जन्म का नहीं दिल का रिश्ता – रचना कंडवाल : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi  : मैं शिवानी आज आपके सामने अपनी जिंदगी की किताब से जुड़ा एक पन्ना खोल रही हूं जो बहुत खूबसूरती से ईश्वर द्वारा लिखा गया है। मैं अपने मां-पापा के चार बच्चों में सबसे बड़ी थी। मध्यम वर्गीय परिवार, खूब बड़ा,तीन मामा, मौसी नानी- नाना और पापा की फॅमिली में पापा तीन बहनों के इकलौते भाई थे। मेरी बड़ी बुआ पापा से पूरे सोलह साल बड़ी हैं।

एक धनी (बिजनेस मैन) परिवार में ब्याही गई हैं। उनका आना जाना कम ही हो पाता है। मंझली बुआ व छोटी बुआ हमारे शहर में ही रहते हैं। मझंली बुआ पापा से तेरह साल व छोटी बुआ दस साल बड़ी हैं। मझंली बुआ व छोटी बुआ पापा को बहुत प्यार करते हैं। हम जब छोटे थे तो बुआ के आने का बेसब्री से इंतजार करते थे।उनकी लायी हुई मिठाईयां घेवर, रसगुल्ले, दाल के पकोड़े,पातरा हम सब भाई बहनों का फेवरेट था।

सबसे मजेदार तो मेरी छोटी बुआ हैं। खासकर जब बुआ राखी पर आती तो भाई-बहनों में सबसे बड़ा होने के कारण बुआ असीम प्यार बरसाते हुए मुझे दो रुपए देती थी ऐसा नहीं है कि उनके पास नहीं होते थे बस थोड़ी सी कंजूस हैं। मैं बड़ी हो गई बुआ जी भी दो रुपए से दस रुपए पर पहुंच गई। मेरी पढ़ाई खत्म हो गई थी। एमबीए करने के बाद मल्टी नेशनल कंपनी में जॉब करने के लिए हैदराबाद चली गई। उसके बाद पापा ने मेरा रिश्ता अमित से कर दिया। उनका भी काफी बड़ा परिवार है।

रोके पर अमित के परिवार से मेरी सास,जेठ, जेठानी, चाची सास,ससुर ननद अमित के मामा, मामी और भी बहुत से रिश्तेदार थे। बातों ही बातों में मेरी सास ने मेरी मां को बताया कि अमित की बड़ी फूफू ( बुआ) नहीं आ पायी। हमारे परिवार में सबसे बड़ी हैं। अमित के लिए लड़की वह खुद पसंद करना चाहती थीं। वो अब शादी में आयेंगी क्योंकि वह अपनी बेटी के पास लंदन गई हैं। सासू मां ने कहा कि अमित के फूफा जी की मृत्यु के बाद वह हमारे साथ ही रहती हैं।उनकी इकलौती बेटी की शादी हो चुकी थी अपनी विशालकाय कोठी में उनका मन नहीं लगता था ‌‌‌‌तो उन्होंने उसे किराये पर चढ़ा दिया है। ससुराल वाली बुआ व मौसी की छवि तो मन में बिलकुल‌ एकता कपूर के सीरियल वाली थी एकदम वैम्प टाइप।

शादी भी दो महीने बाद हो गई। गृह प्रवेश के बाद बारी आयी मुंह दिखाई की रस्म की मेरी सासू मां मेरे पास आईं और बोली कि बहू ये हैं अमित की बड़ी फूफू प्रणाम करो। बड़ी फूफू ने मुझे कहा ए लड़की सबसे पहले तो अपना पल्लू ऊपर करो जरा देखूं तो सही कि मेरे भतीजे को कहीं भैंगी, कानी लड़की तो नहीं दे दी। अब तो मैं डर गई लगने लगा कि मेरा‌ बुरा सपना सच हो गया एकता कपूर के सीरियल वाली बुआ का।

हालांकि फूफू का व्यक्तित्व बहुत ही शानदार था लंबा कद, गोरा रंग,कमर तक की ग्रे शेड की चोटी दिखने में, बड़ी, बड़ी आंखें, मोहक मुस्कान। पर उनके लहजे से मैं मन ही मन घबरा गई। फिर रिशेप्शन के बाद अगले दिन बहू की पहली रसोई की रस्म थी। बीस बाइस लोगों का खाना बनाना था जब कि मैं छह लोगों का खाना भी मम्मी की मदद से बनाती थी। और साथ में मीठे में खीर बनानी थी जो कि मेरी कुकिंग का सबसे कमजोर पार्ट था। अब तो मुझे डर के मारे पसीना आने लगा किचन में गई और सब्जियों की तैयारी करने लगी। इतने में फूफू आयीं कहने लगी कोई मदद चाहिए।

मैं संकोच के कारण चुप रही जैसे तैसे खाना बन गया।फूफू आयी भगवान के लिए भोग निकाल कर फिर खाना चखा। पनीर में फटाफट थोड़ी चीनी डाली क्योंकि नमक शायद ज्यादा था।खीर में चीनी डाली मीठा कम था। कद्दू में अमचूर पाउडर मिलाकर फिर ननद को आवाज लगाई। मीतू जल्दी से पूरी तलने में भाभी की मदद करो। बूंदी का रायता मैं बना रही हूं। मीतू कहने लगी फूफू आज तो‌ भाभी की रसोई है तो आज वही बनायेंगी। मीतू बाकी तो बना दिया है उसने बस पूरी तलो तुम यहां आकर। फिर खाना लगा सबने खाना खा कर खूब तारीफ की। फूफू मुझे देखते ही बोली लड़की तो पास हो गई। धीरे धीरे समय बीतने लगा शादी के दो साल गुजर गए।

फूफू की और मेरी बॉन्डिंग अब काफी मजबूत हो गई थी। मेरी गोद में नन्ही गुड़िया किटटू आ गई। फूफू ससुराल में मेरा सबसे बड़ा सपोर्ट थीं कोई अगर मेरे किसी काम में ‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌मीनमेख निकालता तो वह तुरंत कहती मां के पेट से कोई सीख कर नहीं आता धीरे-धीरे सीख जायेगी। वो मुझे डांटती थी तो प्यार भी बहुत करती थी। बड़ी भाभी कभी कभी चिढ़ जाती थी कि फूफू को कोई नहीं दिखाई देता तुम्हारे अलावा। फूफू जब भी मैं किसी‌‌ फंक्शन में जाने को तैयार होती तो वो आतीं और कहती कि देखूं तो सही लड़की कैसी लग रही है? कहीं हमारी नाक न कटवा दे।चार साल बीत चुके थे पर मैं अभी भी उनके लिए लड़की ही थी। इस बीच उनकी तबीयत भी खराब रहने लगी थी एक दिन हाई ब्लड प्रेशर के कारण उन्हें लेफ्ट साइड में हल्का पैरालिसिस अटैक आ गया।

प्रिया दी लंदन से आ गई कहने लगी मां अब मेरे साथ चलो यहां आपका इलाज ढंग से नहीं हो पायेगा। पर उन्होंने उन्हें कहा मेरा मन नहीं लगता है वहां मेरा ख्याल शिवानी रख रही है तू चिंता मत कर। फूफू को नहलाना, उनके कपड़े धुलना खिलाना पिलाना सब मेरे जिम्मे आ गया। पर धीरे-धीरे वो ठीक होने लगीं।साल बीतते-बीतते ठीक हो ग‌ईं। मेरी बिटिया उनके हाथ से ही खाती, उनसे कहानियां सुनती उसका तो सारा भार उन्होंने ही उठा रखा था। फिर अमित का ट्रान्सफर मुंबई हो गया और हम उनके साथ चले गए।

फूफू हमारे साथ नहीं आयी क्योंकि वो और मेरी सासू मां मैट्रो सिटी को पसंद नहीं करते थे। फिर कुछ समय बाद मुझे पता चला कि वो प्रिया दी के पास चली गई हैं। मैंने फोन करके पूछा तो हंस पड़ी तो बोली लड़की मेरा दाना पानी तो तेरे साथ ही जुड़ा था मन नहीं लग रहा मेरा तेरे बगैर। चल जल्दी ही तुम्हें मिलने आऊंगी मेरी किट्टू का ख्याल रखना उसे डांटना मत।

फिर एक दिन दीदी का फोन आया कि मां अस्पताल में एडमिट है हार्ट अटैक आया है। प्रिया दी बहुत परेशान थीं। शिवानी मां तुम्हें बहुत याद कर रहीं थीं। मुझे बहुत बुरा लगने‌ लगा मन में कुछ चुभ रहा था कि काश मैं उन्हें देख पाती। पर लंदन जाना आसान नहीं था। मैं यहीं रह कर भगवान से प्रार्थना करने लगी। पन्द्रह दिन आइसीयू में एडमिट रहने के बाद उनका देहांत हो गया।उस दिन लगा कि आज जैसे जिंदगी का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा मुझसे अलग हो गया।

छह माह बाद प्रिया दी इंडिया आई तो उन्होंने मुझे एक लिफाफा दिया कि ये मां ने तुम्हारे लिए रखा था।

लिफाफा बंद था। मैंने उसे खोला तो उसमें एक बहुत ही खूबसूरत पैंडेंट था जिसमें ए और एस बना था। और साथ में एक लैटर था।

लिखा था आज तुझे ए लड़की नहीं कहूंगी ।

मेरी प्यारी शिवानी तू मेरे लिए बहू कभी नहीं थी। बेटी माना था तुझे, तूने मेरे बहुत नखरे उठाये हैं। जब मैं रूठ जाती थी तो मनाने में सबसे आगे तू होती थी। मुझे डांटती थी तो ‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌ तुझ में मुझे मां नजर आती थी।तू बहू कम बेटी ज्यादा थी। तुम दोनों पति-पत्नी हमेशा खुश रहो ये मेरा आशीर्वाद है। ये पैंडेंट तेरे लिए बड़े प्यार से बनवाया है। मेरी निशानी है भूल मत जाना मुझे। क्या पता दोबारा मिल पाती हूं या नहीं।

तेरी फूफू।

आज जब भी मैं अपनी किट्टू को देखती हूं तो उसकी बहुत सी आदतें फूफू जैसी लगती हैं। हों भी क्यों नहीं उसने अपना पहला निवाला भी उनके हाथ से ही खाया था और जब वह इस दुनिया में आयी थी उनकी गोद में सबसे पहले थी।

कुछ रिश्ते ऐसे होते हैं जो खून के नहीं होते पर कब‌ और

किस रुप में मिलेंगे ये ईश्वर तय करता है

© रचना कंडवाल

V M

 

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