भरोसा – रश्मि स्थापक

उस सर्द शाम को धुंधलका कुछ जल्द ही हो चला था। ट्रेन अपनी गति से भाग रही थी और नील का मन भी उतनी ही तेजी से भाग रहा था। रह रह कर उसे निशा का मासूम सा चेहरा दिखता। कभी मुस्कुराता हुआ कभी हंसता हुआ और कभी बिल्कुल उदास। धड़कते दिल से रामगढ़ आने का इंतजार कर रहा था। वहीं से तो निशा ट्रेन में बैठने वाली थी। मैं खिड़की के बाहर देखा। हरा-भरा मैदान बहुत दूर-दूर तक लगता था आसमान से जाकर मिल रहा था। तेज हवा के झोंके ने पुराने पन्ने फिर पलट दिए।

वो कॉलेज के दिन लाइब्रेरी की शामें और कैंटीन की बैठकें सब जीवंत हो गई। सात आठ दोस्तों का ग्रुप था। जमकर मस्ती करते थे और खूब जमकर पढ़ाई करते थे। कि सब कैरियर के सुंदर सपने देख रहे थे उसके साथ हमेशा पढ़ने- लिखने वाले लड़कों का ही झुंड रहता था। यूनिवर्सिटी में उस समय पढ़ाई का बहुत बेहतरीन माहौल था। साइंस की फैकेल्टी में एक से बढ़कर एक प्रोफेसर थे। केमिस्ट्री की लैब में ही सबसे पहले हुई थी निशा से उसकी मुलाकात।

हे भगवान कोई इतना भी इनोसेंट हो सकता है। सबसे पहले यही सोचा था उसे देखकर उसने। वह कितनी तल्लीनता से समझ रही थी उसके बाजू से खड़ी हुई। उस दिन जूनियर लोगों को सीनियर के साथ लैब में बुलाया गया था।

उस दिन तो इतना शोर शराबा था कि उससे हाय हेलो भी न हो पाई थी। पर शाम को भी कहीं न कहीं वह उसके ख्यालों में गाहे-बगाहे आ ही रही थी।

दूसरे दिन तीसरे पीरियड के बाद वह लाइब्रेरी में में कुछ पुस्तकों की तलाश में था क्योकि अगले ही महीने उसे शोध पत्र पढ़ना था। वह पुस्तकें लेकर मुड़ा ही था कि निशा को उसने लाइब्रेरी में दाखिल होते हुए देखा।उसके पास कोई पुस्तक थी और वह नोट्स बनाने के लिए

राइटिंग डेस्क के सामने रखी कुर्सी पर बैठी ही थी कि दोनों की नज़र मिल गई। वह उसे देखकर मुस्कुरा दिया। बदले में वह भी हल्के से मुस्कुराई और फिर लिखने में व्यस्त हो गई।

बस उसके बाद तो कॉलेज की लाइब्रेरी, कॉलेज के अहाते के ऊंचे-ऊंचे पेड़, कॉरिडोर सब गवाह थे उन दोनों के साथ-साथ चलने की।

ट्रेन ने एक लंबी सी सीटी दी…. नील की तंद्रा भंग हो गई । सामने रखी पानी की बोतल से पानी पिया। एक लंबी सांस ली….कभी-कभी कितने  गलत फैसले लेता है इंसान… हे! भगवान… कम- से- कम उसे अपनी गलती सुधारने का मौका मिल रहा है।

शायद ट्रेन उस वक्त किसी स्टेशन पर रुकी थी… ट्रेन के चलते ही उसके विचार भी उसके साथ फिर चलने लगे।



सब कुछ तो अच्छा हो रहा था। कितनी प्यारी थी निशा। नाजुक छरहरी, हर चीज में नज़ाकत। जब भी वह उसकी तरफ देखता उसकी आँखों में एक अजीब तरह की खुशी उसे दिखाई देती। निशा की आंखों में उसने हमेशा खुद के लिए प्रशंसा के भाव ही देखे। कॉलेज का टॉपर सीनियर था उसके लिए।कोई कार्यक्रम उसके बिना होता नहीं था। सिंगिंग मेः उसका अच्छा दखल था। कुल मिलाकर वह डिमांड में था। उनकी तो दो-तीन एग्जाम्स निकल गए थे। अच्छा और अच्छा करियर चाहता था वह।

बस वहीं पर प्रोफेसर राय की पार्टी और वहीं उसकी दुनिया बदल जाएगी उसने सोचा न था। आमतौर पर प्रोफेसर किसी छात्र को बुलाते नहीं थे, वह फूले नहीं समा रहा था खुशी से कि प्रोफ़ेसर राय जिनकी पुस्तकें देश-विदेश मैं चल रही है उन्होंने अपनी पार्टी में उसे बुलाया।

उसके पैर जमीन पर ही नहीं पड़ रहे थे। घर जाकर एक घंटे शावर लिया। पिताजी ने उसे जो भाई की शादी में ब्लैक सूट दिलवाया था उसमें बिल्कुल किसी प्रिंस की तरह वह पार्टी में पहुंचा।

पार्टी क्या थी स्वर्ग था बिल्कुल। सर के सामने तो व झुके-झुके जा रहा था। कम से कम दस बार सर को आपका शुक्रिया अदा कर चुका था। वही सर ने मिलाया नीलम से। सच में क्या होगा गज़ब की सुंदर लड़की थी। अपनी नानी के घर फैशन डिजाइनिंग में ग्रेजुएशन करने गई हुई थी। ग्रेजुएशन कंपलीट करने के बाद वह अपना खुद बुटीक और फैशन स्टोर एक साथ स्टार्ट करने वाली थी ।

बस यही वह समय था परीक्षा का… जीवन की परीक्षा का। एक तरफ थी मासूम-सी निशा जो उसकी हर कही-सुनी बात पर यकीन करती थी। और कहाँ उसे मदहोश करने वाली नीलम।

क्या नशा था उसकी आंखों में… और क्या स्टाइल थी उसके जीने की। बस यहीं वह बह गया… उस शाम जब उसे अपने मनपसंद जाब का  अपाइन्मेट लेटर मिला… और वह दौड़ कर प्रोफ़ेसर राय के केबिन में पहुंचा तो उन्होंने खुद आगे बढ़कर अपने गले लगाया पकड़ कर खुद अपनी लंबी सी गाड़ी घर ले गए थे।



उस के कंपार्टमेंट में …. टिकट चेकर  आया था… और विचारों की लंबी तंद्रा टूट गई।

उसने अपनी घड़ी पर निगाह डाली अब शायद एक घंटे बाद निशा को देख पाएगा। उसने गिना पूरे पाँच बरस बाद।

फिर विचार वहीं से जुड़ गए। न जाने उसे उस दिन क्या हो गया…. उसी दिन क्यों। बल्कि जब से वह प्रोसेसर राय की पार्टी से आया… इतनी बड़ी शख्सियत ने उसे हाथों हाथ लिया… बस उसकी तो जैसे नज़रें ही बदल गई।

ऐसा नहीं कि निशा ने यह बदलाव महसूस नहीं किया। पर पता नहीं क्यों उसकी यह फितरत ही नहीं थी कि कुछ प्रश्न करती। हाँ इतना जरूर था कि वह गहरे अवसाद से इस बदलाव का सामना कर रही थी।

और उसी शाम प्रोफेसर राय ने अपने परिवार के बीच नील को बेटी से शादी का प्रस्ताव दे दिया। एक झटके में तो उसे अपनी किस्मत पर यकीन नहीं हुआ… नहीं कहने का तो सवाल ही नहीं था… माता-पिता से तो पूछने का जिम्मा प्रोफेसर राय पहले ही ले चुके थे ।

बस सोने से पहले एक बार जरूर उसे  निशा का ख्याल आया था… पर उसने उस ख्याल को झटक दिया। एकाद बार बातचीत में वादा जरूर किया था जिंदगी भर साथ निभाने का पर यह कोई प्राण जाए पर वचन न जाए वाली सदी तो है नही।

बस वह अपने जीवन में आगे बढ़ गया। बहुत ग्रैंड सेलिब्रेशन था उसका विवाह भी।इतने  बड़े खानदान से नील का रिश्ता इसीलिए तो हुआ कि नील हमारे खानदान का हीरा है यह नील के माता-पिता भी जानते थे।

निशा को न जाने क्यों यकीन था कि नील इतना धीर गंभीर है वह अपनी बात पर कायम रहेगा। पर नील नीलम की अदाओं और प्रोफेसर राय के कद में कैद हो गया।

….समय तो अपनी रफ्तार से चलता ही रहा पर नील को कभी-न-कभी यह खबर मिलती रही कि निशा ने शादी करने से इनकार कर दिया है।



उसके जीवन में बवंडर  जैसे उसका.. इंतजार कर रहा था। कहाँ वह पढ़ने- लिखने वाला…धीमा संगीत सुनने वाला…दिन-रात अपने शोध-पत्र लिखने वाला नील और कहाँ वह नित नए फैशन के मेलों में अपने स्टोर्स लगाने वाली नीलम। दोनों के विचारों का कोई मेल नही था। फिर भी नील अपनी तरफ से रिश्ता निभाना चाहता था। पर नीलम ने उसका घर छोड़ते हुए यही कहा था कि वह उसके साथ ज़िदगी भर पढ़ते रहने वाली बोरिंग लाइफ नही गुजार पाएगी। कुछ दिन तो वह शांत बैठा पर फिर उसने प्रोफेसर राय से संपर्क किया तो पता चला कि वह किसीको डेट कर रही है।…. फिर वही लिखित रूप से रिश्ता टूटने का दौर।

जब थक- हार कर वह अपनी पुस्तको के पास लौटा..तब तक जाना माना रिसर्चर तो हो चुका था… पर ना जाने क्यों अब उसे हर पुस्तक के पीछे खड़ी निशा नजर आती जिसे उसके हर काम पर नाज़ था उसके हर काम के पीछे लगी मेहनत पता थी…।

बस अब चाहता था…निशा को बताना कि… गलती हो गई थी पर लौट आया हूँ ।

असल में जिस गाड़ी से वह सोनगढ़ जा रहा था उसी ट्रेन से लगभग एक घंटे की जर्नी के लिए निशा भी चढ़ने वाली थी वह रामगढ़ से भीमगेट तक का सफर कर रही थी जिसकी जानकारी अपनी माँ से ही उसे मिली थी यानी इस सफर में उसे एक घंटा मिलेगा साथ … और बिखर जाएगा वह उसके सामने। वह तो उसको हमेशा की तरह चाहती है… तभी तो उसने अब तक शादी भी नहीं की…सच वह कितनी सरल है…। शायद उसे ज्यादा कुछ बोलना ही नहीं पड़ेगा… की आंखों में अपने लिए जो तारीफों के समंदर थे उस पर बहुत यकीन था उसे…।

रात गहरा गई थी…. बेहद सर्द मौसम था।रामगढ़ आ चुका था। उसका दिल तेजी से धड़का… उसके सामने की बर्थ पर वह काली साड़ी में लिपटी हुई…अपने बैग को रखने के लिए… जब वह झुकी थी तो हवा में उसका पल्लू इस तरह लहराया… लगा कि रात उससे लिपटकर और गहरा गई हो।

वह सीट पर उसके सामने थी। सोने के लिए यात्रियों ने लाइट बुझा दी थी…धीमें से प्रकाश में चांदी सा चमकता उसका चेहरा उस पर रह रह कर आती काली जुल्फें

उसकी मासूमियत को और मासूम कर रहीं थी।

वह ज्यादा देर उसके सामने खामोश न रह सका।

उसने धीरे से उससे पूछा था कि वह कैसी है।

कुछ खामोशी के बाद उसने कहा कि वह अच्छी है।

कुछ देर गहन खामोशी रही… बस ट्रेन की आवाज आ रही थी।

दोनों एक दूसरे के सामने होकर भी एक दूसरे को नहीं देख रहे थे।



हवा के झोंके के साथ उसकी साड़ी का पल्लू बातें कर रहा था… कठिनाई से उसके चेहरे की तरफ देखा… इन पाँच वर्षों में वह बिल्कुल भी नहीं बदली थी समय ने उस पर कुछ भी चिन्ह नहीं छोड़े थे। बस बदली थी तो एक ही चीज उसकी आंखों में अपनी तारीखों के समंदर। जो लगता था अब सूख गए हैं। उसने अपने आप को समझाया कि शायद वह दुखी है , निराश है इसलिए उसे ऐसा लग रहा हो।

उसने अपने आप को समेट कर उससे पूछा कि क्या वह उससे नाराज़ है।

उसने शायद पहली बार उससे नज़र मिलाई और कहा नहीं वह उससे नाराज नहीं है।

अब नील को लगने लगा था कि उसे जल्द अपनी बात रखनी होगी क्योंकि उसके पास अभी ज्यादा समय नहीं है … और अब वह कोई रिस्क नहीं लेना चाहता था।

निशा …. अब तुम्हारा स्टेशन आने ही वाला है।

क्यों न असल बात तुमसे कह दूँ। ऐसा ही तो कहा था उसने।

स्टेशन आने वाला है जो कहना है कह दीजिए। एक हल्की सी मुस्कुराहट उसके चेहरे पर थी।

हमारा साथ दस मिनट ही है।

” नहीं निशा… मैं इस साथ को जीवन भर लंबा करना चाहता हूँ।”

“शायद आपको पता नहीं है, पर मेरी शादी तय हो चुकी है।”

“अरे! ….कब  ?”

“पिछले सप्ताह।”

“क्या तुम्हारी सगाई हो गई है?”

“नहीं…।”

“बस फिर तो… मैं घुटने पर झुक कर समझो एक गुलाब लेकर वैसे ही प्रपोज करता हूँ जैसे शायद तुम बहुत पहले चाहती थी।” वह उसी विश्वास से बोले जा रहा था।

” आप सच कह रहे हैं… मैं ऐसा ही चाहती थी… पर अब ऐसा नहीं हो सकता।”

” क्यों नहीं अभी कोई तुम्हारी शादी थोड़े हुई है,अभी बात ही तो पक्की हुई है।” नील ने आशान्वित होते हुए कहा।

“हाँ सही है ,अभी तक किसी ने मुझसे शादी नहीं की… पर अब मेरा पीछे हटना …. यानी किसी का भरोसा तोड़ना…जिसने कभी मेरा भरोसा तोड़ा हो उसके लिए मैं किसी और का भरोसा नहीं तोड़ सकती।”

भीमगेट आ गया था…उसने देखा….उसका  झीना सा पल्लू लहराया…और वह बिना उसकी ओर देखे… चली गई।

**********************

रश्मि स्थापक

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!