“ज़िंदगी दूसरा मौका जरूर देती है”  (कभी खुशी कभी ग़म है) – भावना ठाकर ‘भावु’ 

परिस्थितियों से हार कर अगर ज़िंदगी से विमुख हो गए तो ज़िंदगी जहन्नुम बन जाती है, मेरे साथ हुए हादसे से एक समय में टूट चुकी थी, पर हौसलों ने मेरा साथ दिया। जरूरी नहीं आपकी ज़िंदगी में आने वाला एक इंसान गलत निकला तो दूसरा कोई सही मिल ही नहीं सकता। प्यार भी दोबारा हो सकता है, और ज़िंदगी में वापस खुशियों के फूल भी खिल सकते है। समझ और विश्वास हो तो एक बार रिश्ता टूटने के बाद भी दो इंसान आपस में जुड़ सकते है और प्यार से साथ-साथ ज़िंदगी बिता सकते है। बशर्ते खुद पर ट्रस्ट और सही पात्र का मिलना बहुत मायने रखता है। 

माना कि हर शादी में समस्याएं और उतार चढ़ाव आते है, हम सामंजस्य बिठाते सुलह भी कर लेते है। पर जिस शादी में दो तार ही जहाँ गलत जुड़ गए हो उसे निभाना नहीं ढ़ोना कहते है। और रिश्ते को ढ़ोने से बेहतर है तोड़ दिया जाए। 

मैं ‘अंजली नायर’ 23 साल की उम्र में मेरी शादी हो गई, 25 वें साल में एक बेटी की माँ भी बन गई और 32 साल की उम्र में मेरा तलाक भी हो गया। मैं अपने ही पड़ोस में रहने वाले निशांत से बेइन्तहाँ प्यार करती थी, पर उस वक्त कोई भी कदम उठाने की न उम्र थी न हिम्मत। माँ-बाप को मुझे निपटाने की जल्दी थी बेटी जो थी छुटकारा पाना चाहते थे। जो हाथ आया उसके हाथ में मेरी ज़िंदगी की डोर थमा दी। न माँ-बाप ने मेरी पसंद पूछी, न मैं विद्रोह कर पाई और एक खूंटे से बंध गई। अमर नाम था पति का, मेरी ज़िंदगी की डोर पति रुपी उस शैतान के हाथों में थी। सास ललिता पवार का क्लोन थी और ससुर की वासना रुपी आँखें मुझे नखशिख खा जाती थी। मेरी बिना किसी गलती पर ताने मारना, मेरे हर परफ़ेक्ट काम में भी नुक्श निकालना और अमर के ऑफिस से आते ही मेरी फ़रियादो का पिटारा खोलकर अमर के हाथों पिटवाने में मेरी सास को विकृत आनंद मिलता था। कहते है न स्त्री ही स्त्री की दुश्मन होती है। मेरे आँसू उस स्त्री की छाती में ठंड़ पहुँचाते थे सुकून देते थे।

ससुर नाकारा और निकम्मा पूरा दिन कुर्सी पर बैठकर बीड़ी फूँकता और आते जाते मुझे ऐसे तकता जैसे नज़रों से ही बलात्कार कर रहा हो। मैं डरती, बचती-बचाती रखती खुद को एक पंछी की तरह फ़ड़फ़ड़ाती रहती मेरी आत्मा उस घर में।

अमर को मेरी भावनाओं से कोई लेना-देना नहीं था। पति-पत्नी का रिश्ता उसकी समझ से परे था। उसके लिए मैं सिर्फ़ तन की प्यास मिटाने का ज़रिया मात्र थी। वो मुझे अपनी प्रॉपर्टी समझता था, मेरी मर्ज़ी हो न हो हर रात वहशी बनकर टूट पड़ता था। हद तो तब हो गई पिरीयड़स के वक्त भी नहीं छोड़ता था। और प्रेगनेंट होने के बाद डाॅक्टर के मना करने के बाद भी पूरे नौ महीने तक मेरी देह को मसलता रहा। मैं हाथ जोड़ कर भीख मांगती, पर पति हूँ तेरा ये हक है मेरा कह कर उपर चढ़ जाता और मैं सहम कर चुप हो जाती। मेरी शादी एक प्रेमहीन शादी थी, न उसको मुझसे प्रेम था न मुझे उससे। फिर भी मैंने इस रिश्ते को अपनी बेटी आस्था की वजह से ही 7 साल दिए थे। इस उम्मीद के साथ की शायद अमर का स्वभाव बदल जाए। आस्था के जन्म पर मेरे मुँह पर थूँक दिया अमर ने ये कहकर कि काश तू बांझ ही रहती, किस काम की तेरी कोख जो मुझे वारिस नहीं दे पाई। मैंने भी बोल दिया की धरती तो कोरी करारी होती है मिस्टर अमर जो बीज बोओगे वही उगेगा। बीज तो तुमने बोया मैंने तो सिर्फ़ सिंचा है और मेरे खून से सिंचा बीज बेटी हो या बेटा मुझे जान से भी ज़्यादा अज़िज है। साथ में सास भी खुद बेटी का अवतार होते हुए भी मुझे और आस्था को कोसने का एक भी बहाना नहीं छोड़ती थी, जैसे मैंने बेटी को जन्म देने से कोई गुनाह कर दिया हो।




पर मेरी बिटिया आस्था को भी जब अमर और ससुराल वाले बोझ समझने लगे  और अमर बार-बार मुझे ताना मारने लगा की जब तक तुम मुझे बेटा जनकर नहीं दोगी तब तक मैं समझूँगा ही नहीं की मैं बाप बन गया उसकी वो सोच मेरे आत्मसम्मान पर और मेरी बेटी के अस्तित्व पर आतंकी हमले के समान थी। जब-जब अमर के मुँह से ये ताना सुनती थी मेरा खून खौल उठता था। क्यूँ बेटियों से इतनी नफ़रत? जब बेटियाँ ही परिवार चलाती है और वंश बढ़ाती है। जब किसी घर में बेटियां पैदा ही नहीं होगी तो किसके साथ ब्याहोगे अपने बेटों को? अमर और ससुराल वालों का एक-एक बर्ताव मेरी बर्दाश्त के बाहर था।

माँ-पापा से बात की पर साफ़ मुकर गए, ये कहकर की शादी के बाद बेटियों का असली घर उसका ससुराल होता है, और जैसा भी हो पति परमेश्वर होता है। अब जो है जैसा है आख़िर अमर तुम्हारा पति है, दो वक्त की रोटी तो देता है न? निभाना सीख लो। तुम वापस आओगी तो समाज में हमारी क्या इज्जत रह जाएगी। 

मैं सोचती रहती की रोटी तो लोग कुत्ते को भी डालते है क्या रोटी के टुकड़े के बदले मैं अपना आत्मसम्मान गिरवी रख दूँ? बहुत असमंजस के बाद मैंने फैसला किया कि ऐसे भावहीन इंसान के साथ पूरी ज़िंदगी घूट-घूटकर बिताने से अच्छा है सम्मान के साथ आज़ाद हो जाऊँ। 

मैंने अपने एक दूर के रिश्तेदार विक्रम सिंहा जी जो एक वकील है उसे मेरी ज़िंदगी की सारी हकीकत बताई, और अपना फैसला सुनाया की मैं अमर से तलाक लेना चाहती हूँ। उन्होंने मेरी पूरी मदद की और एक अनमने रिश्ते से आज़ादी दिलवाई। विक्रम सिंह जी ने मुझे और आस्था को एक साल अपने साथ भी रखा। मैंने एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी ले ली और तलाक के बाद, मैंने केवल अपने और आस्था पर ध्यान केंद्रित करने का फैसला किया। अब रिश्तों पर से मेरा विश्वास उठ चुका था।

पर सच कहूँ, समय के चलते मुझे एक साथी की कमी अक्सर महसूस होती रही। लगा की जीवन में कोई एक ऐसा अपना होना चाहिए जिनके कंधे पर सर रखकर मैं अपनी सारी परेशानियों से निजात पा सकूँ। किसीका प्यार, गर्मजोशी, स्नेह और शाम होते ही किसी के घर वापस आने का अहसास और इंतज़ार भी होना चाहिए जीवन में। जब मैंने अपनी दोस्त शालू को इस बारे में बताया, तो उसने मुझे टिंडर में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित किया। मैंने पूछा ये क्या है? तो शालू ने बताया।




यह एक swiping app है ,जिसके तहत आप swiping motion से दूसरे users के फोटो चुन सकते हो। उन चुनिंदा फोटोज़ में से फिर जो फोटो आपकी फोटो के साथ match हो जाते हैं उन्हें दाईं ओर swipe करते हैं और जो फोटो match नहीं करते उन्हें बाईं ओर swipe किया जाता है। इस प्रकार इस app की मदद से तुम मनचाहा साथी ढूंढ सकती हो। उससे बातचीत कर सकती हो और अगर चाहो तो उसे अपना जीवनसाथी भी बना सकती हो। मुझे उत्सुकता हुई पर संदेह भी था कि मैं एक 32 वर्षीय सिंगल मदर थी जो भूल गई थी कि ‘डेट’ करना कैसा होता है, किसी अन्जान लड़के से बात कैसे करते है। मेरे लिए मुझसे ज़्यादा मेरी बेटी आस्था को स्वीकार करने वाला कोई व्यक्ति ढूंढना सर्वोपरि था। पर मैंने सोचा इस वीरान ज़िंदगी को एक किक देने में क्या हर्ज है?

और मैंने टिंडर डाउनलोड किया, मैं कुछ लोगों से मिली और बातचीत भी की।  अपने विचारों से मैच खाते व्यक्ति के साथ कॉफी के लिए बाहर भी गई, लेकिन वो उष्मा, वो लौ और वह चिंगारी उन सबमें गायब थी जिसकी मुझे तलाश थी। वह लोग एक बेहतरीन दोस्त बन सकते थे पर जीवनसाथी नहीं। पर जब मैंने शरद की प्रोफाइल देखी तो लगा की शायद मेरी तलाश को पूर्ण विराम मिल गया है। उनका बायो परफेक्ट था प्रभावशाली व्यक्ति और सबसे बड़ी बात उसके स्टेटस में वो दम था की सालों बाद इसने मुझे वास्तव में हंसा दिया। नैचरली वह मेरे खयालों से बहुत मेल खाता था। हमने थोड़ी देर बातें की और मुझे पता चला कि उसका भी हाल ही में तलाक हो गया है और उसकी एक 9 साल की बेटी काव्या भी है। हम देर रात तक बातें करने लगे, हमारे शौक़, पसंद, नापसंद विचार काफ़ी हद तक मिलते थे। हमारी प्लेलिस्ट एक जैसी थी। पसंदीदा गाने, हमारे अतीत की कहानियां और हमारे भविष्य के सपने साझा करने के प्लानिंग  में दो महीने बीत गए, अब तक उसने मुझे न बाहर मिलने के लिए बुलाया न कोई उत्सुकता दिखाई। मैं थोड़ी घबराई हुई थी, क्या वह मुझे सिर्फ़ एक दोस्त ही समझता है? क्या करूँ मैं खुद पहल करूँ? उसे बुरा तो नहीं लगेगा। उसी दिन शरद ने पूछा क्या हम कहीं पर मिल सकते है? मैंने तुरंत उसका प्रस्ताव स्वीकार कर लिया जैसे ही हम मिले हम दोनों को लगा की हम दोबारा प्यार में पड़े चुके है। 




हम दोनों ने कमिटमेंट किया ताउम्र एक दूसरे का हाथ थामे रखने का। वह बहुत मजाकिया, विचारशील और रिश्ते की परवाह करने वाला था। हमारी डेट 3 घंटे तक चली, हमें पता ही नहीं चला कि समय कितनी जल्दी बीत गया। और उसके बाद हम हर रात मिलते थे। हम कराओके, मूवी और यहां तक ​​कि डांस करने के लिए बाहर गए। प्यार प्यार होता है अगर शिद्दत से चाहने वाला कोई मिल जाए तो परिस्थितियों से प्यार होने लगता है। नए प्यार की भावना नहीं बदलती, चाहे आप कितने भी पुराने क्यों न हो जाएं।

और एक महीने बाद, जब हम एक-दूसरे के साथ शिद्दत से जुड़ गए और हमें लगा की अब वक्त आ गया है तब हमने अपनी बेटियाँ, आस्था और काव्या को एक-दूसरे से मिलवाया। पहले तो मैं इसे लेकर नर्वस थी की बच्चियाँ हमारे रिश्ते को अपनाएंगी या नहीं, लेकिन जब हम पहली बार एक साथ मिले, तो दोनों एक दूसरे के साथ ऐसे घुलमिल गई मानों बहुत समय से पहचान हो। और ईश्वर कृपा से दोनों के शौक़ भी एक जैसे निकले स्केटिंग, पेंटिंग और कार्टून देखना।

हमने बच्चियों को समय देने के लिए वीकएंड में डिनर पर जाना शुरू किया।  और बोर्ड गेम खेलने, रोड ट्रिप पर जाने और अपनी पसंदीदा फिल्में देखने जानें लगे। शरद और काव्या में, आस्था और मुझे घर मिला परिवार मिला। और उन दोनों को जीवन जीने का साहस मिला।

अब मैं उत्साहित हूँ अपने नये जीवन को नवपल्लवित करने के लिए, अपने भीतर बसे प्रेम की सारी नमी से सिंचकर दो नन्हें पौधों के सहारे। शरद ने मुझे विश्वास दिलाया है कि जीवन में सिर्फ़ एक बार प्यार करने जैसी कोई चीज नहीं होती, प्यार फिर से हो सकता है और जब ऐसा प्यार होता है तो आपको बस थोड़ा सा विश्वास करना होगा और इस प्यार को अपने जीवन में जगह देनी होगी फिर ज़िंदगी गुलज़ार ही गुलज़ार है, कभी खुशी तो कभी गम है।

#कभी_खुशी_कभी_ग़म 

भावना ठाकर ‘भावु’ (बेंगुलूरु, कर्नाटक)

 

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