आकाश में काले बादल घिर रहे थे और बिजली चमक रही थी, लगता था जैसे भयानक तूफान आने वाला है । पर उससे कहीं अधिक तेज़ तूफान देवप्रिया के भीतर चल रहा था ।” मैं गलत थी राजन कि मैंने तुमसे प्यार किया । तुमसे प्यार करना ही मेरी जिंदगी की सबसे बड़ी भूल थी ।” फफक पड़ी थी देवप्रिया और न चाहते हुए भी दिल के किसी कोने में राजन आज भी था । और राजन … पता नहीं यह उसकी मजबूरी थी या कमजोरी , पर सचाई यही थी कि अब उसका प्यार बदल चुका था, जीवन साथी बदल चुका था । देवप्रिया उसकी जिंदगी में वह बस उस लहर की तरह थी जो उसे उसकी मंजिल तक पहुंचा गयी थी ।
इधर देवप्रिया को रह रह कर वो दिन याद आ रहे थे जब वह राजन से मिली थी । कॉलेज में हुई उनकी दोस्ती कब उनको इतना क़रीब ले आई कि एक दूजे के बिना जीवन की कल्पना करना भी उनके लिए बेमानी हो गया था । वैसे तो दोनों दो ध्रुवों की तरह ही थे । अपने माता – पिता की लाडली उत्तर भारतीय देवप्रिया का जीवन बहुत ही लाड़प्यार से बीता था, जबकि चार बहनों का इकलौता भाई राजन दक्षिण भारतीय था और पिता की असमय मृत्यु के बाद उसका बचपन उतना खुशहाल नहीं था । उसकी शुरूआती शिक्षा चेन्नई के एक गांव में ही हुई थी । पढ़ाई में अव्वल और देखने में ऊँचा – लम्बा राजन किसी फ़िल्मी हीरो से कम नहीं लगता था । स्कूल में ही न जाने कितनी लड़कियाँ उस पर मरती थीं, पर उसका दिल कब प्रिया के लिए धड़कने लगा, उसे खुद पता ही नहीं चला ।
प्रिया महत्वाकांक्षी लड़की थी और जल्दी ही जिंदगी में कुछ कर दिखाना चाहती थी । वैसे भी दोनों उम्र के उस दौर से गुजर रहे थे जिधर विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण जल्दी ही हो जाता है । दसवीं कक्षा से शुरू हुआ उनका प्यार बाहरवीं कक्षा होते-होते मुरझाने लगा था और इसका मुख्य कारण प्रिया के अंकल का बेटा “चंद्रेश” था जोकि विदेश से पढ़ाई पूरी करके आया था और उसने आते ही अपने पापा का बिज़नेस संभाल लिया था । रोजाना एक से बढ़ कर एक उपहार , घूमने के लिए गाड़ी और हद से ज्यादा तवज्जो , आखिर यही तो हर महत्वाकांक्षी लड़की की तमन्ना होती है । प्रिया का झुकाव अब चंद्रेश की तरफ होने लगा था, इसलिए अब वह राजन से मिलने से कतराने लगी थी और एक दिन जब राजन ने प्रिया को चंद्रेश को बाँहों में देखा, दिल टूट गया उसका। हर लड़की उसे प्रिया की तरह मक्कार लगने लगी थी । प्रिया को भुलाने के लिए राजन ने खुद को पढ़ाई में डुबो दिया था, पर प्रिया का सामना करते ही उसकी बेबफाई और उसका दिया गम याद आ जाता था। गम भुलाने के लिए उसने आगे की पढ़ाई के लिए दिल्ली जाने का निश्चय कर लिया था और यहीं उसकी मुलाकात देवप्रिया से हुई थी ।
देवप्रिया का न केवल नाम बल्कि कदकाठी भी काफी हद तक प्रिया से मिलती जुलती थी । इसलिए प्रिया की यादें इधर भी राजन का पीछा नहीं छोड़ रहीं थीं । इसलिए शुरुआत में हर बात में वह देवप्रिया से झगड़ता, उसकी हर बात काटता, पर धीरे धीरे कब उनमें अच्छी दोस्ती हो गयी, उसे खुद पता ही नहीं चला । कॉलेज की पढ़ाई खत्म करते ही कैम्प्स इंटरव्यू से दोनों का एक ही कम्पनी में सिलेक्शन हो गया और…… यहीं पर उनकी प्रेम कहानी भी शुरू हो गयी । जहां देवप्रिया राजन की हर सुख -सुविधा का ख्याल रखती थी, वहीं राजन भी उसे सबकी बुरी नजरों से बचा कर रखता था । किसी की क्या मजाल कि कोई देवप्रिया के बारे में कुछ भी बोल दे । वैसे भी दोनों में कोई दुराव छिपाव नहीं था । राजन ने खुद देवप्रिया को प्रिया के बारे में सब कुछ बता दिया था । खुद से ज्यादा विश्वास करने लगी थी देवप्रिया राजन पर ।
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रिहाई (भाग 2 )
धन्यवाद
स्वरचित
कल्पनिक कहानी
अंजू गुप्ता