” भुखली” – उमा वर्मा

अम्मा बहुत बीमार रहने लगी थी ।उनको देखने के लिए मै अपने बेटे बहू के साथ जा रही थी ।करीब दस किलोमीटर दूर वे बेटे बहू के साथ रहती थी ।वैसे तो हमेशा उनसे मिलने हमलोग जाते रहते थे ।लेकिन दो दिन से तबियत कुछ अधिक ही खराब थी तो जाना जरूरी हो गया ।थोड़ी दूर जाने के बाद ही हमारे कार का पहिया पंक्चर हो गया ।वहां पर हाट लगा हुआ था ।दूसरी तरफ कुछ झोपड़ियां  बनी हुई थी ।हमने किसी से मदद की उम्मीद में नजर दौड़ाई।तभी हमारे आसपास आदीवासी बच्चे और महिलाएं जमा हो गये।उस भीड़ में ” तीतो” भी थी।उसने और उसके पति ने हमारे पैर छू कर प्रणाम किया ।” कैसी हो तीतो” ? और भुखली कहाँ है? उसने हाथ उपर करके इशारा किया ” वह उपर चली गई ” ।तीतो हमारे यहाँ चौंका बर्तन करती थी ।बहुत पहले ।उसका पति हमारी गाड़ी ठीक करने लगा ।हमें  बहुत तकलीफ हुई भुखली के बारे मे जानकर।दो साल तीतो ने हमारे यहाँ काम किया ।फिर एक दिन अपने साथ एक गंदी सी लड़की को लेकर आई ।

उम्र करीब तेरह चौदह वर्ष ।नाक सुड़कती, मैली सी फ्राक पहनी हुई, बेतरतीब बिखरे बाल ।” आज से यह मेरी बहन ही आपके घर का काम कर दिया करेगी ” ” और तुम?” फिर लजाती हुई बोली ” मेरी शादी होने वाली है तो हम कैसे काम करेंगे ।” मन तो नहीं मान रहा था कि भुखली को रखें ।इतनी गंदी लड़की, ना बाबा, ना । फिर पति देव ने समझाया ” क्या हर्ज़ है? तुम उसे सफाई के बारे मे समझा देना ” फिर आजकल मिलती कहाँ है कोई? नहीं रखना है तो फिर अपने से सब करो।मेरे पास कोई चारा नहीं था ।फिर आज कल कुछ स्वास्थय की परेशानी भी थी।परिवार बड़ा था ।सबकुछ संभालना मुश्किल था तो हार कर उसे रख लिया ।” ठीक है, कल से तुम आ जाना ” लेकिन जरा ढंग से नहा धो कर साफ से आना ” ।उसने हाँ में सिर हिलाया ।दूसरे दिन तय समय पर वह आ गयी ।उसने साफ कपड़े पहनकर, कंघी करने के बाद मुझसे पूछा ” ठीक है ना ” ” हाँ, ठीक है ” ।मैंने उसे काम समझा दिया ।दो दिन ठीक से किया ।




फिर तीसरे दिन आते के साथ अखबार लेकर बैठ गयी ।मुझे बहुत गुस्सा आया ” ये क्या भुखली, अभी सारा काम पड़ा है, तुम पेपर पढ़ने लगी हो” मुझे पसंद नहीं था कि हम से पहले वह हमारे अखबार पढे।हम इन्तजार करते रहे पेपर का।” क्या हुआ, थोड़ा पढ़ लिए तो? फिर तो आप ही पढ़ियेगा।” उसकी जबानदराजी मुझे अच्छी नहीं लगी ।हालांकि काम वह मन लगा कर और सफाई से करती थी ।मैंने उसे अपनी बेटी के कुछ कपड़े दिये।वह लेकर खूब खुश हो गई ।वह आकर हमें चाय बना कर पिलाती।कभी कभी कुछ खाना भी बना देती ।अब वह बहुत साफ सुथरा रहने  लगी थी ।लेकिन उसकी वह  आदत से हम परेशान थे ।आती और पहले अखबार और पत्रिकाएं  पढ़ती।उसके बाद ही हमें अखबार मिलता ।कुछ कहने पर चट से जवाब होता ”  काम तो करते ही हैं ना ” फिर मैंने कुछ कहना ही छोड़ दिया ।वह मानेगी नहीं ।धीरे-धीरे वह ज्यादा ही खुलने लगी ।एक दिन मैंने पूछा ” तुम्हारा नाम भुखली किसने और क्यों रखा “? ” जानते हैं जब मेरा जनम हुआ था तो बहुत अकाल पड़ा था ।सब लोग भूख मरने लगे थे ।इसीलिए बाबा ने मेरा नाम भुखली रख दिया ।

बोले भूख के समय आई है तो भुखली रहेगी ।अब वह रोज समय पर आती ।सब काम से पहले पेपर पढ़ती।चाय बना कर देती ।खुद पी लेती  फिर काम निपटा कर अपनी कहानी शुरू कर देती।” जानते हैं माँ, नदिया के पार  पिक्चर हम बाईस बार देख लिए ।” ” क्यों? ऐसी क्या बात है इसमें? ” वह लजाती हुई बोली  भाभी के भाई  हमको बहुत अच्छा लगता है इसलिए ।मै समझ गई कि प्रेम का भूत सवार है इसपर ।तो क्या वह तुम से शादी करेगा? ” पता नहीं ” संक्षिप्त उत्तर था।थोड़ा समय बीतने पर अब वह कभी-कभी गायब हो जाती ।चार पांच दिन के बाद हम उसे घर से बुला कर लाते ।फिर सब कुछ ठीक चलने लगा था कि अचानक फिर गायब हो गई ।मेरा अपने पति से नोकझोंक चलता ” आपही ने कहा था कि रख लो,देख लिया नतीजा?” पन्द्रह दिन के बाद अचानक वह आ गयी ।” क्या भुखली? कहाँ चली गई थी? कितना परेशान हो गई हूँ देखो।” वह शुरू हो गई– घर में बाबा ने बहुत पीटा एक दिन ।हमको गुस्सा लगा तो चले गए हटिया ।चंडीगढ़ एक्सप्रेस आ रही थी बस हम कूद पड़े सामने ।मेरे उपर से गाड़ी पास कर गई ।देखिए, चौदह टांका लगा था सिर पर ।खाली पैर आ गए थे तो फिर घर जाकर चप्पल पहने तब कूदे।मुझे उसकी बात पर हंसी भी आई ।” लेकिन शुक्र मनाओ कि तुम बच कैसे गई ” ” हाँ तो, हम रेल के पटरी के बीच में गड्ढा था न, उसी में गिरे थे इसलिए बच गए ।




चलो अच्छा हुआ ।अब तो बाबा नहीं मारेगा।।उसने फिर काम करना शुरू कर दिया ।इस बीच मेरी बेटी का ब्याह तय हो गया ।शादी के धूम धाम से खुश वह हमारे दिए कपड़े पहनकर आती और चूंकि जाड़ा का मौसम था तो हमारे घर के शाल उठा कर ओढ़ लेती हम तो वैसे ही काम में फंसे हुए थे क्या कहते ।शादी निबट गया ।फिर भुखली ने  काम छोड़ दिया ।दूसरी जगह काम करने लगी।अब हमने उसे छोड़ दिया जाए जहां जाना है ।दूसरी काम वाली की खोज होने लगी ।लेकिन मन लायक नहीं मिल रही थी ।किसी तरह खुद हमलोग अपने काम कर रहे थे दस दिन के बाद फिर वह आ गयी ।” रख लीजिये हमको, अब कही नहीं जायेंगे ” ” क्यों तुम तो दूसरी जगह कर रही थी? क्या हुआ? ” वह बहुत खराब आदमी है ।हमको बोला कारखाना में नौकरी लगवा देंगे ।लेकिन हमको खुश करो।और वह हमको अपने पैर में तेल लगाने बोलता था ।बहुत खराब था वह ।उसको कीड़े पड़ेगा।” अच्छा ठीक है ।कल से आ जाना ।फिर एक साल रही वह ।और आदत के मुताबिक फिर गायब हो गई ।अब हमने उसके बारे में सोचना छोड़ दिया ।मेरे पति रिटायर कर गये थे ।हमने दूसरे जगह अपना मकान बना लिया और शिफ्ट हो गये ।हम भी अपने बाल बच्चों में व्यस्त हो गये ।चार साल के बाद एक छोटी सी बीमारी में पति चले गये ।उस दौरान घर बहुत लोगों से भरा हुआ था ।बहू पर काम का बोझ बढ़ गया था ।

हम सोच ही रहे थे कि कहाँ से, किसे खोज कर लायें कि अचानक भुखली का पदार्पण हुआ ।” क्या रे,कहाँ थी इतने दिन?” फिर बताने लगी – अब बहुत बीमार रहने लगी हूँ, काम नहीं कर पाती ।खाली घर में रहते हैं ।माँ बाबा  खत्म हो गये।।भाभी के भाई से शादी कर लिए थे ।वह भी बहुत पीता था और मना करने पर मारता था ।उसको भी छोड़ दिये ।दो दिन से खाना नहीं खाए हैं ।अब कुछ खाकर खत्म हो जायेंगे ।” नहीं ऐसा मत सोचो ” समय का सामना करो” जबतक चाहो हमारे यहाँ रहो।उसे हमने भर पेट खाना खिलाया ।वह भी तेरह दिनो तक सब संभालती रही ।उनका सब कुछ खत्म होने के बाद फिर वह अचानक एक दिन बिना बताये चली गयी ।और फिर कभी नहीं मिली।और आज उसकी जाने की खबर सुनकर मन बेचैन हो गया ।एक लगाव सा हो गया था उससे ।बहुत साफ दिल की,बहुत वाचाल,बहुत पढ़ाई पर ध्यान देने वाली ।बहुत अच्छी काम करने वाली थी वह ।आज भी उसकी याद आती है ।कहती थी एक बार मेरे बारे में भी लिखिएगा ।छपने पर हम पढ़ेगे।लिख तो रही हूँ पर कहाँ हो तुम भुखली? कैसे पढ़ोगी।? — मैं कहाँ अतीत में खो गयी थी कितना समय बीत गया ।हमारी गाड़ी तीतो के पति ने ठीक कर दी थी ।अम्मा के पास पहुंचे तो वह ठीक नहीं थी।ईश्वर की मर्जी के आगे किसी की कहाँ  चलती है ।मै वहाँ ही रह गई ।बेटा बहू दोनों बहुत अच्छे हैं लेकिन बेटी का भी तो फर्ज बनता है कि माँ की सेवा करे।किसी ने कहा  गीता, रामायण पढ़ने से प्राणी को मुक्ति मिल जाती है और मैंने अपनी माँ के लिए सबकुछ पढ़ा ।कुछ दिन के बाद माँ भी नहीं रही।यादें ही तो जीवन का सहारा होती हैं ।सारे पात्र एक एक कर आखों के सामने आते रहते हैं जैसे मेरे पिता, पति, माँ ,भुखली और अब मेरी प्यारी बेटी भी ।लेकिन यही जीवन का अन्त नहीं है ।चलते रहना ही जीवन है ।झारखंड में लोगों के नाम ऐसा ही रहता है ” जैसे भुखली, इतवारी,सोमारी इत्यादी—। 

स्वरचित, मौलिक, व ,अप्रकाशित 

उमा वर्मा, नोएडा ।

“बेटियाँ, पांचवा जन्मोत्सव ” कहानी श्रृंखला 4,

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