मिस्टर नवीन कत्याल अपनी नौकरी के मात्र दस वर्षों में ही मैनेजर के पद पर आसीन होकर इस कंपनी के शिखर तक पहुँच गए थे. पता नहीं उनका भाग्य था या प्रतिभा किन्तु सब कहते कि एमडी भरत राम बंसल के बाद कंपनी में किसी की चलती है तो वो कत्याल साहब ही हैं. कुशाग्र बुद्धि, दाइत्वों के प्रति समर्पण और व्यवहार कुशलता ने अल्प समय में ही उन्हें कंपनी के मैनेजिंग डायरेक्टर बंसल जी की नाक का
बाल बना दिया था. फर्म के हर छोटे बड़े निर्णय में उनकी महत्वपूर्ण भागीदारी रहती थी. करोड़ों रुपयों के ट्रांजेक्शन उनकी कलम के नीचे से होकर गुजरते थे किन्तु मजाल है कि कभी एक पैसा भी इधर से उधर हुआ हो.
पुराने ग्राहकों के पते, उनकी साख और क्रैडिबिल्टी कत्याल साहब की टिप्स पर रहती थी. किस कर्मचारी की कितनी योग्यता है और उसका उपयोग कंपनी के हित में कैसे किया जा सकता है, इस विधा को भला कात्याल साहब से बेहतर कौन जान सकता था.
कात्याल साहब ने तीस साल में बड़े परिवर्तन देखे थे. कंपनी के बढ़ते व्यापार और बदलते स्वरूप के चलते हैड ऑफिस पुरानी बिल्डिंग से शिफ्ट होकर नोएडा के शानदार कॉमर्शियल कॉम्प्लेक्स में चला गया था.
पुराने बही खाते के स्थान आधुनिक कंप्यूटर्स ने ले लिया था. स्टाफ पहले से तीन गुना हो गया था. भरत राम बंसल रिटायर होकर विदेश में बस गए थे और अब मेनेजिंग डाटरेक्टर के नए अत्याधुनिक ऑफिस में उनका बेटा नितिन बंसल बैठता था किन्तु आज भी कात्याल साहब को अपने स्थान से कोई डिगा नहीं पाया था.
एक दिन, मैनेजिंग डायरेक्टर नितिन बंसल से पूरे स्टाफ को स्वयं एक नयी एम्प्लॉय से रूबरू कराया. लम्बा सुंता हुआ शरीर, सुराही गर्दन, टाइट जींस के ऊपर एक खुले बटन वाली शर्ट, बेफिक्र सी चाल, मादक सी आँखे, कुछ कहती सी कुटिल मुस्कान और कुशल मेकअप
मेंसंवारा हुआ सांवला सा आकर्षक व्यक्तित्व. दिल्ली के मिरांडा हॉउस से शिक्षा लेने के बाद विदेश से मैनेजमेंट का कोर्स किये हुए, बंगलौर की मूल निवासी ‘जेसी’ अकेली फ़्लैट लेकर रहने वाली बोल्ड और इंडिपेंडेंट लड़की थी.
जेसी को कत्याल की असिस्टेंट के रूप में सहायक मैनेजर के पद पर नियुक्त किया गया था किन्तु पहले ही दिन से कात्याल को कभी नहीं लगा कि वो उसकी असिस्टेंट है.
उसके व्यवहार से कभी नहीं लगता था कि वो कात्याल को अपना बॉस मानने को तैयार थी. आँखों में आँखें डालकर अति आत्मविश्वास से बातें करना. कंपनी के इतिहास, कार्यशैली और प्रत्येक कुलीग के बारे में कुरेद कुरेदकर पूछना और मेनेजिंग डायरेक्टर के पारिवारिक स्वरूप व हॉबीज इत्यादि में रुचि लेना उसकी प्रार्थमिकताएँ थीं.
छोटी छोटी बातों को पूछने के बहाने एमडी के रूम में चली जाती. कभी कात्याल से अनुरोध करके तो कभी बिना बताये फाइलों को खुद नितिन बंसल के पास ले जाती और ऑफिस का समय समाप्त होने के बाद भी ऑफिस में जमी रहती. कभी कभी कात्याल को लगता कि जेसी किसी छुपे हुए एजेंडे पर काम कर रही है.
आखिर एक दिन वो समय भी आ गया जिसकी आशंका कंपनी के पूरे स्टाफ को थी. एमडी नितिन बंसल ने एक नए दाइत्व का सृजन किया ‘जनरल मैनेजर’ और उस पद पर जेसी को आसीन कर दिया गया. शानदार आधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित नया केबिन और कंपनी की नई बॉस जेसी.
मिस्टर कात्याल अब जेसी के मातहत ही नहीं बल्कि जवाबदेह भी थे और जेसी उनका असिस्टेंट रहने की पूरी कुंठा अपने पद का दुरुपयोग करके निकाल रही थी. दिन में कई बार उन्हें फाइल लेकर ऑफिस में बुलाती. जब वे खड़े रहते तो कई मिनट लैपटॉप से गर्दन उठाकर भी नहीं देखती. फिर कुटिल मुस्कान के साथ कहती “ओह आय एम् सॉरी मिस्टर कात्याल. मेरा ध्यान ही नहीं गया”.
कत्याल को अब ऑफिस में घुटन और अपमान महसूस होने लगा था. दबी जुबान से कई बार एमडी से शिकायत कर चुके थे मगर उसका कोई प्रभाव नहीं हो रहा था. उल्टा उनकी बातें जेसी तक पहुँच जातीं और वो उन्हें अपनी चिरपरिचित कुटिल मुस्कान से अपनी विजय का अहसास कराती थी.
एक दिन कात्याल साहब दो घंटे देर से ऑफिस पहुंचे.
जेसी ने कात्याल को तुरंत अपने केबिन में बुलाया और बिना किसी औपचारिकता के या बैठने को कहे सीधा सवाल किया “घड़ी देख रहे हैं कात्याल साहब”.
“मैडम, एक्चुअली आज घर में पत्नी ……”
“आप के घर की क्या प्रॉब्लम है इट्स नन ऑफ़ माय बिजनस. मैं तो देखती हूँ कि रोज ही आप…….
“ठीक है. आगे से ध्यान रखने का प्रयास करूंगा” कहकर कत्याल जाने को पलटने लगे.
“आगे से आप क्या करेंगे, ये मेरा सवाल नहीं है. आप कितने घंटे ऑफिस में काम करते हैं इसका प्रभाव दूसरे लोगों पर भी पड़ता है. आखिर मेरी भी कोई ……
“इट्स एनफ मिस जेसी. आप भूल रही हैं कि मुझे इस ऑफिस में काम करते तीस साल हो गए हैं और आप मेरी असिस्टेंट रह चुकी हैं. माइंड यौर लैंग्वेज एन्ड एटिकेट” कात्याल ने क्रोध से कहा.
“इस से क्या होता है कात्याल साहब कि मैं आप की असिस्टेंट थी. आज मैं आप की बॉस हूँ और कंपनी कैसे ठीक से रन करे इसकी जिम्मेदारी मुझे दी गयी है. मुझे इंडिसीप्लेन बिलकुल बर्दाश्त नहीं है”.
“आप की किन खासियतों की वजह से आप को जिम्मेदारी दी गयी है ये पूरा स्टाफ जानता है मैडम. मेरा मुँह मत खुलवाइये”. कात्याल ने एक एक शब्द पर जोर देते हुए कहा और एक बार फिर जाने को मुड़े.
जेसी का चेहरा क्रोध से लाल हो गया. उसका मन हुआ कि सामने रखा पेपरवेट कात्याल के सर पर दे मारे किन्तु उसने ऐसा किया नहीं.
उसने एक लम्बी सांस ली आग्नेय नेत्रों से कात्याल की और देखा. फिर गुस्से को जज्ब करते हुए अत्यंत नरम स्वर में कहा “बैठए कात्याल साहब. प्लीज एक मिनट बैठिये”.
जेसी ने ग्लास उठाकर एक घूँट पानी पीकर खुश्क गले को सामान्य किया. रुमाल के हलके स्पर्श से चेहरा साफ़ किया और पिता की उम्र के अनुभवी कत्याल साहब से कहना शुरू किया.
“देखिये मिस्टर कात्याल. आप ने तीस साल पहले एक सामान्य एकाउंटेंट के रूप में इस ऑफिस में काम शुरू किया. राइट. फिर आप अपने तेज दिमाग, कार्यकुशलता, पारिवारिक संस्कार, व्यवहार और कंपनी के प्रति निष्ठा के कारण मैनेजर बन गए. मैं ठीक हूँ ना. अब ये बताइये कि ये तीव्र बुद्धि, प्रभावित करने वाली पर्सनल्टी आप को कहाँ से मिलीं? जाहिर है गॉड से….. कुदरत से, भगवान से. और ये संस्कार, मधुर व्यवहार और भाषा. ये किस से मिली. जाहिर है परिवार से वंशानुगत मिली. एम आई राइट?”
कात्याल साहब उसके बदले हुए व्यवहार से आश्चर्यचकित होकर उसकी और देख रहे थे. उसने फिर कहना शुरू किया.
“ये पर्सनाल्टी, ये फिगर और पुरुषों को आकर्षित करने की क्षमता मुझे कहाँ से मिली. उसी गौड़ से. ये खुलापन, आजादी और बोल्डनैस कहाँ से मिली. जाहिर है आप ही की तरह अपने संस्कारों से. माता पिता और वंश से. डीएनऐ से मिस्टर कात्याल.
आप ने अपनी क्षमताओं और नैसर्गिक प्रतिभाओं का आगे बढ़ने के लिए उपयोग किया और मैंने अपनी. फिर शिकायत कैसी ऑनरेबल सर”
कात्याल के पास जेसी के इन सवालों का कोई जवाब नहीं था. वे किंकर्तव्य विमूढ़ से शांत बैठे रहे. जेसी ने फिर कहना शुरू किया.
“एक बात और समझ लीजिये मिस्टर कात्याल. पहले ही दिन से मैं आप की बहुत इज्जत करती हूँ किन्तु अपने घर से हजारों मील दूर मैं यहाँ अंकल आंटी बनाने नहीं आई हूँ. कैरियर बनाने आई हूँ. अगर मैं आप की काबिलियत को स्वीकार कर लेती, जो कि आप में है, तो आज भी मैं आप की असिस्टेंट होती. आप की सीनियर नहीं”. अपनी बात पूरी करके वो एक बार फिर चिर परिचित कुटिल मुस्कान से मुस्कराई.
धवल केश, अनुभवी कात्याल साहब आश्चर्य से कई क्षण तक इस आधुनिका को देखते रहे. कमाल है कोई ऐसे भी सोच सकता है. हाँ यकीनन, उस की इस प्रतिभा का मुकाबला तो मैं नहीं कर सकता. विलक्षण.” फिर कन्धों को हल्का सा झटका दिया और निरुत्तर होकर उठ खड़े हुए और बाहर निकल गए. शायद सदा के लिए.
रवीन्द्र कान्त त्यागी