रिहाई (भाग 2) – अंजू गुप्ता : Moral Stories in Hindi

देवप्रिया वैसे तो खुले दिल की थी पर राजन की एक कजिन का वक्त बेवक्त फ़ोन आना उसे हर बार खटकता था । उसने सुन रखा था कि दक्षिण भारतियों में कजिन से शादी हो सकती है, इसलिए उसने राजन से इसके बारे में पूछा भी । इस पर राजन ने हँसते  हुए बताया कि ऐसा कुछ नहीं है, वह उसकी बड़ी बहन की तरह है । बल्कि उसने देवप्रिया को बताया कि दामिनी (उसकी कजिन) और वह बचपन से ही इकठ्ठे पले बड़े हैं इसलिए उस पर अपना हक समझती है और यही कारण है कि वह वक्त बेवक्त कभी भी उसे फ़ोन कर देती है । राजन देवप्रिया से कुछ भी नहीं छुपता था, इसलिए भी देवप्रिया निश्चिंत हो गयी । वैसे भी राजन उसकी बात दामिनी से करवा चुका था, इसलिए शंका की कोई बात न थी ।

वैसे जब भी उत्तर भारतीय और दक्षिण भारतीय की बात होती, कई बार राजन हँसते हुए देवप्रिया के कहता भी था, “हमें तो भाग कर ही शादी करनी पड़ेगी । मेरी मम्मी तो मानेगीं नहीँ ।” जब देवप्रिया मना करती तो हमेशा उसका जबाब होता, “यार इकलौता लड़का हूँ, शादी के बाद तो माँ को मानना ही पड़ेगा ।”

ख़ैर, अभी तो दोनों अपना करियर बनाना चाहते थे, कुछ करके दिखाना चाहते थे । दोनों ही मेहनती थे और कम्पनी में अपनी साख बना चुके थे। दोनों चाहते थे कि शादी से पहले दोनों अच्छी तरह सेटल हो जाएं । पर आगे बढ़ने के लिए एम् बी ए होना जरूरी था और नौकरी के साथ साथ पढ़ाई जारी रखना नामुमकिन था । इसलिए देवप्रिया ने सुझाव दिया कि क्यों ना वे दोनों अपनी नौकरी छोड़ दें और अपने आगे की पढ़ाई पूरी करें । सिर्फ दो वर्ष की ही तो बात है । पर राजन पढ़ाई का अतिरिक्त खर्च अपनी माँ पर नहीं डालना चाहता था, इसलिए वह चुप ही रहा । देवप्रिया राजन के साथ अपने सुखद भविष्य के सपने देख चुकी थी, इसलिए उसने राजन को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया और अपनी कसम दे कर इस बात के लिए मना लिया कि राजन एम् बी ए करे और वह तब तक नौकरी करके उसका ध्यान रखेगी । राजन के मना करने पर वह हस कर बोली ,” अरे ! फ़िक्र न करो । शादी के बाद यह उधार चुका देना ।” राजन भी अपने प्यार की खातिर इंकार न कर पाया । कहीं न कहीं उसे खुद भी देवप्रिया पर अपना हक़ लगने लगा था ।

सच में अपने प्यार से बिछुड़ना बहुत कष्टदायी होता है और यह बात वही समझ सकता है जिसने प्यार किया हो । राजन को बेंगलूर भेजना देवप्रिया के लिए मुश्किल तो था पर एक अच्छे भविष्य के लिए यह जरूरी भी था और फिर वो दिन भी आया जब राजन को बेंगलूर जाना था । भरी आँखों से वह राजन से बोली, “भूल तो नहीं जाओगे, राजन?”

 उसका हाथ अपने हाथों में लेकर राजन बोला, ” सिर्फ कुछ सालों के लिए ही तो जा रहा हूँ मेरी जान, बीच – बीच में आता रहूंगा और तुम ही मेरी जन्मों – जन्मों की साथी हो। फिर यह अविश्वास क्यों?”  कुछ था ही नहीं तो देवप्रिया क्या बोलती । नम आँखों और फीकी मुस्कान से दोनों ने एक – दूसरे को विदाई दी ।

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रिहाई (भाग 3 )

रिहाई (भाग 3) – अंजू गुप्ता : Moral Stories in Hindi

रिहाई (भाग 1 )

रिहाई (भाग 1) – अंजू गुप्ता : Moral Stories in Hindi

धन्यवाद

स्वरचित

कल्पनिक कहानी

अंजू गुप्ता

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