वापसी ( रिश्तों की) – रचना कंडवाल

मॉम अब मैं उस घर में वापस नहीं जाऊंगी। सुनिधि धम से आ कर सोफे पर बैठ गई। बरखा राय की लैपटॉप पर तेजी से चलती हुई उंगलियां थर्रा कर रुक गईं।

उसने लैपटॉप बंद किया और आकर सुनिधि की बगल में बैठ गई।

क्या हुआ मेरा बच्चा??

उसने उसका हाथ अपने हाथों में ले लिया।

सुनिधि ने अपना सिर उसकी गोद में रख दिया।

मॉम विपुल को मुझमें या अपने मॉम डैड में से किसी एक को चुनना होगा।

ऐसा क्यों?? बरखा सोच में डूब गई उसके हाथ सुनिधि के बालों में चलने लगे।



मैं अपनी आजादी उनके हाथ में नहीं दे सकती। मैं मार्डन विचारों वाली कैसे उन दकियानूसी लोगों के हिसाब से अपनी जिंदगी चला सकती हूं?

क्या किया उन लोगों ने??

क्या नहीं किया मम्मा?? ये बोलो।

जब देखो मम्मी जी मुझ पर हुक्म चलाती रहती हैं वो मुझे अपने हिसाब से चलाना चाहती हैं।

जब भी हम किसी फंक्शन में जाते हैं तो पहले से आर्डर दे देंगी कि ये पहनो वो पहनो।

खाने पीने पर नजर रखती हैं।

कभी दोस्तों के साथ आउटिंग पर जाओ तो  जल्दी घर न आने पर गुस्सा हो जाती हैं।

और विपुल???

विपुल क्या कहेंगे??? वो तो अपनी मम्मी के आज्ञाकारी बेटे हैं?? मुझे ही समझाने लगते हैं।

तुम्हें किसी चीज की कमी है वहां पर ???

ये कैसा सवाल है???

तो फिर विपुल प्यार नहीं करता???

पता नहीं सुनिधि ने कंधे उचका कर मुंह बनाते हुए कहा। बस जब भी मैं मम्मी की शिकायत करती हूं तो उन्हें कुछ कहने के बजाय मुझे समझाने लगते हैं।

माई डियर ! विपुल को तो तुमने पसंद किया था न बरखा ने धीरे से उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा।

मम्मा मुझे फ्रीडम चाहिए।जो यहां थी। मैं रॉय मेंशन मिश करती हूं। प्यार वार कुछ नहीं होता सब चार दिन के चोंचले हैं।

मैं बन्धन महसूस करने लगी हूं।

बरखा सोच में डूब गई सुनिधि उसकी इकलौती बेटी है।

विपुल अच्छा लड़का है। अपने माता-पिता का इकलौता बेटा है। उसके माता-पिता बहुत ही अच्छे हैं।

भले ही हमारी तरह बिजनेस फैमली से ताल्लुक न रखता हो पर बहुत ही सुलझा हुआ रिश्तों को ईमानदारी से निभाने वाला लड़का है वह मल्टीनेशनल कंपनी में चीफ एक्जीक्यूटिव है। अच्छा कमाता है।

पर रिश्ते जब दोनों तरफ से निभाएं जाते हैं तभी जिंदगी भर चलते हैं ।

सुनिधि अत्यंत लाड़ के कारण नकचढी और तुनक मिजाज है।



जब उसने विपुल से मिलवाया था तो उसे सुनिधि के लिए वो बिल्कुल परफेक्ट लगा था। उससे बात करने पर उसे अरिंदम याद आ ग‌ए थे। बिल्कुल वही लहजा वैसा ही मोहक व्यक्तित्व, शांत जैसे सागर की गहराई, दमदार आवाज अगर सुनिधि परी जैसी खूबसूरत थी तो विपुल किसी राजकुमार से कम नहीं था। उसे लगा था कि परी कथा हमेशा खुशनुमा होती हैं। दोनों खुशहाल जीवन जिएंगे। पर उसके सामने आज अपना अतीत आकर खड़ा हो गया था जिससे वह हमेशा मुंह छिपाती आई है।

सोचते हुए उसके हाथ पैर जैसे ठंडे पड़ ग‌ए थे।

क्या सुनिधि भी वही सब दोहराएगी जो बाइस साल पहले उसने किया था????

शेष अगले भाग में–

वापसी ( रिश्तों की) भाग–2 – रचना कंडवाल

© रचना कंडवाल 🙏

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