वह जली हुई रोटी – पूजा मनोज अग्रवाल

स्निग्धा,,,!!  मानवी ! !

,अरे !!  कहां रह गई तुम दोनों ,,? 

शांति जी ने अपनी दोनों बहुओं को रौबीले स्वर में आवाज़ लगाई ,,। 

खाना टेबल पर लग गया है देरी मत करो,,, खाना ठंडा हो जाएगा,,।

जी ,,,  मां जी ,,,आई ।।

दोनों देवरानी – जेठानी ने एक ही स्वर मे बोलीं,,।

घर का सारा काम दोनों बहुएं ही करती थी ,,,परंतु खाना परोसने का काम सासू मां ने अपने जिम्मे ले रखा था । 

स्निग्धा और मानवी आकर डाइनिंग टेबल पर बैठ गई,,,। 

शांति जी ने दोनों बहुओं की थाली में सब्जी और रायता परोसा,,।

शांति जी ने रोटी निकालते हुए छांट कर अच्छी सिकी हुई रोटी छोटी बहू मानवी की थाली में , और हल्की जली रोटी स्निग्धा की थाली में रख दी । 

उफ्फ,,,आज फिर जली रोटी ,,,!! 

स्निग्धा का हृदय व्यथित हो गया ,,,कभी बासी तो कभी जली रोटी,,,।

“मैने कभी मायके में बासी रोटी नहीं खाई और यहां तो कभी जली तो कभी बासी   ,,।”

बस अब और नहीं,,,, !!




यह सोच कर स्निग्धा ने अपनी सासू मां से कहा ,,” मां जी, अगर आप कहे तो रोटियां भी मैं सेक दिया करूंगी ,,।”

स्निग्धा की बात सुनकर शांति जी सकपका गई ,,, यह क्या कह रही हो स्निग्धा ,,???

अगर तुम सेक दिया करोगी,,,तो मानवी को रोटी बनाना कैसे आएगा,,,?? 

दरअसल शांति जी दोनो बहुओं के बीच भेदभाव करती ,,,इसके चलते वे बड़ी बहू को कभी जली रोटी दे देती तो कभी रात की बची खुची बासी रोटी ,,,।

मैं इतने बरसों से अपनी गृहस्थी चलाती आ रही हूं,,,  अब तुम पच्चीस साल से गृहस्थी चला रही सास को यह बतलाओगी कि किस बहु को क्या काम देना है,,,??

नहीं नहीं ,,मांजी,,।

आप शायद मुझे गलत समझ रही हैं,,।

,,, गर्भावस्था के कारण मुझे मतली होती है,, और मैंने कभी ऐसी जली रोटी ,,,,,!!

इतना सुनते ही देवरानी मानवी बीच में ही बोल पड़ी,, क्या,,, जली रोटी ,,?

 ” क्या कहना चाहती हो दीदी ,,,? 

क्या मैं जानबूझ कर जली हुई रोटी सेकती हूं,,,?

मैंने तो कभी अपने मायके में चूल्हा चौका नहीं किया है ,,,।

और यहां,,,, यहां तो !!! 

कहकर मानवी ने मुंह बिचकाया,,।

नहीं , मानवी ,,,!

मेरे कहने का मतलब यह नहीं था,,।




” मैं सब जानती हूं आप क्या कहना चाहती हैं,,? “

मां जी,,,” अब आप खुद ही देख लीजिए  स्निग्धा भाभी क्या कह रही हैं,,।”

 “बहु ,,,तुम मेरे सामने ही मानवी पर इल्जाम लगा रही हो,,,???

आप समझने में गलती कर रहीं हैं मां जी,,,।

स्निग्धा थाली लेकर टेबल से उठी और दोनों से माफी मांगते हुए बोली,,” शायद मुझसे ही कुछ गलती हो गई है , आप दोनों मुझे माफ कर दें ।”

कह कर सनिग्धा अपने कमरे में चली गई और उस दिन उसने खाना भी नहीं खाया ,,।

स्निग्धा और मानवी दोनों ही तीन माह की गर्भवती थी,,। परंतु जाने ऐसा क्या था कि सासु मां को छोटी बहू की हर छोटी – मोटी जरूरत का ध्यान रखती ,परंतु बड़ी बहू के  सुख – दुख पर उनका कभी ध्यान नहीं जाता था ।

घर आने वाली कोई भी वस्तु पहले मानवी को पसन्द करवाई जाती और उसके बाद बची हुई वस्तु स्निग्धा के हिस्से में आया करती थी । 

इस पर मानवी ने भी कभी अपनी जेठानी के लिए आवाज उठाने की जहमत न की थी ।

रोज़ मर्रा की यह सब बातें स्निग्धा को बहुत चोट पहुंचाती थी,,,। उसका उदास चेहरा देख कर मानवी की खुशी दोगुनी हो जाती थी । 

उस दिन शाम को जब मयंक ऑफिस से आए तो स्निग्धा ने कहा,,,सुनो जी,,,!

”  आप तो घर के बेटे हो ,, आप ही मां जी से इस बारे में बात करो ना ,, ।

” स्निग्धा,,, तुम फिर शुरू हो गई,,।

” यह तुम्हारा ससुराल है ,,,तुम घर की बड़ी बहू हो ,,, तुम्हें ही एडजेस्ट करके चलना होगा । “

वह जानती थी शिकायत करने से कोई भी हल निकलने वाला नही था,,, । परंतु फिर भी मयंक से अपने मन की कह कर उसका दिल हल्का हो जाता था ,,,।




सासू मां दिन प्रतिदिन बड़ी और छोटी बहू में भेदभाव करती,,,  यह सब देखकर छोटी बहू के मन से भी अपनी जेठानी के प्रेम और आदर खत्म हो गया ,, वह हमेशा अपनी सास शांति जी के इशारों पर चला करती ।

रोज़ मर्रा की छोटी-छोटी बातों के साथ दिन बीतते जा रहे थे ,, परन्तु समय तो अपनी ही गति से चल रहा था ।

स्निग्धा और मानवी दोनों को सातवां महीना लग गया ,,,। उन दोनो की डिलीवरी में मात्र चौदह दिन का ही अंतर था ,,।

बच्चे के आने की खुशी में सनिग्धा ने इन छोटी-छोटी बातों को दिल से लगाना छोड़ दिया था । 

एक दिन मानवी रसोई में चाय बनाने के लिए गई,,। उसने चाय का डिब्बा निकाला तो साथ रखा तेल का डिब्बा फर्श पर जा गिरा,,,।

सारी रसोई में तेल फैल गया,,। 

कजरी से कहकर उसने रसोई की साफ सफाई करवा दी  ,,। पर फिर भी थोड़ी सी फिसलन रह जाने की वजह से चाय ले जाते समय मानवी वहीं फिसल कर गिर पड़ी,,,। 

 उसकी चीख सुनकर घर के सब लोग दौड़कर रसोई घर में पहुंचे ,,,। मानवी को जमीं पर पड़े देख सबके होश फाख्ता हो गए ।

आनन फानन में मानवी को तुरंत ही पास के अस्पताल पहुंचाया गया।

गिरने की वजह से मानवी का बच्चा पेट में ही  मर गया । बहुत ज्यादा खून बह जाने की वजह से डॉक्टर ने नॉर्मल डिलिवरी का रिस्क लेने से  साफ इंकार कर दिया । सर्जरी करके मानवी के  मृत बच्चे को पेट से बाहर निकाल लिया गया ।

एकाएक अपने बच्चे को खो देने से मानवी का रो – रो कर बुरा हाल था । उधर स्निग्धा और उनकी सासू मां के हृदय पर भी इस घटना से  बड़ा आघात लगा था   । 

अजन्मे पोते की मृत देह को देखकर शांति जी का दिल छलनी – छलनी हो रहा था,,, उनकी दो – दो बच्चों की दादी बनने की उम्मीद पर पानी फिर गया था । 

कुछ ही दिन में मानवीं को अस्पताल से छुट्टी मिल गई और वह घर आ गई,,,।




अपना बच्चा खो देने के बाद मानवी अब उदास रहने लगी थी और उधर स्निग्धा से उस बेचारी का दुख देखा ना जाता था । देवरानी और सास के दिए हुए सारे दंश वह भूल कर वह मानवी की सेवा में लग गई थी । 

धीरे-धीरे मानवी की सेहत में सुधार आने लगा था,,,ईश्वर के मर्जी के आगे किसी की नहीं चलती इसलिए उसने इस दुख से उबरने में ही अपनी भलाई समझी  । अब वह अपनी भाभी स्निग्धा के साथ उसके कामों में मदद करने लगी ,,। 

कुछ ही दिनों में सब कुछ पहले की तरह सब ठीक हो गया । और फिर एक दिन सासू मां की वही आवाज सुन कर दोनों बहुएं चौंक गईं ,,,।

अरी बहुओं ,,,!,! 

कहां हो तुम,,? मैंने तुम्हारा खाना टेबल पर लगा दिया  है,,।  

क्या हुआ मां जी ,,,? 

आज आप खाना क्यों परोस रही हैं ,,,? 

” आप अपने कमरे में आराम कीजिए,,, यह सब मैं अपने आप कर लूंगी ,,। स्निग्धा ने दबे स्वर में मां जी से कहा ।

शांति जी बोली ,,,अरे,,,!  

तुम क्यों चिंता करती हो,,,?

अब जब मानवी ने भी तुम्हारे साथ काम संभाल लिया है,,,तो मुझे तो सिर्फ़ खाना परोसने का ही काम है,,, इसमें काम या थकान की क्या बात है ,,??

चलो चलो,,,!!

 ज्यादा बातें ना बनाओ खाने की टेबल पर आ जाओ,,। 

स्निग्धा को वह जली हुई रोटी याद आने लगी थी,,। परंतु दोनों को लगा कि शायद सासू मां के भी व्यवहार में परिवर्तन हो गया होगा ।

मां जी ने दोनों बहुओ की थाली में खाना परोसना शुरू किया ,,, दोनों बहुएं शान्ति जी को एकटक देख रहीं थीं कि वे आगे क्या करने वाली हैं ।

उन्होंने दोनों की थाली में रोटी रख दी,,,।




पर यह क्या ,,,!

आज बासी रोटी की थाली बदल गई थी।

शांति देवी ने रात की बासी रोटी स्निग्धा की थाली में ना रखकर मानवी की थाली में रख दी थी,,,।

बासी रोटी अपनी थाली में देखकर मानवी की आंखों से आंसू निकल आए । परंतु अपने कर्मों को याद कर उसने अपने आंसू पोंछे और इसे कर्म फल समझ कर चुपचाप बासी रोटी का ग्रास तोड़ कर खाने लगी ,,।

स्निग्धा को यह सब देख कर अपना समय याद आ गया ,,।

रुको,,, मानवी,,,!

स्निग्धा ने बासी रोटी का वह ग्रास मानवी के मुंह में जाने से पहले ही उसका हाथ रोक दिया ।

नही मानवी ,,,!!

जो सब मैंने झेला वह तुम नहीं झेलोगी,,, । 

और उसने अपनी देवरानी की थाली से वह बासी रोटी हटा ली,,।

स्निग्धा के फैसले को देख कर शांति जी और मानवी को अपनी की गई हरकतों पर शर्म आ रही थी,,,। 

परंतु स्निग्धा का प्रेम भरा व्यवहार देवरानी और सास के निर्दयी मन में प्रेम व करुणा का भाव उत्पन्न करने में तो कामयाब हो ही गया था ।

स्वरचित मौलिक 

#बहु          अप्रकाशित 

पूजा मनोज अग्रवाल

 दिल्ली

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