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गलतफहमी – शिव कुमारी शुक्ला : Moral stories in hindi – Betiyan.in

गलतफहमी – शिव कुमारी शुक्ला : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi: सुखिया ताई गाँव का जाना माना नाम है।कोई  घर हो अमीर गरीब बिना भेदभाव के सुखिया ताई जरुरत पड़ने पर वहाँ हाजिर हो जाती। कोई बीमार है सेवा टहल करने, दवाई दारू की जिम्मेदारी जैसी जिसको जरूरत होती उस  हिसाब से अपने  ऊपर ले लेती नहीं तो केवल कुशल क्षेम पूछ घर आ जाती।

किसी बच्चे को पेट दर्द है झट उसकी नाभि के चारों और हींग का लेप लगाकर प्यार से सहलाती दर्द कम होने पर बच्चा सो जाता और वे चल देती। किसी की जचगी होनी है और कोई परेशानी है तो सुखिया ताई मदत के लिए हाजिर रहती। असल में मानव सेवा  को ही उन्होंने अपना कर्म बना लिया था। 

शादी के बाद एक वर्ष मे ही वे विधवा हो गई।  न कोई बच्चा था जिसके साथ जिंदगी कटती।कम उम्र थी किन्तु ससुराल मे रह कर ही अपना जीवन निर्वाह किया। उनके जमाने में लडकियों की दूसरी शादी के बारे में सोचना भी पाप – और अधर्म समझा जाता था। विधवा विवाह की परिकल्पना ही नहीं की जा सकती थी,वो भी गाँव में।

परिवार में सास-ससुर देवर देवरानी उनके बच्चे और एक नन्द थे ।सब के साथ सामंजस्य  बनाकर वे रहती। घर के कमों मे भरपूर  सहयोग करती ।परिवार अपस में  बडे ही मेल जोल से रहता। उन्हे  बडी  बहू  होने  का सम्मान पूरा दिया  जाता। हर काम उनसे पूछ परख कर उनकी देखरेख में होता।  उन्होंने अपने जीवन मे बच्चों की कमी को देवर के बच्चों से पूरा कर लिया। देवर के बच्चों को भरपूर स्नेह देती, उनके पालन पोषण की पूरी जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली थी।

उनको नहलाना धुलाना, स्कूल के लिए तैयार करना खिलाना पिलाना रात को कहानी सुना कर सुलना सब काम बड़े प्रेम एवम मनोयोग करती। उन्हें लगता ही नही कि ये बच्चे उनके नहीं  हैं। बच्चे भी ताई के पिछे पिछे लट्टू  से घूमते रहते। कभी कोई नई चीज खाने की फरमाइश करते, ताई झट चूल्हे पर कढाही चढ़ा  कर बनाने  बैठ जाती। सास ससुर बहुओं में आपस मे  प्रेम देखकर खुश होते। देवरानी को भी  उनसे कोई शिकवा – शिकायत नहीं थी। किन्तु वह कान की कच्ची थी। 

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गाँव में कुछ लोगों को उनके परिवार का यह प्रेमभाव पसन्द नहीं था। अतः उन लोगों ने देवरानी के कान भरने शुरू किए की यह तुम्हारे बच्चों को वश में कर लेगी। कुछ जादू-टोना करवा देगी ,बाद में ये बच्चे तुम्हे पूछेंगे भी नहीं उसी के हो कर रह जायेंगे। तुम्हारी जमीन जायदाद हडप लेगी।

शुरू शुरू मे तो देवरानी इन बातों का विरोध करती कि ऐसा कुछ नहीं होगा। वह तो बच्चों से प्रेम करती हैं । कहते हैं कि बार बार किसी झूठ को दोहराया जाए तो वह सच लगने लगता है। यहाँ भी यहीं हुआ बार-बार लोगों से वही बातें सुन – सुन कर देवरानी के मन  में भी शक पैदा हो गया।

वह कान की कच्ची तो थी इसका औरो ने भरपूर फायदा उठा कर उनके परिवार में फूट डालने मे सफल हो हो गए। अब देवरानी उनके हर काम को शक की दृष्टि से देखने लगी। एक दिन तो उसने साफ कह दिया कि जिज्जी अब आप बच्चों से दूर ही रहा करो वे बड़े हो गए है अपना काम खुद कर लेंगे। 

सुखिया ताई अचंभित हो उसका मुँह देखती रह गई। क्या होगया मुझसे कोई गल्ती हो गई क्या? 

 नहीं पर अब मैं ना चाहूँ की आप बच्चों के पास ज्यादा  रहैं। 

  सुखिया ताई को धक्का  सा लगा वे सोच में पड  गई कि आखिर बात क्या हुई। बिना बच्चों से बोले मैं कैसे रह सकती  हूं,और बच्चे  भी  क्या मेरे

  बिना रह पायेंगे। 

  माॅ  ने जब बच्चों से ताई से कोई भी काम कराने को मना किया तो वे बोले नहीं हम तो ताई के पास ही रहेगें उनसे ही काम  करायेंगे।

ताई अपने कमरे में जाकर फूट-फूट कर रो पडी ऐसा क्या कर दिया  मैंने जो देवरानी  ने इतना बडा फैसला ले लिया। जब दोपहर को स्कूल से घरआये तो  ताई खाना दो भूख लगी है चिल्लाते चले आए ।ताई सब सुनकर भी  अपने कमरे से बाहर नहीं निकली। बच्चों की आवाजें सुन उनका कलेजा मुंह को आ रहा था ।

वह  झटपट उन्हें  खाना खिलाना चाह रही थी ।खाना खाते- खाते उनकी मीठी-मीठी बातें भी सुनना चाह रही थी,किन्तु  देवरानी की ताकीद ने उनके कदम   रोक  दिए। देवरानी बच्चों को खाना खाने के लिए बोल रही थी वे थे कि एक ही  रट लगाए थे कि ताई के हाथ से ही खायेगें। माॅ ने  गुस्से  में बडे बेटे के थप्पड  जड दिया। 

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वह खाना छोड रोते रोते ताई के कमरे में घुस कर उनसे लिपट  कर रोने लगा। उसके पिछे -पिछे उसके भाई बहन वहाॅ से रोते उठ गये  और ताई के पास पहुँच गये।

चार दिनों तक यही सिलसिला चला। बच्चे न ढंग से खाते ना बोलते । उदास बैठे  रहते। वे ताई से बातें  करने  को तरसते और  इधर ताई भी रो रोकर हलकान हुई जा रही  थी कि बात क्या हुई।

बच्चों की और ताई की हालत देख सास- ससुर और देवर ने उससे पूछा कि आखिर  तुम ऐसा क्यों कर  रही हो। क्यों  घर  मे क्लेश फैला रखा है।  

तब देवरानी ने लोगों द्वारा उसे कही  सब बातें बताई। सब सुनकर सन्न रह गए। उसक पति बोला- तू उनकी बातों में आ गई। तेरे कान के कच्चे होने का उन्होंने फ़ायदा उठाकर अपने घर में फूट डलवा दी। अरे पगली भाभी की तो इन बच्चों  में  जान बसती है  वे क्या इनका बुरा चाहेंगी। तुझे भी तो अपनी छोटी बहन सा प्यार करे ,यह तुझे नही  दिखा जो बहकावे में आ गई।

उन लोगों  को अपने परिवार की खुशी नहीं सुहाती,सो उन्होंने तेरे मन में गलतफहमी पैदा कर दी ! ऐसा कुछ नही होगा। चल अपन भाभी से माफी मांग लेते है। देवर कमरे से भाभी को लेकर आया। दोनों ने उनके पैर छू कर माफी माँगी और बच्चों के हाथ पकड उन्हें  थमा दिये।

 

सुखिया ताई के मुख पर मुस्कान थी और आँखों  से ऑसू झर रहे थे। हर्षातिरेक में बच्चों के साथ साथ उन्होंने देवरानी को  भी गले लगाकर माफ कर दिया।

आज पूरा परिवार पहले की तरह ही खुश  था और बच्चों की खुशी का तो कहना ही क्या। उनके चहकने से घर गुलज़ार हो उठा।

 

शिव कुमारी शुक्ला

स्व रचित मोलिक अप्रकाशित

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