ये घर तुम्हारा भी है … – मीनाक्षी सिंह : Moral Stories in hindi

शांति जी के कंपकपाते हाथों से कांच का कप चाय छानते हुए झट से नीचे गिर गया…..

बाहर गेस्ट रूम में अपनी सहेलियों संग बैठी बहुरानी मोहिनी की एक सहेली बोली….

देख तेरी सास से फिर कोई कांड किया…. ये सासे ऐसी क्यूँ होती है कि बहू बेटे के पैसों को, उनके सामान को मिट्टी के मोल समझती है … कितने महंगे कप हैँ यार  मोहिनी तेरे…. मैं ही तो दिलवा कर लायी थी मोहिनी तुझे….. अब तेरा सेट खराब हो गया ना ……

कह तो सही रही है यार रीना…. वैसे मम्मीजी हमेशा ग्लास में चाय पीती है …. आज कप में कैसे…..

मोहिनी बोली…..

तभी मोहिनी की सास डरती हुई बाहर गेस्ट रूम में आयीं….

मोहिनी कुछ बोलती उस से पहले शांति जी बोली…..

बहू…. वो तेरा महंगा वाला कप मुझसे गलती से टूट गया…..

मोहिनी अपनी जगह से उठी… सभी सहेलियां सोची कि अब तो शांति जी की खैर नहीं…..

मोहिनी शांति जी के पास आयी….

मम्मीजी कोई बात नहीं …… टूट गया तो क्या हुआ दूसरा आ जायेगा….. आप मुझसे कह देती, मैं छान देती चाय….. आप पूजा कर रही थी इसलिये आपके लिए नहीं की चाय ….. आप बैठिये ,, मैं लाती हूँ…..

शांति जी सकपकाते हुए चुपचाप बैठ गयी…..

सभी सहेलियों का मुंह खुला का खुला रह गया…..

कुछ देर बाद नाश्ता पानी कर मोहिनी ने सहेलियों को विदा कर दिया …..

आज बिस्तर पर मोहिनी को नींद नहीं आ रही थी… वो अपने पति संजू की तरफ मुड़ी ….

कुछ कहना है क्या मोहिनी…. बहुत देर से देख रहा हूँ कि तुम्हे नींद नहीं आ रही…..

हां संजू…. पता है मुझे मम्मी जी की बहुत चिंता रहती है …. वो इस घर में बहुत डरी हुई, सहमी सी रहती है … हर चीज लेते हुए, इस्तेमाल करते हुए डरती है …. ना ज्यादा बात करती है ….मैने तो सोचा था…मायके में माँ का प्यार नहीं मिला तो सास के रुप में मिलेगा….मुझे समझ नहीं आता वो ऐसा क्यूँ करती हैँ  ….

मोहिनी बोली….

संजू ने मुस्कराते हुए मोहिनी का हाथ अपने हाथों में लिया ……

सुनो… मोहिनी…. तुम्हे आयें इस घर में दस महीने हुए है …. इसलिये तुम्हे हर बात मैने खुलकर नहीं बतायी है …. माँ जबसे पापा के साथ सात फेरे लेके आयीं तबसे किराये के घर में ही रही….. पापा के पास कुछ भी पुश्तैनी नहीं था….. जल्द ही लाईलाज बिमारी से पापा चल बसे… माँ टीफिन बनाकर मुझे पढ़ाती लिखाती … उन्होने  दूसरा बच्चा भी नहीं किया कि मेरी परवरिश अच्छे से कर पायें….. माँ ने मुझे पढ़ा लिखा तो दिया पर  घर नहीं बना पायी….. उनके मेहनत के प्रतिफल से जल्द ही मुझे बैंक में नौकरी मिल गयी….. फिर मैने ही ये मकान बनवाया,, घर गृहस्थी बनायी….. तो इसलिये मोहिनी वो डरती है कि कहीं बहू बेटा मुझसे कुछ कह ना दे …. मुझे घर से निकाल ना दे…..

आस पास के घरों में सास बहू की लड़ाई देख वो चुप रहती है कि कहीं झगड़ा हुआ किसी बात पर तो मुझ पर ही आरोप आयेगा और मेरा संजू दुखी होगा… जिसके सर से बचपन से पिता का साया उठ गया…. वो बस मुझे और तुम्हे खुश देखना चाहती है …. अब तुम्हे ही अपनेपन से माँ के डर को खत्म करना होगा… उन्हे पहले जैसा चंचल बनाना होगा… माँ बहुत खुशमिजाज की है मोहिनी …..

संजू बोला….

ओह…. ऐसी बात है संजू….. तुमने मुझे पहले क्यूँ नहीं बताया… अब तुम देखना मम्मी  जी का डर हमेशा के लिए खत्म कर दूँगी…..

ये बोलते हुए मोहिनी संजू के सीने से लग गयी…..

अगले दिन मोहिनी सुबह उठी…. शांति जी को चाय उनके कमरे में देने के बजाय उनका हाथ पकड़ टेबल पर लायी… उन्हे बैठाया…. संजू, मोहिनी और शांति जी ने साथ में नाश्ता किया …..

संजू ने शांति जी का हाथ पकड़ा … माँ आज मेरे बालों में तेल लगा दो ना जैसे पहले लगाती हो…. और हां माँ…. ये घर मैने तुम्हारे नाम किया है …. तुम्हे पढ़ना नहीं आता …. देखी कुछ दिन पहले ही तुम्हारे नाम की नेमप्लेट लगवायी  है ….. ये घर सिर्फ मेरा और मोहिनी का नहीं है माँ तुम्हारा भी घर है ये…. तुम्हारा पूरा अधिकार है माँ इस पर …..

शांति जी के चेहरे पे ये बात सुन मुस्कान आ गयी…. ला तेरे बालों में तेल लगा दूँ …. कैसे रुखे हो गए है तेरे बाल……

मोहिनी शांति जी के पास आयी…मम्मी जी मुझे माँ कहने का अधिकार दो…. मुझे अपने सीने से लगा लो….. माँ के प्यार को तरस गयी हूँ…..

शांति जी ने  कसके मोहिनी को गले से लगा लिया … तू तो मेरी लाडो रानी है … ला तेरी भी चम्पी कर दूँ ….

आज शाम को बिना डर के शांति जी अपने बेटे की पसंदीदा कढ़ी बना रही थी…. आखिर अब वो उनका खुद का भी घर था…..

मीनाक्षी सिंह की कलम से

आगरा

3 thoughts on “ये घर तुम्हारा भी है … – मीनाक्षी सिंह : Moral Stories in hindi”

  1. बेहतरीन
    समस्या को सुलझाया जा सकता है
    सादर

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  2. एक और सकारात्मक कहानी के लिए कहानीकार को साधुवाद ।किसी समाज में वरिष्ठ जनों के हालात जानना हो तो ऐसी कहानियां उस समाज का आइना होती हैं।
    कृपया ऐसे ही लिखते रहें।

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