यह कोई एहसान नहीं! ( भाग 2 ) – गीता चौबे गूँज  : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi :

“मैं बहुत खुश हूँ तुम्हारी सफलता पर। एक आवश्यक कार्यवश मुझे शहर से बाहर जाना पड़ रहा है जिस कारण मैं इस दीक्षांत समारोह में शामिल नहीं हो पाऊगा। कोई बात नहीं, तुम मम्मी के साथ चली जाना। कल तुम्हारे काॅलेज का आखिरी दिन होगा।“

   सन्न रह गया गुड्डू। काॅलेज का आखिरी दिन…? वह तो अपने दिल की बातें भी नहीं कह पाया। सुरेश ने सही कहा था, मुझ जैसा अहमक इस संसार में दूसरा नहीं होगा। जब तक दिल की बात उस बेचारी तक नहीं पहुँचाऊँगा, उसे कैसे पता लगेगा? उसे यह मालूम तो होना ही चाहिए कि उसे प्यार करनेवाला इस दुनिया में एकमात्र शख्स गुड्डू ही है। यह बात जानकर वह कितनी खुश हो जाएगी। उसके मन में भी मेरे लिए प्रेम का अंकुर निकल ही आएगा। 

   अब तो सुरेश ही कोई जुगत भिड़ाएगा कि कैसे पहुँचायी जाए गुड्डू के दिल की बात रीना तक। 

“हम्म… मैं तो कब से कह रहा था, पर तू सुने तब न! सोचना क्या है? जा के आई लव यू बोल दे ” सुरेश ने फिर से अपनी बात दोहरायी। 

“क्या बात कर रहा है यार? ऐसे कैसे… नहीं-नहीं मुझमें इतनी हिम्मत नहीं है।“

“तो भूल जा उसे! आज आखिरी बार उसे देख कर अपनी आँखें सेंक ले।”

“तू अपने को मेरा दोस्त कहता है… दोस्त को  इस तरह बीच मझधार में छोड़ देना कहाँ की दोस्ती है?”

“फिर तो एक ही उपाय है।” 

“वो क्या?” गुड्डू उतावला हो उठा। 

“थोड़ा-सा दारू हलक के नीचे उतार। फिर देख कैसी दिलेरी भर आती है नस-नस में!”

“ठीक है। जब काॅलेज से लौटेगी तभी बात करूँगा। अभी अपना फंक्शन तो अच्छे से निपटा ले। क्या पता मेरी बातें सुनकर इतनी खुश हो जाए कि काॅलेज जाना रद्द न कर दे। थोड़ा तो धीरज रखना ही पड़ेगा। उसको सर्टिफिकेट मिल जाए तो सबसे ज्यादा खुशी मुझे ही होगी न।”

      जाने क्यों प्रतीक्षा की घड़ियाँ इतनी लंबी हो जाती हैं। गुड्डू बेसब्री से रीना का इंतजार कर रहा था। इस चक्कर में कितने ग्लास खाली होते चले गए, उसे पता भी नहीं चला। सुरेश को ही हाथ पकड़ लेना पड़ा, 

“बस भी कर! सारी सुधि गँवा देगा तो रीना को तेरे दिल की बात कैसे पता चलेगी?”

‘हाँ, आज तो यह करना ही होगा, वर्ना सबकुछ खत्म हो जाएगा’ यह सोचकर गुड्डू डायलॉग पर डायलॉग रटने लगा… 

‘प्यारी रीना’… नहीं-नहीं ‘डार्लिंग रीना’! हाँ, यह ठीक रहेगा। आजकल की पढ़ी-लिखी लड़कियाँ अंग्रेजी शब्दों से ज्यादा प्रभावित होती हैं। 

   ये ख्याली पुलाव अभी खदबदा ही रहे थे कि रीना की हँसी कानों में मिश्री घोल गयी। एक पल को ठिठका, पर अगले ही पल दारू ने अपना कमाल दिखा दिया। एक दम से सामने आकर रीना का हाथ पकड़ते हुए बोल दिया, 

“डार्लिंग! आई लव यू! मेरे साथ शादी करोगी? “

रीना और उसकी माँ तो सकते में आ गयी। रीना की माँ ने डपटते हुए कहा, 

“क्या बदतमीजी है? रास्ता छोड़ो, वर्ना पुलिस को बुला दूँगी।’

गुड्डू के सिर तो शराब चढ़ कर बोल रही थी, 

“आंटीजी! आप तो अपने काम से काम रखो। क्यों कबाब में हड्डी बनना चाहती हो?” रीना को समझ ही नहीं आ रहा था कि यह क्या हो रहा है? उसने तो कभी इस शख्स को देखा भी नहीं था।

बात बढ़ती गयी। शोर सुनकर आसपास के लोग इकट्ठे हो गए। पर गुड्डू तो यह अवसर हाथ से जाने देने को तैयार ही न था। कौन शराबी के मुँह लगने जाए, यह सोचकर भीड़ भी धीरे-धीरे तितर-बितर होने लगी। रीना की कलाई अभी-भी गुड्डू के हाथ में थी। रीना की माँ पुलिस का नंबर डायल करने ही वाली थी कि एक जोरदार घूंसा गुड्डू के चेहरे पर पड़ा। वह इस अप्रत्याशित चोट के लिए तैयार न था। अपने आप को सँभाल न सका और औंधे मुँह जमीन पर। 

    रीना अभी तक थर-थर काँप रही थी। उस सुदर्शन युवक ने रीना की माँ को संबोधित करते हुए कहा, 

“आंटी जी! यदि आपको ऐतराज न हो तो मैं आप दोनों को आपके घर तक छोड़ दूँ? इस शराबी का कोई भरोसा नहीं।“

   इस तरह सुनील से पहला साक्षात्कार था दोनों माँ – बेटी का। एक सुखद बात यह भी थी कि सुनील का घर भी उसी मुहल्ले में था। रीना की माँ  जिद कर उसे अपने घर के अंदर तक ले गयी। काॅफी के दौरान पता चला कि सुनील एक बैंक में पी ओ था और कुछ ही दिनों पहले ट्रांसफर होकर यहाँ आया था। उसके मधुर स्वभाव ने रीना की माँ का दिल जीत लिया था। वह अक्सर उसे खाने पर भी बुलाने लगी। रीना के पापा को भी यह लड़का पसंद आ गया था। वह सोच रहे थे कि आई ए एस का रिजल्ट निकल जाए तो सुनील से रीना की शादी की बात चलाएँगे। रीना की माँ से इसका जिक्र भी किया था। 

      दुर्भाग्य कभी-कभी जीवन की पूरी दशा ही बदल देता है।  एक तरफ रीना प्रतियोगी परीक्षा में सफल नहीं हो पायी और दूसरी तरफ उसके पापा एक सड़क-दुर्घटना में मारे गए। सारे सपने टूट कर बिखर गए। ऐसे कठिन समय में सुनील ने रीना और उसकी माँ को काफी सहारा दिया। रीना तो पूरी तरह हिम्मत हार चुकी थी। यहाँ तक कि अब कोई भी परीक्षा देने के योग्य स्वयं को नहीं पा रही थी। उसका कहना था कि यदि वह परीक्षा पास भी कर ले तो क्या फायदा? पापा तो अब अपने सपने को पूरा होते नहीं देख सकते! 

 तब सुनील ने ही उसे समझाया था… 

“माना कि तुम्हारे पापा वापस नहीं आ सकते, किंतु तुम्हें सफल देख कर उनकी आत्मा तो तृपत हो सकती है न!” इस तरह कई-कई दलीलें देकर

रीना को एक बार फिर से प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करने के लिए प्रोत्साहित किया। उसकी बातों का सकारात्मक असर हुआ और रीना सब कुछ भूलकर परीक्षा की तैयारियों में जी-जान से जुट गयी। अब उसे किसी भी कीमत पर अपने पापा का स्वप्न पूरा करना था। आखिरकार वह दिन भी आ ही गया, जब वह परीक्षा देने जानेवाली थी। पता नहीं क्यों उस दिन उसका दिल बहुत अधिक धड़क रहा था। हालाँकि उसने काफी अच्छी तैयारी की थी, फिर भी हृदय में एक डर समाया हुआ था कि यदि इस बार असफल हुई तो फिर कभी किसी परीक्षा में बैठ पाना उसके लिए सहज नहीं हो पाएगा। सुनील यह बात जानता था। इसलिए वह उसे परीक्षा हाॅल तक छोड़ने के लिए गया। उसकी प्रोत्साहन भरी बातों से रीना का सारा डर काफूर हो गया। उसने बड़े धैर्य से शांतचित्त होकर सभी सवालों के जवाब दिए। वह अपनी परीक्षा से पूर्ण संतुष्ट थी। सुनील की एक बात उसने गाँठ बाँध ली थी कि ‘जीवन में सिर्फ एक ही रास्ता नहीं होता। एक द्वार बंद होने पर दूसरा द्वार अपनेआप खुल जाता है। बस जरूरत इस बात की होती है कि हार न मानते हुए हम हर परिस्थिति को स्वीकार कर अन्य रास्तों की तलाश करने में जुट जाएँ।’ बस फिर क्या था रीना का सारा डर, सारा तनाव जैसे छूमंतर हो गया। घबराहटों के बादल छँटे तो सफलता का दीप्तिमान सूरज बाहर निकल आया जिसकी चकाचक रौशनी में रीना अपनी मंजिल तक आसानी से पहुँच गयी। 

     परीक्षा तो बहुत अच्छी गयी थी, किंतु बेटी की विशेष देखभाल में माँ की तबीयत बिगड़ गयी। एक माँ अपनी संतान की बलाओं के सामने ढाल बनकर जो खड़ी हो जाती है। उन्हें मधुमेह की बीमारी थी जो लापरवाही के कारण काफी बढ़ गयी। फलस्वरूप उन्हें चक्कर आ गया और वे बेहोश हो गयीं। आनन-फानन में उन्हें अस्पताल पहुँचाया गया। रीना ने सुनील को भी फोन कर दिया था। इन दो सालों में रीना सुनील पर इतनी निर्भर हो गयी थी कि उसकी सलाह के बिना कोई कार्य करने में स्वयं को सक्षम नहीं पाती। कभी-कभी बहुत कम समय में ही कोई अपनों से बढ़कर स्थान पा जाता है। शायद मन-ही-मन वह उसे अपना सर्वस्व मानने लगी थी। 

    रीना की माँ की स्थिति नियंत्रण में आ गयी थी, किंतु इस बेहोशी ने उन्हें बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर दिया। अस्पताल से लौटते ही वह रीना के पापा की इच्छा सुनील और रीना को बताएगी। उन्हें ऐसा लगने लगा कि दोनों के एक सामाजिक बँधन में बँधने के बाद ही वे चैन की साँस ले पाएँगी। घर आते ही सुनील को फोन करके घर  बुलाया। आज उन्हें एक बड़ा फैसला लेना था जो सुनील और रीना की रजामंदी पर टिका हुआ था।

बेटी की आँखों को एक माँ ने पहले ही पढ़ लिया था। अब बस सुनील के हाँ कहने की देरी थी। 

  एक गहरी नजर सुनील के चेहरे पर डालते हुए पूछ बैठी, 

“बेटा क्या बिन पतवार की इस नइया का माझी बनना पसंद करोगे?“ मेरे जीवन का कोई भरोसा नहीं। यदि मेरी बेटी का हाथ थाम सको तो मैं सुकून की जिंदगी कुछ और दिन जी लूँगी।”

“आंटी! प्लीज ऐसा मत कहें! आपलोग मुझे पिछले दो वर्षों से जानती हैं। मैं बचपन से ही एक अनाथ लड़का हूँ। परिवार क्या होता है मुझे नहीं पता। बल्कि मैं कहना चाहता हूँ कि क्या आपलोग मेरा परिवार बनना चाहेंगी?”… 

  पूरा कमरा मानों शहनाइयों की गूँज से गुंजित हो उठा। 

            — गीता चौबे गूँज 

                 बेंगलूरु, कर्नाटक

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