उसका अपराध आत्महत्या थी । – अनिल कान्त

प्रथम बीयर के अंतिम घूँट के साथ ही उसकी आँखें बहकने लग गयीं । अभी चार की गिनती शेष थी । हम सन् 2002 की बीती सर्दियों की शाम को याद करके पीने में ख़ुशी महसूस कर रहे थे । उसके पास उन सर्दियों को याद करके ख़ुशी मनाने का अच्छा बहाना रहता था । और फिर बिना ख़ुशी, बिना गम के पीने में अपराधबोध होने लगता था । उसका यूँ एकाएक उन्हें याद करना मुझे भी अच्छा लगने लगा था । हालाँकि उन बरसात के बाद के दिनों को याद करना दुःख की बात थी किन्तु धीमे-धीमे वह सुख देने लगीं थीं ।

हर एक बीयर और सिगरेट के कशों के साथ उसका उन प्रेमपत्रों को पढने का रिवाज़ था जो कि बीते हुए समय के प्रथम और अंतिम तौहफे थे । हर बार की तरह मुझे याद हो आता कि पिछली दफा किस प्रेम पत्र को पढ़ते हुए उसने कौन सी कहानी सुनाई थी या किस बात पर वो हँस दिया था और किस बात को याद करते हुए उसकी आँखें छलक आयीं थीं । उसकी इन सभी आदतों को प्रारम्भ के दिनों में मैंने बदलने की यथासंभव कोशिश की थीं । जो बाद के दिनों में धीमे-धीमे ख़त्म हो गयी थीं ।

उसे उस लड़की से प्रेम था और शायद उस लड़की को भी । इस बात का मैं यकीनी तौर पर गवाह नहीं बन सकता किन्तु हाँ उनका प्रेम उन बीते दिनों की रातों में एक दूजे को थपकियाँ देकर अवश्य सुलाता था । ऐसा उसने पिछली से पिछली सर्दियों में तीसरी बीयर के पाँचवें घूँट पर कहा था । मुझे उनके इस तरह से सोने की आदत पर हँसी आयी थी । जिसे मैंने बीयर के घूँट तले दबा लिया था ।

मुफ्त की बीयर पीने का मैं शौक नहीं रखता, ऐसा मैंने शुरू के दिनों में उससे कहा था । हमारी दोस्ती तब कच्ची थी, जिसे उसने अपने प्रेम पत्रों के पढ़ते रहने के बीच पक्का कर दिया था । मेरा काम केवल उसकी यादों का साक्षी भर होना नहीं था बल्कि उसमें अपनी राय को शामिल करना भी था । ऐसे कि जैसे मेरे उन गलत-सही विश्लेषणों से उसके प्रेम के वे मधुर-मिलन के दिन फिर से नई कोपिलें फोड़ देंगे । यह ठीक रिक्त स्थान को अपनी उपस्थित से भरने जैसा था ।




यह तीसरी बीयर थी जब उसने मुझे बताया कि इस बार की सर्दियों के अंतिम दिनों में वह ऑस्ट्रेलिया जा रहा है । उसके ऑस्ट्रेलिया जाने के कहने के बाद से ही मुझे उसके वे मरे हुए दिन याद हो आये जिनमें वो किसी और से शादी करके वहाँ बस गयी थी । अब ऑस्ट्रेलिया शब्द का अर्थ मुझे उसके वे मृत दिन लग रहे थे । जो वहाँ खुशहाली से चारों ओर पसरे होंगे । इसका वहाँ जाना जैसे बारिश कर देना था ।

हम अब पूर्णतः बीयर की गिरफ्त में थे । उसका ये कहना कि वो वहाँ जाकर उसे तलाश कर उसके तौहफे दे देगा । उसका मुझे आसमान से जमीन पर बेरहमी से पटक देना था । वो एक कस्बा नहीं था, ना ही कोई अजमेर जैसा शहर, जोकि हर गुजरता आदमी बता दे कि मन्नत कहाँ जाकर माँगनी है । वो एक देश था, अपने में सम्पूर्ण और अंजान । उसका वहाँ जाना, उसका खो जाना था । उसके बीयर के दिनों को भूल जाना था, जो कि बहुत भयानक था । उसने बीते दिनों में जीना सीख लिया था किन्तु अब वह खुद के लिये पुरानी वजह तलाशेगा । यह ख़ुशी से आत्महत्या करने जैसा था ।

कहते हैं आत्महत्या करना कानूनन अपराध है ……

अनिल कान्त

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