उफ्फ बुआ जी की नादानियां ( भाग-1) – सुल्ताना खातून 

हमारे खानदान मे हमारी बुआ जी के नादानियों के किस्से बड़े मशहूर हैं,,, दरअसल वो हमारी चच्ची की बुआ हैं मतलब उनके अब्बा की बहन….

बात बहुत पुरानी है… जाहिर सी बात ही अब बुआ जी पुरानी हैं तो उनके किस्से भी पुराने ही होंगे…. हालांकि बुआ जी पुरानी हैं पर लगती नहीं हैं देखने मे खूबसूरत, रौबदार देखकर लगता नहीं कभी इतनी मासूम रही होंगी।हाँ जी अब हमारा सारा खानदान ही गांव मे बसा हुआ है… इसीलिए बुआ जी ने अभी सोलह सावन पूरे किए नहीं थे कि उनके अब्बा ने उनके हाथ पीले कर दिए……और क्यूँ ना करते अब हमारे फुफ्फा जी ठहरे शहरी बाबु…. रुकिए जरा फुफ्फा जी से भी परिचय करा दूँ….. हाँ तो उनके दादा जी शहर गए तो वहीँ के होकर रह गए पर गांव का घर आबाद था भूले भटके उनके बच्चे आते  रहते वहीँ किसी शादी मे हमारे फुफ्फा जी के अम्मा ने हमारे बुआ जी को देख लिया….. अब सोलह सावन का बहार उतरा था हमारी बुआ जी पर मोहित हो गई फुफ्फा जी की अम्मा…. और बुआ जी के घर के चक्कर काटने लगी शादी की डेट लेकर ही मानी…. अब चूँकि उन्हें शहर भी जाना था तो शादी झटपट हो गई…. बुआ जी को सखियाँ छेडतीं और बुआ जी ये सोचकर हलकान होती कि…. शहरी लोगों के बीच कैसे रहेंगी……

अब शादी भी हो गई…. तय पाया कि कुछ दिन गांव ही रहेंगे फिर शहर जाएंगे…. यानी सुहागरात यही मना बुआ जी का…. फुफ्फा जी के यहां गांव मे भी शहरी माहौल था बुआ जी आंखे फाड़े देखे जातीं….. खैर से रात गुज़री   बुआ जी उठीं तो फुफ्फा जी गायब…. उजाला फैलने से पहले बुआ जी बत्ती बुझाना चाहती थीं…. पर मुआं ये बत्ती बुझ के नहीं देती बुआ जी ने तो दिया देखा था जिसे झट से फूंक मारो और पट से बुझ गया अब ये लालटेन कैसे बुझे….बुआ जी परेशान इधर उधर देखे जातीं … बुआ जी को छज्जे पे गमला दिखा…. इससे पहले कि कोई आता बुआ जी ने गमला उठाया और लालटेन को झटपट ढक दिया…..



दरवाजे पर दस्तक हुई बुआ जी ने दरवाजा खोला…. सामने शहरी छोटी नन्द खड़ी थीं… भाभी यार यहां कितनी जल्दी उठा देते हैं मैं आपके रूम मे सो जाती हूँ… कहकर वह बेड पर  लेट गई…. अब बुआ जी की घबराहट बढ़ते जाती…. नन्द की नजर सामने टेबल पर पड़ी….. भाभी ये गमला यहां क्या कर रहा है बुआ जी घबरा के गमला पकड़ के बैठ गईं….. नंद की उत्सुकता बढ़ी सबको बुला लाई सासु अम्मा भी आ गईं उन्होंने गमला हटाया सामने जलता लालटेन…… बुआ जी ने रुआँसी होकर सारा किस्सा कह सुनाया….सब हंसे जाते और सासु अम्माँ न्यौछावर होतीं…. हाय कितनी भोली है मेरी बहु…. सबको हंसता देख बुआ जी के आँसू फुट पड़े…. बड़े बड़े आँखों से मोटे मोटे आंसुओं के धार निकल पड़े….सासु अम्माँ ने सब को डांट लगाई…. और लालटेन बुझाने का तरकीब भी बता दिया…. पर  बुआ जी के तो होश उड़े पड़े थे ये सोच कर कि जब शहर जाएंगी तो कैसे क्या होगा वहाँ तो रोज ऐसे वाक्ये होंगे यही सोच कर बुआ जी ने ऐसा रोना मचाया कि उनके अब्बा जी को लेने आना पड़ा…. सखियों ने सुना कि बुआ जी घर आ गई हैं तो मिलने चली आईं…. उन्होंने सोचा था बुआ जी से शहरी साजन के किस्से सुनेंगी…..

पर यहां तो माजरा ही कुछ और था….. पर सखियों ने हार नहीं मानी….एक ने कोहनी मारी ऐ लाडो बताना शहरी बाबु के बारे मे कैसी गुज़री रात…..बातों बातों में बुआ जी के नाम का जिक्र ही नहीं हुआ…. हाँ तो बुआ जी सब की लाडो थीं,,,, तो नाम भी लाडो पड़ गया….और सबके लाड प्यार ने उन्हें बड़ा बनने का मौका ही ना दिया…..अम्माँ लाख समझाती डांट डपट करतीं अब्बा आड़े आ जाते…… अब्बा काम को हाथ ना लगाने देते…..कहते मेरी लाडो, रानी है रानी काम को हाथ ना लगाना….. दरअसल खानदान मे कई पीढ़ियों के बाद कन्या का जन्म हुआ था बुआ जी के रूप मे……और किस्मत भी बुआ जी ने खूब पाई थी…. खानदान के किसी मर्द ने भी शहर का मुँह ना देखा था और बुआ जी….. शहरी बाबु की दुल्हनिया बनी……

गांव में पांच जमातों तक का स्कूल था लेकिन लड़कियां कहाँ पढ़ती पर अब्बा के मेहरबानी से बुआ जी साल मे एक आध महीने जा कर वो भी किस्तों मे पढ़ पाई पर उतनी पढ़ाई से भोली बुआ जी का कहाँ भला होने वाला था….अब चालाक सखियाँ बुआ जी के पिछे पड़ी थी जानती थीं बुआ जी सुहागरात की सारी फिल्म दिखाने वाली हैं,,,,, पर डर था बुआ जी ने कोई गडबड ना कि हो इसीलिए पीछे पड़ी हुई थीं… और कुछ  शहरी दूल्हे के फिल्मी किस्से सुनने  के लिए उतावली हुए जातीं….और  सखियों ने बुआ जी से जब फुफ्फा जी के बारे मे पूछा तो बुआ जी लाल हो गयी साखियों को राहत हुई चलो ये मामला तो ठीक है पर बुआ जी से जानना चाहती  थी………. बता ना लाडो रात क्या हुआ…. अब बुआ जी शर्माती जातीं,,,,,,, बताती जातीं और सखियों के चेहरे का रंग बदलता जाता……..

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