अपने लिए जीने का कब सोचेगी ? – मीनू झा 

यार मैं तुझसे मिलने आई हूं, बातें करने आई हूं तेरे साथ समय गुजारने आई हूं…ये खाना पीना और खातिरदारी करवाने नहीं पर तू तो समय ही नहीं दे रही मुझे..इससे अच्छा और ज्यादा समय तो तू मुझे वीडियो काॅल पर दे देती थी

बस अभी आई चित्रा थोड़ा सा समय दें..सारा काम निपट ही गया है फिर सारा दिन तो तेरे साथ ही हूं।

क्या यार सारा दिन नहीं कहते उसे दो से पांच यानि तीन घंटे कहते हैं..फिर तुम्हारे पतिदेव आ जाएंगे उनकी आवभगत में लग जाओगी।

कहने को तो शिखा पति के पास थी पर पुरे मायके और ससुराल परिवार की जिम्मेदारी उसी पर थी,मायके की लाडली संतान और ससुराल की बड़ी बहू।

चित्रा उसके बचपन की दोस्त उससे दो दिनो के लिए मिलने और अगले महीने होने वाली अपनी शादी के लिए आमंत्रित करने दूसरे शहर से आई थी।पर वो पा रही थी कि सिर्फ पति के पास रहकर भी शिखा अकेली नहीं हैं और उससे भी ज्यादा उसके पास एक मिनट का समय नहीं होता पूरे दिन अपने लिए.. यहां तक की वो चित्रा को भी समय नहीं दे पा रही।

सुबह छह बजे ही उसे किचन से खटपट की आवाज आने लगी थी..आठ बजे तक पति को आफिस के लिए विदा करने के बाद चित्रा के साथ चाय पीने बैठी ही थी कि मां का फोन आ गया,बहन की शादी के सारे वृतांत सुनाती मां फिर कहीं बनती बात बिगड़ जाने से दुखी थी वहीं दुख बेटी को बताते बताते एक घंटे ले लिया उन्होंने।फिर शिखा चित्रा के लिए ब्रेकफास्ट बनाने चली गई।पर चित्रा की जिद थी कि ब्रेकफास्ट साथ करेंगे तो लंच की तैयारी अधूरी छोड़कर शिखा नहाने चली गई,नहाकर पूजा पाठ करते उसे एक घंटे लग गए। शनिवार का दिन था दोनों ब्रेकफास्ट के लिए बैठे ही थे कि घंटी बजी… सोसायटी वेलफेयर कमिटी की सदस्या होने के कारण सोसायटी के सर्वेंट क्वार्टर में रहने वाले बच्चों को शनिवार और रविवार एक घंटे ट्यूशन देने की जिम्मेदारी शिखा को दी गई थी..उसने उन बच्चों को चाॅकलेट पकड़ाकर अगले शनिवार को आने का कहकर वापस भेजा। ब्रेकफास्ट खत्म होते ही ससुरजी का फोन आ गया..फिर उनसे बात करने के बाद सासु मां फोन लेकर बैठ गई..अगले महीने वो लोग डाक्टर को दिखाने और देवर का एडमिशन वहीं कालेज में करवाने आने वाले थे।




बात खत्म होते होते बारह बज गए…शिखा वापस किचन लंच बनाने चली गई।

लंच बनाते बनाते ही वो चित्रा से बात भी कर रही थी तो सुबह से बोर हो रही चित्रा फट पड़ी थी।

तभी चित्रा के दिमाग में एक आइडिया आया।

शिखा वैसे तो मैं सोचकर आई थी कि तेरे साथ तेरे घर पर बैठकर ही समय बिताऊंगी पर तेरा हाल देखकर मेरा प्लान चेंज हो गया है..चल हमलोग बाहर चलते हैं

नहीं चित्रा साॅरी आज नहीं जा सकती..तूने देखा ना सुबह मेरी वर्किंग पड़ोसन अपने दो रिटर्न पिक अप मेरे घर पर रखकर गई है.. कुरियर वाला आकर लौट जाएगा और बाईं भी आज तीन बजे ही आने का बोल गई है क्योंकि उसे कहीं जाना है शाम को, फिर बर्तन और किचन सफाई भी मुझे करनी होगी।

पड़ोसन के कुरियर वाले और बाईं की चिंता छोड़ अपनी दोस्त की चिंता कर जो इतनी दूर से तुझसे मिलने और शादी के बाद की टिप्स लेने तेरे पास आई है और मुझे लगता है तुझे ही मेरे टिप्स की जरूरत ज्यादा है

शिखा मुस्कुरा पड़ी।फिर तो जबरदस्ती चित्रा ने उसे तैयार किया और लेकर निकल पड़ी।

फिर तो शादी के पहले के दिन लौट आए। दोनों सहेलियां मानों बेफिक्र तितलियां बन गई थी..शहर की अच्छी अच्छी जगह देखने, शापिंग करने के बाद दोनों थककर एक रेस्टोरेंट में काॅफी के लिए बैठ गई।तभी शिखा का फोन बजा,पति का फोन था जिन्हें आने में थोड़ी देर होने वाली थी।

चलो अच्छा है..आठ बजे तक ये आएंगे तबतक हम भी पहुंच जाएंगे..ओह नो मेरा फ़ोन तो पूरी तरह डिस्चार्ज होने वाला है एक पर्सेंट बचा है.. किसी ने फोन किया तो??

तो..तो क्या आफत आ जाएगी?? अरे यार कितना सोचती रहती है सबके बारे में..मायके, ससुराल,सोसायटी, पड़ोसी पति फोन..सबके लिए समय है तेरे पास सिर्फ अपने लिए नहीं है ये कभी सोचा है तूने?

 

गलत क्या है चित्रा, लोगों को मेरी जरूरत है मैं किसी के काम आ रही हूं अपनी जिम्मेदारियां समझ रही हूं तो ये तो अच्छी बात है ना…हां सही है कि इन सब से मैं थक जाती हूं खुद को उतना समय नहीं दे पाती..पर हां रात को नींद बड़े चैन की आती है।




एक मिनट..ये ग्लास पकड़ना और इसे हवा में ही रखना मतलब तुम्हारा हाथ टेबल से टच ना हो–टेबल पर रखे पानी से भरे ग्लास को चित्रा ने शिखा को पकड़ाते हुए कहा।

ये क्या कर रही है तू मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा?

पकड़ कर रख तो सही कितनी देर तक रख सकती है

यार लोग हमें ही देख रहे हैं..ये क्या करवा रही है तू मुझसे?और पांच मिनट हो गए मेरे हाथ में दर्द होने ही वाला है..।

तुझे पता है इस तरह पकड़कर रखने से दस पंद्रह मिनट में तेरे हाथ में दर्द होगा,दो घंटे रखेगी तो हाथ भारी हो जाएगा और अगर चौबीस घंटे इस तरह पकड़े रह गई तो तेरा हाथ सुन्न पड़कर पारालाइज्ड हो जाएगा..मतलब भार तो बराबर ही रहेगा पर तेरी परेशानियां बढ़ती जाएंगी।

तू कहना क्या चाहती है ठीक से बताएगी–ग्लास टेबल पर रखकर शिखा ने पूछा।

देख हमारे जीवन की परेशानियां इस ग्लास के पानी की तरह ही है, जिन्हें हम थोड़ी देर दिमाग में रखेंगे तो कोई बात नहीं, ज्यादा देर रखेंगे तो दुखी रहेंगे और अगर चौबीस घंटे रखते चलेंगे तो हमारा दिमाग ही काम करना बंद कर देगा और हम नाकाम रह जाएंगे…खुद पर काम और जिम्मेदारियां रखो पर उन्हें बोझ मत बनने दो.. दूसरों के साथ और अपनी जिम्मेदारियों के साथ न्याय करने में खुद के साथ जो अन्याय कर रही है हर रोज उसके बारे में सोचा है कभी…और खुद पर ये अन्याय करना बंद नहीं किया तूने तो कल को किसी और की मदद तो क्या खुद की मदद के लायक भी नहीं रहोगी।

पर चित्रा मेरी भी परेशानी तो समझ मैं किसी को यूं ना नहीं बोल सकती..

ना बोलना भी नहीं है..पर परेशान होकर भी जो हमेशा ये चेहरे पर खुशी का मुखौटा ओढ़े रहती है उसे हटा..अगले को भी एहसास हो कि परेशानियां तेरे साथ भी आती है..जिस चीज को दिल के अंदर दबा कर खुद के दिल के साथ अन्याय करती है उसे बाहर आने दे..

ठीक कह रही है शायद तू चित्रा

शायद नहीं…शत प्रतिशत सही बोल रही हूं मैं..अपनी जिंदगी भी जी..अपने लिए भी समय निकाल

पूरी कोशिश करूंगी कल से तेरी बातों पर चलने की,अब चलें…ये आते होंगे डिनर की भी तैयारी करनी है।

कल से नहीं आज से ही,हम खाना आज बाहर से आर्डर कर लेते हैं

पर इनको बाहर का खाना उतना पसंद नहीं है,स्पाइसी होता हैं ना

कोई बात नहीं..हम कम स्पाइसी चीजें आर्डर करेंगे और एक दिन जीजू किसी तरह एडजस्ट कर लेंगे,कैसी वाइफ है तू उन्हें कंवींस नहीं कर सकती

अब कर लूंगी..चल आर्डर करते हैं–शिखा ने फोन उठाते हुए आत्मविश्वास से कहा तो चित्रा को संतोष हो आया कि उसकी बातें शिखा समझ गई है और अपने प्रति जो अन्याय करती आ रही है लगातार वो बंद कर देगी।

#अन्याय 

मीनू झा 

 

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!