वेदना (दर्द) – मीनू जायसवाल

चित्रकथा

पहले तो मन में एक ही सवाल आता है वेदना (दर्द) क्या है, तो आइए हम आज थोड़ी सी इसी विषय पर चर्चा कर लेते है, वेदना यानी “दर्द”जो हम सब के हिसाब से आमतौर से शारीरिक चोट पहुंचने से होता है ,लेकिन मेरा अपना अनुभव कहता है की वेदना सिर्फ शारीरिक चोट ही नहीं बल्कि मन की भी वेदना(दर्द) होती है ऐसी वेदना जिसमें इंसान बाहर से तो खुश और मन से घायल होता है, और इसके घायल होने का कोई एक कारण नहीं, ना जाने कितनी ही बातें होती हैं जो इंसान किसी से बयान भी नहीं कर सकता उनमें से ही एक वाक्य आप लोगों से सांझा करना चाहूंगी…


हमारे पड़ोस में एक निर्मला काकी रहती थी जिनका एक बेटा था, निर्मला काकी बहुत निर्मल स्वभाव और मददगार महिला थी ….जो जरूरतमंदों की मदद करती थी। जब से हमने होश संभाला था उनको अकेले ही देखा था,मेरे कहने का मतलब है कि उनके परिवार में सिर्फ वह और उनका बेटा रहते थे क्योंकि उनके पति ने काफी समय पहले ही उन्हें छोड़ दिया था…जिसके कारण वह सब से दूर और अलग रहती थी पर एक औरत का अकेले रहना इस ढोंगी समाज को मंजूर ना था वह आए दिन निर्मला काकी पर गलत – गलत इल्जाम लगाते थे या फिर उनको सताने के लिए बुरी नजर डालते थे जिसके कारण वह थोड़े तेज स्वभाव की हो गई थी क्योंकि एक औरत का अकेले रहना इस ढोंगी समाज में उतना ही मुश्किल है ,जितना “किसी जंगल में जंगली जानवरों के बीच” परंतु वह समय जैसा भी रहा उन्होंने अपने आप को संभालते हुए अपने बच्चे का लालन पालन और उसकी पढ़ाई पूरी करवाई, जिसकी वजह से आज वह अपने पैरों पर खड़ा था…. इसके बाद बात आई उसकी शादी की.. तो हर मां का सपना होता है अपने बेटे का घर बसते देखना अपनी बहू और पोता-पोती के साथ रहने का ….उन्होंने भी यही सपना देखा ..और उसकी शादी करवा दी, शुरू के कुछ दिनों तक तो सब ठीक चल रहा था .. कुछ ही वर्षों में उनके दो पोते भी हो गए थे.. अब बीतते वर्षों के साथ उम्र का बढ़ना और शरीर का साथ छोड़ देना तो लाज़मी है.. बस अब उनके साथ भी यही हुआ कि वह बहुत बीमार रहने लगी, जब उन्होंने डॉक्टरी जांच करवाई तो उन्हे पता लगा कि उन्हें कितनी सारी बीमारियों ने घेर लिया है ,ऐसा लग रहा था जैसे मानो दुखों का पहाड़ ही टूट पड़ा हो, और ऊपर से बेटे बहू ने भी उनकी देखभाल करने से मना कर दिया उनके बेटे का कहना यह था कि मैं अपने बच्चों का भविष्य देखूं या तुम्हारी दवा दारू में खर्चा करू,इलाज की तो बात छोड़ो बहू ने तो किसी भी काम को करने से मना कर दिया और अगर दो रोटी खाने को देती तो  वह भी एहसान जताकर, काकी अब पूरी तरह से टूट चुकी थी उन्होंने कभी नहीं सोचा था,कि जिस बेटे को 9 महीने अपनी कोख में रखा जिस को पालने में कोई कमी ना छोड़ी थी जिसके लिए पूरी दुनिया का सामना किया था जो उनका आखिरी सहारा था उसने ऐसे वक्त पर उनका साथ छोड़ दिया जहां उनको उसकी जरूरत थी,शायद इतनी वेदना तो उस वक्त भी ना हुई थी जिस समय उनके पति ने उनको बेसहारा छोड़ा था …..उस दर्द के आगे तो यह दर्द कई गुना बढ़ गया था उनके लिए….. मैं और आप सब अच्छे से समझ सकते हैं

चुभ जाती है बाते कभी,

तो कभी लहजे मार जाते है,

यह जिन्दगी है जनाब , यहां हम गैरो

से ज्यादा , अपनों से हार जाते है।

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