” साक्षी बेटी..जल्दी-से तैयार हो जा…, कल तूने जिस लड़के की प्रोफ़ाइल देखकर मुझे नंबर दिया था ना..उससे मैंने बात की..वो लोग तैयार हैं…मैंने उन्हें तीन बजे इंपीरियल होटल में आने को कह दिया है..होटल में भी फ़ोन करके टेबल भी बुक कर दिया है..अब तू देर मत कर…।” कहते हुए मनोरमा बहुत उत्साहित थी।
” लेकिन मम्मी..वो सास-ससुर वाला लफ़ड़ा…।”
” अरे वो लोग तो तुरंत मान गए..बोले कि चिंता मत कीजिए.. हम आपकी बेटी-दामाद के साथ नहीं रहेंगे…।” कहते हुए मनोरमा का चेहरा खिल उठा था।
मनोरमा और उनके पति अपनी वर्किंग बेटी के लिये सुयोग्य वर तलाश कर रहें थें।माँ-बेटी ने शर्त रखी थी कि लड़के के साथ उसके माता-पिता नहीं रहेंगे।इसी वजह से कई अच्छे रिश्ते हाथ से निकल जाते थे।फिर विनीत नाम का लड़का जो एक मल्टीनेशनल कंपनी में ज़ाॅब कर रहा था, के पिता ने उनकी शर्त मान ली।वो बेटी के साथ उन्हीं से मिलने जा रहीं थीं।
इंपीरियल होटल के मुख्य द्वार पर विनीत और उसके माता-पिता ने माँ-बेटी का हँस कर स्वागत किया।सब कुछ तय हो ही रहा था कि विनीत के पिता मनोरमा के हाथ में एक पेपर थमाते हुए बोले,” बहन जी..इस पर साइन कर दीजिये तो बात पक्की हो जाएगी।”
” साइन! इसमें लिखा क्या है भाईसाहब?” हँसते हुए मनोरमा पूछने लगी तो विनीत बोला,” आंटी..इसमें लिखा है कि शादी के बाद मेरे माँ-पापा मेरे पास नहीं आएँगे..मुझ पर उनकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं रहेगी..।”
” अरे वाह..लाओ-लाओ..मैं साइन कर देती हूँ।” मन ही मन प्रसन्न होती मनोरमा बोलीं तो विनीत बोला,” आगे यह भी लिखा है कि पिता जी की संपत्ति पर मेरा या मेरी पत्नी का कोई अधिकार नहीं होगा।जो उनके साथ रहेगा..उनके सुख-दुख में उनका साथ देगा, वही उनका उत्तराधिकारी होगा…अब आप यहाँ हस्ताक्षर कर दीजिए।” कहते हुए उसने मनोरमा के हाथ में पेन दे दिया।उसने तुरंत पेन मेज पर रख दिया।
” लेकिन तुम तो…।” मनोरमा चौंक गई।तब विनीत बोला,” आंटी..शर्त आपने रखी थी, मेरे पिता ने सिर्फ़ आपको जवाब दिया है।जब मैं अपने जन्म देने वाले..पाल-पोसकर बड़ा करने वाले..पढ़ा-लिखाकर इंसान बनाने माता-पिता का सेवा नहीं कर सकता..उनके सुख-दुख में साझेदार नहीं बन सकता तो उनकी संपत्ति पर मेरा अधिकार कैसे हो सकता है..क्यों साक्षी..मैं सही कह रहा हूँ ना..।”
अब मनोरमा बौखला गई,” ठीक है..।” उनकी आवाज़ लड़खड़ाने लगी।बोली,” घर जाकर आपको जवाब देते हैं।चलो साक्षी..।” बेटी का हाथ पकड़कर मनोरमा जाने लगी, उन्होंने एक बार मुड़ कर देखा।उन्हें उम्मीद थी कि शायद विनीत या उसके पिता रोक लेंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ।विनीत के पिता उन्हें जाते देख मुस्कुराए जैसे कह रहें हो, बहन जी..ज़माने की खबर तो हमें भी है..
विभा गुप्ता
स्वरचित, बैंगलुरु