वो रद्दी वाला  – दीपा माथुर

वो रद्दी वाला  – दीपा माथुर

सुरेखा  वो रद्दी वाला सद्दाम भी ना सोच ही रही थी तभी मोबाइल की रिंग टोन ने जागते हुए स्वप्न मै विघ्न डाल दिया।

कान की मशीन लगा कर फोन रिसीव किया

हेल्लो कोन तनिक जोर से बोलो।

मै आपका रद्दी वाला”

“सद्दाम”

“हा”

“बहुत लंबी उम्र है रे तेरी”

तुझे ही याद कर रही थी”

अच्छा !”क्यों भाभी”

बस बूढ़ी आंखो में पुरानी यादें गोता खां ही जाती है।

चल तू बता कैसा है?

“बस भाभी आपका आशीर्वाद है।

और तेरी बीवी सुनंदा कैसी है?”

“भाभी सुनंदा तो नहीं रही”

“ओह”

कब, कैसे?

बस कोरोना ने घेर लिया।

“तेरी बेटियां! वो कैसी है?

तुम ना कहती थी “मत परेशान हो सद्दाम बेटियां तो किस्मत लिखा कर लाती है”

देखना तेरी भी किस्मत बदल देंगी”

वहीं हो रहा है भाभी बड़ी बेटी पढ़ लिखकर सरकारी स्कूल में पढ़ाती है,उससे छोटी वंदना एयरफोर्स में ऑफिसर है,उससे छोटी रेखा डॉक्टर है।”

अरे वाह रे सद्दाम बड़ी तरक्की कर ली”

नजर ना लगे।”

“सब तुम्हारा आशीर्वाद और प्रेरणा है।

तभी भाभी को खासी आने लगी।

भाभी पहले दवाई ले लो फिर बात कर लेंगे।

दोनों ने फोन रख दिया।

पानी पीने के बाद भाभी( सुरेखा) अतीत की यादों में खो गई।

 मोहल्ले में रोज रद्दी बेचने आता था ये सद्दाम।

छोटा सा,भोला भाला लड़का।

सुरेखा की सासू जी सप्ताह में एक बार रद्दी जरूर बेचती थी।

सुरेखा के पति (राधेश्याम ) की दूकान थी।

 दिनभर दूकान संभालते ।

सुबह का खाना टिफिन पहुंचाया जाता था शाम को आकर खाना खाया गट्टे पर यार दोस्तो के साथ ताश खेलने बैठ जाते,रात देर तक घर आते थे। चार माह बाद ही केंसर हुआ और भगवान को प्यारे हो गए।

सुरेखा  की जिंदगी बेबस और लाचार बन कर रह गई थी 

ऊपर से सासू मां बात बात पर ताने मारना।

पूरा घर काम जेठानी के पांच लड़के थे ।पूरे दिन उनको लेकर कमरे में बैठी रहती।कमरे से बाहर तो बस हुकुम

चलाने की परम्परा बना रखी थी।

मां ,बाप के घर से कुछ सीख कर भी आईं हो ?

कोई काम ढंग से नहीं करती।आज खाने में बच्चे खीर पूरी खाएंगे ।

कमी पैशी सासू मां पूरी कर देती।

‘खाना बनाने से पहले छोरो से पूछ लिया कर देख कितने कमजोर हो गए है।’

सारे दिन की थकी हारी को कोन पूछने वाला था?

पढ़ने में बहुत होशियार थी ” सुरेखा”

कक्षा में प्रथम आती थी ।

गुरुजी तो तारीफ करते नहीं थकते थे स्कूल मै आल राउंडर का खिताब मिला हुआ था।

पर मां के जाने के बाद दुनिया ही बदल गई।

पिताजी ने सुरेखा की देखभाल का बहाना लगा कर जल्दी ही दूसरी शादी  कर ली ।

पिता जी तो काम के बहाने अक्सर आसाम जाते थे।

पीछे से मां ने स्कूल भेजना बंद कर दिया।

घर  का काम कोन करेगा?

स्कूल से गुरुजी भी समझाने आते थे पर” मेरी तबियत ठीक नहीं रहती कहकर टाल दिया जाता था।

एक साल पूरा भी नहीं हुआ था एक नन्हा बाबू आ गया मां की गोद में।

बस फिर तो मोहर ही लग गई।

एक दिन मां ने पिताजी से साफ साफ कह दिया देखो मेरा लल्ला  छोटा है इसका ध्यान रखूं या घर काम करू

इसीलिए सोचती हूं अब सुरेखा को स्कूल छुड़ा दू”

पिताजी कहा टालने  वाले थे मां की बात बस तब से ही घर का काम पाती आ गया।

एक दिन पड़ोस की राधा काकी ने ये रिश्ता सूझा दिया।

” लड़का तो दुज्वर है पर बिन दहेज के शादी करवा दूंगी “लक्ष्मी” सुन हमारे दूर की रिश्तेदारी में ही है”

और अच्छा है ना ” तेरे सिर से बोझ हटे 

“हिंग लगे ना फिटकरी रंग चोखा”

मां तैयार हो गई बस अब क्या मेरी डोली सज गई।

और यहां आकर उतर गई।

तब से ही सुरेखा तिल तिल कर मर रही थी ।

राधेश्याम जी भी भाभी के गाए गाए ही चलते थे।

सुरेखा को लगने लगा था की कुएं से निकल कर खाई में गिर गई।

पर समय का फैर बदलता रहता है।

एक दिन जेठानी की बहन की शादी 

में सब दूर गांव गए थे ।सुरेखा को।मकान की देखभाल के लिए छोड़ गए थे।

तभी सद्दाम रुद्दी बेचने आ गया।

दरवाजा खटखटाया सुरेखा ने दरवाजा खोला सद्दाम बोला ” क्यों भाभी  माताजी रुद्दी नहीं बेचेगी “

नहीं नहीं और जैसे ही दरवाजा बंद करने लगी उसकी नजर रद्दी के ठेले पर रखी पुरानी किताबों पर पड़ी।

सुरेखा तुरंत रद्दी के ठेले के पास पहुंच गई।

बोली ” सद्दाम ये किताबें”

हा भाभी “रद्दी है

सुरेखा ने कहा ” अरे पगले किताबे कभी रद्दी नहीं होती।

तू क्या मुझे बेच देगा”

“कितनी पढ़ी हो भाभी “

“बस दसवीं”

पर मुझे किताब पढ़ने का शौक है”

“ठीक है तो आप ले लो “

“कितने रुपए लेगा “

देखो भाभी वैसे तो मुझे 10_ 10  में पड़ेगी तुम 8 रुपए में ले लो”

“सुन पर ये बात किसी को ना बताना “

नहीं नहीं भाभी विश्वास रखो तुम पढ़ो ,मै और अच्छी अच्छी किताब लाकर दूंगा”

नहीं रे” किसी को पता चल गया तो”

“भाभी तुम पढ़ो बाकी टेंशन मुझ पर छोड़ दो।”

सुरेखा के मन में एक आशा की किरण जगमगाने लगी।

जब भी समय मिलता उन किताबों को पढ़ने लगती 

अब मन लगने लगा था।घर का काम और किताबो की दुनिया।

बाकी फालतू बातो पर से ध्यान हट गया था।

ना ही किसी की बात दिल से लगाती।

अब चेहरे पर मुस्कुराहट आने लगी थी ।

शादी से आने के बाद की बात है।

एक दिन भारी दुपहरी जैठ जी घर आए माताजी से बतिया रहे थे।

गाव की प्राइवेट स्कूल में एक महिला चपरासी चाहिए दसवीं पास ,पगार दो हजार देंगे।

सोच रहा हूं सुरेखा को भेज दूं।करती भी क्या है यहां?

कुछ पैसे ही आयेगे ।

बोल मां क्या कहती है?

बात तो सही कह रहा है आजकल तो गाव में महिलाएं नरेगा में जाती है इसको तो स्कूल ही भेजेंगे ।

हा पर घर का काम ?

देखो जी मुझसे नहीं होगा तुम्हारे चार चार बच्चो का काम,घर का काम  जेठानी  जी आकर चिल्लाई।

सुरेखा सुन रही थी मन ही मन खुश हो रही थी।

पर आशंका भी थी क्या पता हा होंगी या ना।

माताजी ने कहा ” सुबह ,शाम का काम कर देंगी 

सोच घर बैठे रुपए आएगे।

हा,हा ठीक है।सबकी सहमति बन चुकी थी।

दूसरे दिन जैठ जी ने स्कूल में जाना शुरू करवा दिया ।

स्कूल में काम के साथ साथ सुरेखा पढ़ने लगी थी।

पुस्तकालय से 12 वी किताबे निकलवा ली थी।

जब परीक्षा के फार्म भरे गए प्राइवेट रूप से सुरेखा ने भी भर दिया।

और परीक्षा में अच्छे अंक से पास भी हो गई।

इन सब बातो का राजदार सिर्फ सद्दाम ही था।

एक दिन गुरुजी से बात करके सुरेखा ने STC  का फॉर्म भरवा दिया।

पर अड़चन थी कि घर के लोग ट्रेनिंग करने नहीं भेजेंगे ।

पर स्कूल के गुरुजी ने घर आकर जैठ जी को समझाया

” देखो रामलाल जी सुरेखा बहुत होशियार है इसका फायदा उठाइए इसको मास्टर की ट्रेनिंग में भेज दीजिए

दो साल मै ही 40,000-50,000 रुपए कमा लेगी।

आपके आराम हो जाएगा।।

रामलाल जी बोले ” गुरुजी खर्चा?

रामलाल जी बोले वहां छोटे छोटे बच्चो को पढ़ा कर जो रुपए आएगे फीस भर देंगी।और बचेगा वो आप ले लेना।

राम लाल जी ने इतनी बड़ी रकम सुनकर तुरंत हा भर दी।

बस फिर क्या था सुरेखा ने कर लिया अपना सपना पूरा।

सरकारी विद्यालय में अध्यापिका बन गई।

और सद्दाम की लड़कियों को भी पढ़ाने लगी।

पर ये खबर रामलाल जी को लग गई ले आए जेठानी और माताजी को और भला बुरा कहने लगे।

किसकी  लडकियो को पाल रही है?

जानती भी है मुसलमान है वो। रद्दी वाला”

अपनी नाक कट जाएगी अभी तो गांव में तेरी वाह वाह हो रही है।

माताजी सद्दाम इनको पढ़ाने के रुपए देता है।

वो भी आपको देती हूं।

सब चुप हो गए।

पर तीन वर्ष माता जी के देहांत के बाद ।

रामलाल जी ने जिद्द कर के सद्दाम की लड़कियों को सद्दाम के पास भेज दिया था ।

पर सुरेखा हमेशा उसके बच्चो की पढ़ने में मदद करती थी।

धीरे धीरे जैसे जैसे समय बिता सुरेखा में आत्म विश्वास

बढ़ता गया।

अब रामलालजी को रुपए भेजने कम कर दिए।

अपने हिसाब से जीना शुरू कर दिया।

पर अपनी जैसी लड़कियों की मदद जरूर करती थी।

एक दिन दुबारा सद्दाम का फोन आया।

“हा सद्दाम कैसे हो?

“बस भाभी आपका आशिर्वाद है”

“तो मेरी एक बात मानोगे”

“हा “बोलो भाभी

“राखी पर इस बहन के यहां आना”

“मुंह की बात छीन ली भाभी”

“जरूर”

“खुदा आपको लंबी उम्र दे”

“और तेरी छोटी बेटी कहा है आजकल”

“आपके शहर  में”

“सच तो अब से मेरे पास ही रहेगी “

“ठीक है भाभी “

अब सुरेखा सद्दाम की बेटी रेखा को अपने साथ रखने लगी।

सद्दाम की दो बेटियों का कन्या दान अपने हाथो से कर सुरेखा चल बसी।

आज भी सद्दाम के घर  में सुरेखा की बड़ी फोटो लगा रखी सबको गर्व से बताता है ” ये मेरी बड़ी बहन है।”

 सुरेखा  वो रद्दी वाला सद्दाम भी ना सोच ही रही थी तभी मोबाइल की रिंग टोन ने जागते हुए स्वप्न मै विघ्न डाल दिया।

कान की मशीन लगा कर फोन रिसीव किया

हेल्लो कोन तनिक जोर से बोलो।

मै आपका रद्दी वाला”

“सद्दाम”

“हा”

“बहुत लंबी उम्र है रे तेरी”

तुझे ही याद कर रही थी”

अच्छा !”क्यों भाभी”

बस बूढ़ी आंखो में पुरानी यादें गोता खां ही जाती है।

चल तू बता कैसा है?

“बस भाभी आपका आशीर्वाद है।

और तेरी बीवी सुनंदा कैसी है?”

“भाभी सुनंदा तो नहीं रही”

“ओह”

कब, कैसे?

बस कोरोना ने घेर लिया।

“तेरी बेटियां! वो कैसी है?

तुम ना कहती थी “मत परेशान हो सद्दाम बेटियां तो किस्मत लिखा कर लाती है”

देखना तेरी भी किस्मत बदल देंगी”

वहीं हो रहा है भाभी बड़ी बेटी पढ़ लिखकर सरकारी स्कूल में पढ़ाती है,उससे छोटी वंदना एयरफोर्स में ऑफिसर है,उससे छोटी रेखा डॉक्टर है।”

अरे वाह रे सद्दाम बड़ी तरक्की कर ली”

नजर ना लगे।”

“सब तुम्हारा आशीर्वाद और प्रेरणा है।

तभी भाभी को खासी आने लगी।

भाभी पहले दवाई ले लो फिर बात कर लेंगे।

दोनों ने फोन रख दिया।

पानी पीने के बाद भाभी( सुरेखा) अतीत की यादों में खो गई।

 मोहल्ले में रोज रद्दी बेचने आता था ये सद्दाम।

छोटा सा,भोला भाला लड़का।

सुरेखा की सासू जी सप्ताह में एक बार रद्दी जरूर बेचती थी।

सुरेखा के पति (राधेश्याम ) की दूकान थी।

 दिनभर दूकान संभालते ।




सुबह का खाना टिफिन पहुंचाया जाता था शाम को आकर खाना खाया गट्टे पर यार दोस्तो के साथ ताश खेलने बैठ जाते,रात देर तक घर आते थे। चार माह बाद ही केंसर हुआ और भगवान को प्यारे हो गए।

सुरेखा  की जिंदगी बेबस और लाचार बन कर रह गई थी 

ऊपर से सासू मां बात बात पर ताने मारना।

पूरा घर काम जेठानी के पांच लड़के थे ।पूरे दिन उनको लेकर कमरे में बैठी रहती।कमरे से बाहर तो बस हुकुम

चलाने की परम्परा बना रखी थी।

मां ,बाप के घर से कुछ सीख कर भी आईं हो ?

कोई काम ढंग से नहीं करती।आज खाने में बच्चे खीर पूरी खाएंगे ।

कमी पैशी सासू मां पूरी कर देती।

‘खाना बनाने से पहले छोरो से पूछ लिया कर देख कितने कमजोर हो गए है।’

सारे दिन की थकी हारी को कोन पूछने वाला था?

पढ़ने में बहुत होशियार थी ” सुरेखा”

कक्षा में प्रथम आती थी ।

गुरुजी तो तारीफ करते नहीं थकते थे स्कूल मै आल राउंडर का खिताब मिला हुआ था।

पर मां के जाने के बाद दुनिया ही बदल गई।

पिताजी ने सुरेखा की देखभाल का बहाना लगा कर जल्दी ही दूसरी शादी  कर ली ।

पिता जी तो काम के बहाने अक्सर आसाम जाते थे।

पीछे से मां ने स्कूल भेजना बंद कर दिया।

घर  का काम कोन करेगा?

स्कूल से गुरुजी भी समझाने आते थे पर” मेरी तबियत ठीक नहीं रहती कहकर टाल दिया जाता था।

एक साल पूरा भी नहीं हुआ था एक नन्हा बाबू आ गया मां की गोद में।

बस फिर तो मोहर ही लग गई।

एक दिन मां ने पिताजी से साफ साफ कह दिया देखो मेरा लल्ला  छोटा है इसका ध्यान रखूं या घर काम करू

इसीलिए सोचती हूं अब सुरेखा को स्कूल छुड़ा दू”

पिताजी कहा टालने  वाले थे मां की बात बस तब से ही घर का काम पाती आ गया।

एक दिन पड़ोस की राधा काकी ने ये रिश्ता सूझा दिया।

” लड़का तो दुज्वर है पर बिन दहेज के शादी करवा दूंगी “लक्ष्मी” सुन हमारे दूर की रिश्तेदारी में ही है”

और अच्छा है ना ” तेरे सिर से बोझ हटे 

“हिंग लगे ना फिटकरी रंग चोखा”

मां तैयार हो गई बस अब क्या मेरी डोली सज गई।

और यहां आकर उतर गई।

तब से ही सुरेखा तिल तिल कर मर रही थी ।

राधेश्याम जी भी भाभी के गाए गाए ही चलते थे।

सुरेखा को लगने लगा था की कुएं से निकल कर खाई में गिर गई।

पर समय का फैर बदलता रहता है।

एक दिन जेठानी की बहन की शादी 

में सब दूर गांव गए थे ।सुरेखा को।मकान की देखभाल के लिए छोड़ गए थे।

तभी सद्दाम रुद्दी बेचने आ गया।

दरवाजा खटखटाया सुरेखा ने दरवाजा खोला सद्दाम बोला ” क्यों भाभी  माताजी रुद्दी नहीं बेचेगी “

नहीं नहीं और जैसे ही दरवाजा बंद करने लगी उसकी नजर रद्दी के ठेले पर रखी पुरानी किताबों पर पड़ी।

सुरेखा तुरंत रद्दी के ठेले के पास पहुंच गई।

बोली ” सद्दाम ये किताबें”

हा भाभी “रद्दी है

सुरेखा ने कहा ” अरे पगले किताबे कभी रद्दी नहीं होती।

तू क्या मुझे बेच देगा”

“कितनी पढ़ी हो भाभी “

“बस दसवीं”

पर मुझे किताब पढ़ने का शौक है”

“ठीक है तो आप ले लो “

“कितने रुपए लेगा “

देखो भाभी वैसे तो मुझे 10_ 10  में पड़ेगी तुम 8 रुपए में ले लो”

“सुन पर ये बात किसी को ना बताना “

नहीं नहीं भाभी विश्वास रखो तुम पढ़ो ,मै और अच्छी अच्छी किताब लाकर दूंगा”

नहीं रे” किसी को पता चल गया तो”

“भाभी तुम पढ़ो बाकी टेंशन मुझ पर छोड़ दो।”

सुरेखा के मन में एक आशा की किरण जगमगाने लगी।

जब भी समय मिलता उन किताबों को पढ़ने लगती 

अब मन लगने लगा था।घर का काम और किताबो की दुनिया।

बाकी फालतू बातो पर से ध्यान हट गया था।

ना ही किसी की बात दिल से लगाती।

अब चेहरे पर मुस्कुराहट आने लगी थी ।

शादी से आने के बाद की बात है।

एक दिन भारी दुपहरी जैठ जी घर आए माताजी से बतिया रहे थे।

गाव की प्राइवेट स्कूल में एक महिला चपरासी चाहिए दसवीं पास ,पगार दो हजार देंगे।

सोच रहा हूं सुरेखा को भेज दूं।करती भी क्या है यहां?

कुछ पैसे ही आयेगे ।

बोल मां क्या कहती है?

बात तो सही कह रहा है आजकल तो गाव में महिलाएं नरेगा में जाती है इसको तो स्कूल ही भेजेंगे ।

हा पर घर का काम ?

देखो जी मुझसे नहीं होगा तुम्हारे चार चार बच्चो का काम,घर का काम  जेठानी  जी आकर चिल्लाई।

सुरेखा सुन रही थी मन ही मन खुश हो रही थी।

पर आशंका भी थी क्या पता हा होंगी या ना।

माताजी ने कहा ” सुबह ,शाम का काम कर देंगी 

सोच घर बैठे रुपए आएगे।

हा,हा ठीक है।सबकी सहमति बन चुकी थी।

दूसरे दिन जैठ जी ने स्कूल में जाना शुरू करवा दिया ।

स्कूल में काम के साथ साथ सुरेखा पढ़ने लगी थी।

पुस्तकालय से 12 वी किताबे निकलवा ली थी।

जब परीक्षा के फार्म भरे गए प्राइवेट रूप से सुरेखा ने भी भर दिया।

और परीक्षा में अच्छे अंक से पास भी हो गई।

इन सब बातो का राजदार सिर्फ सद्दाम ही था।

एक दिन गुरुजी से बात करके सुरेखा ने STC  का फॉर्म भरवा दिया।

पर अड़चन थी कि घर के लोग ट्रेनिंग करने नहीं भेजेंगे ।

पर स्कूल के गुरुजी ने घर आकर जैठ जी को समझाया

” देखो रामलाल जी सुरेखा बहुत होशियार है इसका फायदा उठाइए इसको मास्टर की ट्रेनिंग में भेज दीजिए

दो साल मै ही 40,000-50,000 रुपए कमा लेगी।

आपके आराम हो जाएगा।।

रामलाल जी बोले ” गुरुजी खर्चा?

रामलाल जी बोले वहां छोटे छोटे बच्चो को पढ़ा कर जो रुपए आएगे फीस भर देंगी।और बचेगा वो आप ले लेना।

राम लाल जी ने इतनी बड़ी रकम सुनकर तुरंत हा भर दी।

बस फिर क्या था सुरेखा ने कर लिया अपना सपना पूरा।

सरकारी विद्यालय में अध्यापिका बन गई।

और सद्दाम की लड़कियों को भी पढ़ाने लगी।

पर ये खबर रामलाल जी को लग गई ले आए जेठानी और माताजी को और भला बुरा कहने लगे।

किसकी  लडकियो को पाल रही है?

जानती भी है मुसलमान है वो। रद्दी वाला”

अपनी नाक कट जाएगी अभी तो गांव में तेरी वाह वाह हो रही है।

माताजी सद्दाम इनको पढ़ाने के रुपए देता है।

वो भी आपको देती हूं।

सब चुप हो गए।

पर तीन वर्ष माता जी के देहांत के बाद ।

रामलाल जी ने जिद्द कर के सद्दाम की लड़कियों को सद्दाम के पास भेज दिया था ।

पर सुरेखा हमेशा उसके बच्चो की पढ़ने में मदद करती थी।

धीरे धीरे जैसे जैसे समय बिता सुरेखा में आत्म विश्वास

बढ़ता गया।

अब रामलालजी को रुपए भेजने कम कर दिए।

अपने हिसाब से जीना शुरू कर दिया।

पर अपनी जैसी लड़कियों की मदद जरूर करती थी।

एक दिन दुबारा सद्दाम का फोन आया।

“हा सद्दाम कैसे हो?

“बस भाभी आपका आशिर्वाद है”

“तो मेरी एक बात मानोगे”

“हा “बोलो भाभी

“राखी पर इस बहन के यहां आना”

“मुंह की बात छीन ली भाभी”

“जरूर”

“खुदा आपको लंबी उम्र दे”

“और तेरी छोटी बेटी कहा है आजकल”

“आपके शहर  में”

“सच तो अब से मेरे पास ही रहेगी “

“ठीक है भाभी “

अब सुरेखा सद्दाम की बेटी रेखा को अपने साथ रखने लगी।

सद्दाम की दो बेटियों का कन्या दान अपने हाथो से कर सुरेखा चल बसी।

आज भी सद्दाम के घर  में सुरेखा की बड़ी फोटो लगा रखी सबको गर्व से बताता है ” ये मेरी बड़ी बहन है।”

#संघर्ष 

दीपा माथुर

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