वनवास (भाग 1)- डॉ. पारुल अग्रवाल : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi : आर्यन अठारह साल का आकर्षक सा किशोर जिसने अपनी बारहवीं की परीक्षा बहुत अच्छे अंको से पास की थी।आगे की शिक्षा के लिए उसका मन बाहर की यूनिवर्सिटी में जाने का था पर दिल के कोने में कहीं ना कहीं उसको अपनी मां की भी चिंता थी। असल में आर्यन जब चार-पांच साल का था तब उसके पिताजी की एक दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी।

उसके पिताजी बैंक में मैनेजर थे। उसकी मां रचना भी पढ़ी-लिखी थी। मां को पिता जी के जाने के बाद उसी बैंक में अनुकंपा के आधार पर नौकरी मिल गई थी। घर भी उन लोगों का अपना था। उसके मां और पिताजी भी समृद्ध परिवारों से थे इसलिए उसकी परवरिश में कोई अभाव नहीं आया था पर पिताजी के यूं अकस्मात चले जाने से उसके और मां के जीवन में जो भावनात्मक कमी आई थी वो कोई नहीं भर पाया था।

जब पिताजी की मृत्यु हुई मां सिर्फ चौबीस-पच्चीस साल की थी।आज इस उम्र में तो लोग शादी भी नहीं करते। पिता जी के जाने के बाद उन्होंने दिल पर पत्थर रखकर आर्यन को संभाला। उसको माता और पिता दोनों का प्यार दिया पर खुद बिल्कुल अकेली पड़ गई थी। जो मां पिताजी के सामने हर समय चहकती रहती थी वो अब गुमसुम सी हो गई थी।

करवाचौथ पर सोलह श्रृंगार करने वाली मां सुहागन स्त्रियों के सामने जाने से भी कतराने लगी थी। रचना ने अपने आपको आर्यन के पालन पोषण और नौकरी में व्यस्त कर लिया था। एक दो बार नाना-नानी ने उनसे दूसरी शादी के लिए भी कहा पर उन्होंने आर्यन की वजह से इस प्रस्ताव को पूरी तरह से नकार दिया।

अब तक तो ठीक था क्योंकि आर्यन और वो एक-दूसरे का सहारा बने हुए थे पर अब आगे की पढ़ाई के लिए आर्यन को बाहर जाना था। मां को अकेला छोड़कर जाते हुए उसका दिल बैठा जा रहा था। उसकी परवरिश के लिए मां का किया संघर्ष उससे छिपा नहीं था। 

उसके दिमाग में ये सब चल ही रहा था तभी उसे नंदिनी मौसी से बात करने का ख्याल आया । नंदिनी मौसी मां की बहुत पक्की सहेली थी और आर्यन के साथ भी उनका व्यवहार बहुत दोस्ताना था। कहीं ना कहीं नंदिनी भी चाहती थी कि रचना दोबारा से सामान्य हो जाए वैसे भी अब आर्यन के पिता को गए हुए भी चौदह वर्ष हो चुके थे।

आर्यन ने चुपचाप नंदिनी को फोन लगाया और अपनी चिंता उसके साथ साझा की। आर्यन ने नंदिनी को बताया कि उसने विदेश में उच्च शिक्षा के लिए परीक्षा दी है। परीक्षा के अंक भी अच्छे आए हैं। अभी यूनिवर्सिटी,जगह और वीजा में महीने का समय लग जायेगा पर जाने से पहले मैं चाहता हूं कि मां को भी एक साथी मिल जाए। अभी उनकी उम्र ज्यादा भी नहीं है,वो सिर्फ बयालीस साल की हैं। पिताजी के जाने के बाद उन्होंने अपने सभी अरमान दिल के किसी कोने में गुम कर दिए। उनको भी हक है सपने देखने का। 

अगला भाग

वनवास (भाग 2)- डॉ. पारुल अग्रवाल : Moral stories in hindi

डॉ. पारुल अग्रवाल,

नोएडा

#अरमान

 

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!