी…ने कुछ….नहीं कहा! उनसे इस बारे में…..कुछ मत….बोलना!!”

“तो फिर बात क्या है!! तू आखिर रो क्यूँ रही है? …और वो कौन लोग थे, जिनसे तू हाट में बात कर रही थी? नमिता? बोल?” –अपने गोद में सिर रखकर आशा ने बिलखती नमिता को शांत करते हुए उससे पूछा। नमिता ने रुँध गले से हाट में हुई सारी बातें बतायी, जिसे सुनकर आशा और नबनिता के चेहरे पर भी गंभीरता की लकीरें उभर आयी।

“परिधि ने कहा और तूने उसकी बातों को मन से लगा लिया! तू खुद ही दिमाग लगाकर सोच वो ऐसा क्यूँ कर रही थी?? अरे…उससे तो देखा नहीं जा रहा था कि कैसे उसका बेटा तेरे साथ इतना घुल-मिल गया है! इसी खुन्नस में उसने तुझपर अपने मन की भड़ास निकाल ली। मेरी मान और उसकी बातों को अपने मन से निकाल फेंक।”- आशा ने नमिता को समझाया, जो बिस्तर पर लेटी भरी आंखों से छत को घूर रही थी।

पास बैठी नबनिता ने अपनी आँखें चौड़ी करते हुए कहा- “पागल है तू! जिस परिधि की बातों को तू दिल से लगाकर बैठी है, थोड़ा ध्यान से सोच तो अपनी खुन्नस में उसी ने तुझे जीने के नया रास्ता दिखा दिया! आखिर गलत ही क्या कहा परिधि ने!! ये सच है कि थोड़े ही समय में सुमित जी और शौमित दोनों तुझपर बहुत भरोसा करने लगे, तभी तो तेरे कहने पर वह शौमित को कोलकाता से यहाँ लाने पर राजी हो गए। और फिर उतने ही यकीन से शौमित को तेरे साथ हाट में छोड़कर वो वापस होटल लौट आये। मैं कहती हूँ हरज ही क्या है सुमित जी से शादी के बारे में सोचने में??” बिस्तर पर लेटी नमिता की खुली आंखे वर्णहीन होकर किसी शून्य में डूबी थी।

नमिता के पास बैठी आशा ने बड़े मज़ाकिया लहजे में कहा- “तू कहे तो मैं बात चलाऊँ अपने होने वाले जीजू से! देखिए सुमित जी…ये जो मेरी सहेली है न…थोड़ी अकल की कच्ची, दिल की सच्ची और हरकतों से बिलकुल बच्ची है। क्या आप इससे शादी करोगे? अं…क्या बोलती है! पुछू अपने हो…ने वा….ले जीजू से!!”

आशा की बातें सुन नमिता पलटी और उसके मुंह पर हाथ फेर उसे चुप कराने लगी। चेहरे पर छाया पतझड़ बसंत का रूप ले चुका था और कुछ ही क्षण पहले गम में डूबा मन अब उबरने लगा था।

“देख मैं कहे देती हूँ इस बारे में सुमित जी के सामने कोई बात मत छेड़ना, नहीं तो पूरे गंगाघाट में मुझसे बुरा तुझे कहीं न मिलेगा। बोल दूँगी मांझी से, तुझे बीच दरिया में डुबो आएगा।”- अंगुली दिखा नमिता ने अपनी दोनों सहेलियों को सख्त हिदायत दी और वे खिलखिलाकर हंस पड़ी। शायद सच ही कहा था आशा और नबनिता ने कि परिधि के दुर्व्यवहार ने नमिता के मन में सुमित जी के लिए दबा एहसास जगा दिया था।…

अगला भाग

सोनाझुरी और कबीगुरु (भाग 8) – श्वेत कुमार सिन्हा : Moral Stories in Hindi

Written by Shwet Kumar Sinha

© Screenwriter Association Mumbai

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