खुशियाँ लौट आईं – ज्योति अप्रतिम

वर्मा जी का बहुत बड़ा परिवार है।बड़े  बूढ़ों से ले कर  छोटे बच्चे भी घर में हैं।कह सकते हैं कि एक भरा पूरा सम्पन्न परिवार जहाँ सरस्वती और लक्ष्मी दोनों की कृपा बरसती है।

 सभी लड़के, बहुएं ,पोते ,पोती पढ़े लिखे हैं और अच्छी नौकरी और व्यवसाय में हैं।घर के बड़े बहुत दयालु हैं। नियमित रूप से वृद्धाश्रम और अनाथालय में दान दक्षिणा भेजी जाती है।

परिवार के सबसे छोटे बेटे की शादी होना थी और एक योग्य वधु की तलाश जारी थी।

आखिर एक दिन एक सुंदर ,सुयोग्य लड़की से रिश्ता तय हो गया।वह एक बहुराष्ट्रीय संस्था में अच्छे पद पर कार्य कर रही थी।

नए रिश्ते से सभी खुश थे।दादी सास ,सासूमाँ जेठानी ,ननदें सभी बेसब्री से नए सदस्य की राह देख रहे थे।

आखिर वह शुभ दिन आ गया।शहनाई की धुन के साथ नई बहू घर आ गई। नई बहू एकदम आधुनिक विचारों की थी।इस घर के रीति रिवाज उसे बिल्कुल पसंद नहीं थे।कुछ दिनों तक तो वह चुपचाप देखती रही फिर उसने खुलकर विरोध करना शुरू कर दिया ।उसका कहना था ,”हम सब इतनी मेहनत करके पैसा कमा कर लाते हैं ।उसे इस तरह क्यों व्यर्थ किया जा रहा है?भगवान ने जैसी जिसकी किस्मत बनाई है उसे वैसा भुगतने दो ।अब आगे इस तरह के दान रूपी अनावश्यक खर्च करने की आवश्यकता नहीं है।

घर के सभी ,बड़े से लेकर छोटे सदस्य इस व्यवहार से सकते में थे किंतु घर के लोगों के संस्कार ऐसे नहीं थे कि कोई खुलकर बोलता।

दादीजी ने इस बारे में समझाने की कोशिश की ।बदले में उसने  उन्हें चार बातें पकड़ा दीं।वे बहुत आहत थीं।

धीरे धीरे बहू ने अपने पति के कान भरना शुरू किया और घोर आश्चर्य की बात थी कि उसने भी अपनी पत्नी का साथ दिया।घर टूटने की कगार पर आ गया।उन दोनों ने अपना घर अलग बसाने की घोषणा कर दी और इस तरह पीढ़ियों पुरानी संयुक्त परिवार कीपरंपरा अब खत्म हो रही थी।

दादाजी ने नई बहू को उसकी इच्छा पूरी करने दी।

उन्होंने अलग घर बसाने की आज्ञा सहर्ष दे दी।

उन्होंने उसे बुला कर कहा ,तुम केवल एक बार हमारे साथ उन जगहों पर चलो जहां हम लोग निरन्तर अपनी सेवाएं दे रहे हैं।उसके बाद तुम अपनी इच्छा पूरी कर सकती हो।




नई बहू की इच्छा पूरी हो रही थी।वह इस छोटी सी शर्त मानने के लिए खुशी से तैयार हो गई।अगले दिन वह अपने दादा ससुर और दादी सास के साथ सबसे पहले  झुग्गी -झोपड़ी में गई ।कार रुकते ही  झोपड़ियों में से बहुत सारे गरीब लोग निकल कर आ गए ।उनके बदन कमजोर थेऔर कपड़े फ़टे हुए थे । वे दादी और दादा के पैर छूने दौड़ पड़े और बहुत दिनों बाद आने का कारण पूछा।दादाजी ने  अपना स्वास्थ्य खराब होने की बात कह कर खत्म कर दी।दादी और दादाजी ने अपने साथ लाए हुए कपड़े और भोजन उन्हें दिए।सब सामान पा कर उन लोगों की खुशी देखते बनती थी।

नई बहू यह सब बहुत ध्यान से देख रही थी।उसका अंतर्मन कांप उठा ।यह बात दादाजी की नजरों से छुपी न रह सकी किन्तु उन्होंने उसे अनदेखा कर दिया ।

वहाँ से वे लोग अनाथालय पहुँचे ।जब  बहू ने बिना माँ बाप के छोटे छोटे बच्चों को देखा जिनके पास न पहनने को ढंग के कपड़े थे न ही खाने के लिए कुछ विशेष बल्कि पेट भरने की बात थी।

बहू  दादी के गले लग कर रो पड़ी।दादी ने उसे सांत्वना दी ।उसने उन बच्चों को प्यार किया ।लाया हुआ सामान दे कर वे आगे बड़े।

अब वे वृद्धाश्रम पहुँचे।कई अशक्त वृद्धों ने एक साथ हाथ जोड़ कर दादाजी को नमस्ते किया।

वे दादाजी व दादी से मिलकर बहुत प्रसन्न थे।

अब लौटने का समय था ।रास्ते भर बहू चुपचाप बैठी रही। उसकी आत्मा अंदर ही अंदर कचोट रही थी उस गलती के लिए जो वह बिना सोचे समझे करती रही।

 घर पहुँचते ही उसने घर के सभी लोगों से माफ़ी माँगी।उसने अपने अलग होने के निर्णय को वापस लिया साथ ही बताया कि उसकी तनख्वाह का दस प्रतिशत हिस्सा अपने दादाजी को दान दक्षिणा हेतु देगी।

आज घर में केवल बहू नहीं सब खुश थे।बहू का मन सकारात्मक रूप से बदल गया था।

#बहु 

ज्योति अप्रतिम

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