~~वफादारी~~अनुज सारस्वत

भौंऽऽ भौंऽऽ देख कैसे इतराती हुई जा रही मालिक के साथ, ज्यादा ऐशो आराम में पल रही ,लेकिन कुछ भी करले रहेगी तो कुतिया ही ,अरे राॅकी देख तो नखरे इसके इंसान बनने की कोशिश कर रही,हाहाहा भौंऽऽभौंऽऽ

आलीशान घर में रहने वाली मादा पवेलियन डाॅगी को देखते हुए ,गली के कुत्ते कालू ने अपने दोस्त रॉकी से कहा ,

इधर रॉकी उसके प्यार में और उसके रहने सहने पर पागल था वो बोला।

भौंऽऽ भौंऽऽ अरे ऐसा ना बोल कालू,भाभी है तेरी ,देख कितने ऐशो आराम में रहती ,काश ! मुझे ऐसी जिंदगी मिलती साला 12 -13 साल तो हम लोगों की लाईफ होती यह नहीं हैं भगवान रिहायशी व्यवस्था करता हमारी,हे कुत्तेदेव कृपा करो हम पर हम गली के कुत्तों पर।”

कालू बोला –

अबे कर दी ना फिर लालची कुत्तों वाली बात ,तुम जैसे कुत्तों ने पूरी हमारी वफादार कौम को बदनाम कर रखा है ,वरना इंसान और,हममें क्या फर्क रहेगा? हमें नहीं बनना इंसान हमारे से ऊपर नहीं बहुत नीचे हैं ,यह मनुष्य जाति,घूमता रह जीभ लटकाये तू

रॉकी-“अबे जा कुत्ता क्या जाने अदरक का स्वाद?”

कालू-“अबे बंदर क्या जाने होता ,पहले ठीक करलिया कर बोलने से पहले ,और सुन देशी नस्ल है हमारी,यों पवेलियन सोच सोचकर पवेलियन नही बन जायेंगे ,चल पास वाली गली में रोला काट के आएंगे। तेरी भाभी रूमी इंतजार कर रही होगी वो मेरी देशी हिरोइन है ,समझा प्यार करती है ,तेरी बाली की तरह मटककर बिना भाव दिये नही जाती।

इतना कहकर दोनों चल दिये पास की गली में ,कालू अपनी रूमी को रिझाने के लिए कान शार्प पोजिशन में खड़े करके कभी दो टांग पर चल के दिखाता तो कभी अपनी पूँछ पकड़ने की कोशिश करके खोल गोल चक्कर काटकर उसे हँसाता यह सब यूँ ही चलता रहा।


1-2 दिन रॉकी की लैला बाहर नहीं दिखी ,राॅकी चिंतित हो उठा कालू से बोला

यार लैला नही दिखी कहीं कुछ गड़बड़ तो नही ,मेरी कुत्ता इंद्रिय संकेत दे रही अनहोनी का

अबे चल आशिक ,ऐशो आराम फरमा रही होगी ,इतना ज्यादा ना सोच इंसान नही है तू

रॉकी फिर भी नही माना जबरदस्ती कालू को ले गया उसी घर में देखने के लिए,रात का समय था ,रॉकी ने अपनी कुत्ता फ्रीक्वेंसी अर्थात नाक से पता लगाया की लैला किधर है।

आखिर उसने स्टोर में ढूंढ ही लिया,वहां वह लाचार अवस्था में पढ़ी थी ,बुखार था उसे तेज, दोनों उसके सामने पहुंचे तो चीख निकलने वाली थी उसकी ,फिर रॉकी ने पंजा रख दिया उसके मुंह के ऊपर और एक सांस में सारी बात बताई,वो रो पड़ी और बोली ।

भगवान किसी कुत्ते को पालतू न बनाये बाहर से दिखता है ऐशो आराम।लेकिन नर्क से बदतर है यह जीवन।हमारी सुंदरता देखकर पालते हैं ,अपने शौक पूरा करते भले AC में रखते साथ सुलाते।लेकिन उसमें भी स्वार्थ होता ,हमारी मैडम को ही ले लो पति से बनती नही हैं तो मुझसे ही बातें करके मन हल्का करती रोती ,चिपकाती अरे इंसानो तुम्हें इंसान से दिक्कत है तो इंसान से बात करो ना इसके लिए हमारी आजादी क्यों छीनने

पे तुले ? पूरा दिन एक हड्डी के लिए तरसा तरसा कर खेल कराते ।कभीं गेंद उठाओ यह करो दो टांगो पे नाचो ।उन्हें खुश करो ।और आखिर में क्या मिला ?।मैं बीमार हूँ।इंसानो की बीमारी मुझे लग गई “खुजली”

तब से देश निकाला दे दिया मुझे कल शायद जंगल में छोड़ आयेंगे मुझे। “

इतना सुनकर कालू की हंसी नही रुक रही थी अपने मुंह को पंजे से दबाये सुन रहा था ।इधर रॉकी का मुँह खुला रह गया सुनकर ।फिर बोली वो

अरे तुम लोग जीते हो रायल जिंदगी ,आजादी के साथ ,यहां तो सू सू करने तक की आजादी नही होती ,सब इन्हीं के हिसाब से करो ,हम मौज में हल्का सा दाँत भी मारते तो डंडे से पिटाई होती हमारी,हम जो गाड़ी में जाते और खिड़कीसे बाहर देखते तो बहुत लोगों को अच्छा लगता लेकिनहम लोग यही सोचते कि खुली हवा में कब सांस लेंगे ?इंसानजब खुद के रिश्ते नही संभाल पाता तो कुत्तापाल लेता है।

अब तो कालू पे रहा न गया अपनी दबी हंसी छोड़कर रॉकी से बोला


और हीरो जीयेगा ऐसी जिंदगी ,आज हम कितने आजाद हैं इंसान किसी का सगा नही होता ,इसीलिए कहता हूँ हम कुत्तों से बहुत नीचे है,हम मालिक के लिए मरने को तैयार रहते और वो हमारी आजादी छीनने के लिए,हम जानवरों को प्रकृति ने स्वछंद जीवन दिया है,जेल में जीने को नही

इतना कहकर दोनों लोग लैला को सहारा देकर अपने साथ ले गये और रॉकी ने चाट चाट कर उसकी व्याधि दूर कर दी थी ,और तीनों मस्त रहने लगे ,रॉकी के सर से भूत उतर चुका था,सत्य का भान हो चुका था,लैला ने अपनी सहेलियों को भी आजाद कराया कालू एंड गैंग की मदद से।

आज भी कालू छेड़ते हुए कहता है

क्यों बे घूमेगा AC वाली कार में ?बेटा इतनी वफादारी अपने जीवन के लिए दिखाओ जितनी इंसानो के लिए दिखाते

~अनुज सारस्वत “गंगापुत्र” की कलम से~

(स्वरचित एवं मौलिक)

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