भाई साहब.. आपकी लड़की की कुंडली में तो मांगलिक दोष है हम यह रिश्ता नहीं कर सकते शादी विवाह का मामला है बच्चे तो ना समझ हैं, कैसे मांगलिक लड़की से विवाह कर ले माना आपकी बेटी और मेरा बेटा डॉक्टर है एक दूसरे को पसंद करते हैं किंतु हम तो इसी समाज में उठते बैठते हैं आप को तो पता है मांगलिक लड़की लड़के के लिए आजीवन दुखदाई होती है!
अरे भाई साहब… आप कैसी बातें कर रहे हैं आज के जमाने में कौन इन बातों को मानता है आप खुद इतने पढ़े लिखे समझदार हैं आपका बेटा और मेरी बेटी एक दूसरे को पसंद करते है और हमें क्या चाहिए, दोनों बच्चों को आपस में साथ रहना है और रिश्ते तो ऊपर वाले बनाकर भेजता है हम और आप कौन होते हैं!
मान लो अगर हमने कुंडली मिलवाई नहीं होती तब क्या पता चलता की लड़की मांगलीक है या नहीं! राधेश्याम जी.. अब जब पता चल गया है तो जानते हुए आग में हाथ कैसे डाल दे? हम तो यह रिश्ता किसी भी सूरत में नहीं करेंगे और ऐसा कहकर राजकुमार जी वहां से अपने बेटे को और परिवार को लेकर आ गए !
रितेश की अपने पापा के सामने एक न चली! अगली बार किसी और जगह से रिश्ता आया वह लड़की भी डॉक्टर थी वैसे भी राजकुमार जी को अपने डॉक्टर बेटे के लिए डॉक्टर बहू ही चाहिए थी! सब कुछ सही होने वाला था की फिर राजकुमार जी बिगड़ गए ….नहीं नहीं.. लड़की लड़के से छोटी होनी चाहिए, चाहे 1 महीने छोटी हो, यहां तो लड़की 1 महीने बड़ी है हम कैसे संबंध कर सकते हैं?
कल को हमारी समाज बिरादरी में बदनामी हो जाएगी! राजकुमार जी के बेटे रितेश ने कहा भी …पापा अब क्या दिक्कत है निशि एक महीने ही तो बड़ी है बाकी तो हर तरह से मेरे लायक है, मेरे ही विभाग में है! राजकुमार जी ने अपने बेटे को डांटते हुए कहा… तू चुप कर शादी संबंधों के मामले में तू अभी कुछ नहीं समझता तूने सिर्फ पढ़ाई करी है दुनियादारी नहीं देखी,
राजकुमार जी ने विनोद जी को हाथ जोड़ते हुए कहा… देखिए भाई साहब हम बड़ी लड़की से अपने बेटे का विवाह नहीं करेंगे! तब विनोद जी बोले ….भाई साहब कहते हैं बड़ी बहू के बड़े भाग्य तो बड़ी लड़की तो बड़ी किस्मत से मिलती है! नहीं नहीं.… हमें तो यह रिश्ता नहीं करना और राजकुमार जी वह रिश्ता भी ठुकरा कर आ गए और इसके बाद उन्होंने न जाने कैसे और कितने ही रिश्ते ठुकरा दिए
किंतु उनके बेटे का कहीं भी शुभ विवाह का योग बना ही नहीं, इसी प्रकार 3 साल निकल गए, बेटे की भी उम्र काफी हो गई थी इस बार उन्हें एक जगह थोड़ा बहुत समझौता करना ही पड़ा और रितेश का संबंध आशिमा के साथ हो गया, हालांकि इस बार रितेश को लड़की में कम दिलचस्पी थी किंतु उसने भी सोचा ठीक है लड़की डॉक्टर भी है सुंदर है और धीरे-धीरे लगाव हो ही जाता है
और इस प्रकार शुभ विवाह की बेला भी आ गई और आशिमा रितेश के साथ फेरें लेकर उस घर में आ गई! शुरू शुरू में तो सब कुछ अच्छा चलता रहा, 8-10 दिन तो उनके घूमने फिरने में ही निकल गए असली परेशानी तो अब शुरू होने वाली थी, आशिमा का विभाग ऐसा था कि जहां उसे दिन और रात दोनों की ड्यूटी देनी पड़ती थी क्योंकि वह स्त्री रोग विशेषज्ञ थी
रितेश तो केवल 9:00 बजे से 3:00 बजे तक ही अस्पताल में रहता और उसके बाद घर पर आ जाता वह चाहता इस समय आशिमा भी उसके साथ हो किंतु आशिमा किसी किसी दिन तो काफी समय तक घर पर रहती पर कई बार आपातकालीन स्थिति में उसे अस्पताल भागना पड़ता, डिलीवरी के केस ही ऐसे होते हैं जिनमें ना दिन का पता होता है
ना रात का पता होता और इसी बात से रितेश चिढ़ने लगा ,रितेश आशिमा के साथ कहीं भी जाने का कार्यक्रम बनाता कि अस्पताल से फोन आ जाता और आशिमा सब कुछ छोड़-छाड़ कर अस्पताल चली जाती उसको रात-रात भर आशिमा का अस्पताल में रहना बिल्कुल पसंद नहीं था, कई बार उसे शक भी होता कि कहीं आशिमा जानबूझ कर ही अस्पताल में तो नहीं रुकती !
एक दिन आशिमा ने रितेश को समझाया ….देखो रितेश तुम तो जानते ही हो कि मेरा कार्य ऐसा है जहां दिन और रात का कोई मतलब नहीं है मुझे किसी भी क्षण अस्पताल से बुलावा आ सकता है मैं हमेशा तैयार रहती हूं और तुम्हें भी इसके लिए तैयार रहना पड़ेगा! तब रितेश बोला …अच्छा तुम्हें लगता है मेरा तो कोई काम ही नहीं है सारा काम तुम ही करती हो तुम्हारे बिना तो जैसे दुनिया में बच्चे पैदा ही नहीं होंगे!
नहीं रितेश ऐसा कुछ भी नहीं है किंतु मैं अपने कार्य से पीछे नहीं हट सकती मैं एक डॉक्टर हूं और यहां लोग मेरे भरोसे अस्पताल में आते हैं! अच्छा जब काम करने का इतना ही शौक था तो तुमने शादी ही क्यों कि? रितेश तुम समझ क्यों नहीं रहे किसी बात को! तब रितेश बोला …..एक काम किया करो तुम 7:00 बजे के बाद अपने फोन को बंद कर दिया करो
जिससे ना तो अस्पताल से तुम्हें बुलावा आएगा और ना तुम जाओगी! नहीं रितेश मैं ऐसा कुछ भी नहीं करूंगी और तुम एक डॉक्टर होकर ऐसी बेवकूफ वाली बातें कैसे कर सकते हो और धीरे-धीरे करके एक समय ऐसा आया कि उनका संबंध तलाक की कगार पर आ गया! रितेश की जिद्द के आगे आशिमा कैसे अपने हथियार डालती क्योंकि रितेश तो गलत जिद्द करके पकड़ा हुआ था!
आशिमा ने कई सालों तक रितेश के साथ समझौते किए किंतु आखिरकार उनका तलाक हो ही गया इतने सारे बच्चों को दुनिया में लाने वाली आशिमा अब तक मां नहीं बन पाई थी इस बात पर भी रितेश और उसके पूरे परिवार वालों ने आशिमा का जीना हराम कर रखा था और एक दिन आशिमा सब कुछ छोड़कर अपने घर आ गई
और फिर वह तन मन से अपने अस्पताल के लिए समर्पित हो गई! कुछ समय बाद आशिमा शहर की सबसे बड़ी स्त्री रोग विशेषज्ञ बन गई! आशिमा ने दूसरी शादी नहीं की क्योंकि उसने भी सोच लिया अगर उसका शुभ विवाह उसके भाग्य में होता तो रितेश के साथ कैसे भी निभ जाता! आज राजकुमार जी को अपने बेटे के अकेलेपन को देखकर यह एहसास होने लगा कि जहां ईश्वर की मर्जी होती है
वहां अपनी मर्जी नहीं चल सकती, उन्होंने अपने बेटे के सुखी जीवन के लिए अच्छे-अच्छे संबंधों को ठुकरा दिया था और जब उनकी पसंद का संबंध रितेश के साथ हुआ उसमें वह कौन सा खुश रह पाया! शुभ विवाह तो वह होता है जिसमें पति-पत्नी और पूरा परिवार सुख से रहे खुशी-खुशी एक साथ रहे ना कि आए दिन के क्लेश होते रहे,
हो सकता है रितेश का विवाह मांगलिक लड़की से या अपनी उम्र से बड़ी लड़की के साथ होता तो शायद वह सुखी रह पाता! इसलिए जो होना होता है वह ईश्वर की मर्जी से होता है रितेश की किस्मत में शुभ विवाह का योग था ही नहीं अन्यथा आज उसे अकेले जीवन नहीं व्यतित करना पड़ता!
हेमलता गुप्ता स्वरचित
कहानी प्रतियोगिता (शुभ विवाह) .
“ यह कैसा शुभ विवाह”