तुम्हारा पिता हुं , कोई कबाड़ का सामान नहीं !! – स्वाती जैंन : Moral Stories in Hindi

पापा , हम घर पहुंच चुके हैं ,चलिए आईए कहते हुए छोटे बेटे रोहन ने कार का दरवाजा खोला !!

कांतिलाल जी बेटे के साथ घर के अंदर पहुंचे तो घर को टकटकी लगाए देखते रह गए !!

बीच में बड़ा सा झूमर , महंगा फर्नीचर , मखमली सोफा , डायनिंग टेबल , एयर कंडीशनर और बड़ा सा टी.वी …..

कांतिलाल जी सोफे पर बैठते हुए बोले बेटा , तुने तो घर की काया पलट कर दी हैं !!

रोहन बोला हां पापा यहां शहरो में ज्यादातर घर ऐसे ही होते हैं और आखिर कमा किसके लिए रहा हुं ??

सुनो रेखा , पापा को जरा चाय दे देना कहते हुए रोहन अपने कमरे में चला गया !!

कांतिलाल जी मन ही मन अपनी स्वर्गीय पत्नी मालती से बोले देखा मालती तुम्हारे छोटे बेटे ने कितनी तरक्की कर ली हैं ?? मैं तुमसे हमेशा कहा करता था कि हमारा छोटा बेटा एक दिन खुब तरक्की करेगा , चलो शहर जाकर रहते हैं मगर तुम नहीं मानी , काश !! आज तुम भी मेरे साथ होती तो देख पाती कि तुम्हारे बेटे ने कितनी तरक्की कर ली हैं , हमने मिलकर जो मकान खरीदा था उसे रहने लायक घर बना दिया हैं तुम्हारे बेटे ने कहते हुए कांतिलाल जी बीती बातें याद करने लगे !!

कांतिलाल जी अपनी पत्नी मालती के साथ गांव में ही रहते थे !! कांतिलाल जी के दो बेटे अभय और रोहन हैं !! बड़ा बेटा अभय और उसकी पत्नी शोभा दिल्ली शहर में रहते थे और छोटा बेटा रोहन और उसकी पत्नी रेखा मुंबई शहर में रहते थे !!

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उस समय रोहन की नई- नई जॉब लगी थी और शहरों में घर का किराया भी बहुत ज्यादा होता हैं इसलिए कांतिलाल जी ने उसे मुंबई शहर में यह घर खरीदकर दिया था !! रोहन ने कहा भी था पापा छोटा घर खरीदकर दोगे तो भी चलेगा मगर कांतिलाल जी ने जानबूझकर बेटे के लिए बड़ा घर खरीदा था और घर में सामने वाला कमरा अपने लिए रखा था !! कांतिलाल जी ने कहा था बेटा आगे चलकर मैं और तेरी मां भी तेरे साथ रहेंगे ताकि भविष्य में दोनों वृद्धजन यहां शहर आकर बेटे – बहू के साथ अपना बुढ़ापा सुखमय बीता सकें !!

कांतिलाल जी पत्नी मालती से हमेशा कहते कि थोड़े दिन शहर जाकर बेटों के पास रहते हैं मगर मालती जी हमेशा कांतिलाल जी की बात टाल दिया करती और कहती हम हमेशा से गांव में रहने के आदि हैं , शहर जाकर क्या करेंगे ??

फिर भी कांतिलाल जी की बहुत जिद पर वे लोग बड़े बेटे अभय और बड़ी बहू शोभा के यहां दिल्ली कुछ दिनों के लिए गए थे मगर वहां जब उन्होने देखा कि बड़ी बहू खाने – पीने की चीजें छुपाकर रखती ताकि हम वृद्धजन ना खा पाएँ और बात – बात पर दोनों बूढ़े दंपति पर गुस्सा करती तो दोनों वापस गांव चले आए थे !!

कांतिलाल जी मालती जी के साथ छोटे बेटे के शहर मुंबई आना चाहते थे मगर वे कहां जानते थे कि उससे पहले ही मालती जी उन्हें हमेशा के लिए अकेले छोड़कर भगवान को प्यारी हो जाएगी !!

मालती जी के स्वर्गवास के बाद बड़े बेटे और बहू के साथ कांतिलाल जी के कुछ अच्छे अनुभव नही रहे इसलिए छोटे बेटे – बहू के कहने पर वे छोटे बेटे के शहर मुंबई रहने चले आए थे !!

पापाजी यह लिजिए चाय !! बहू रेखा की आवाज से कांतिलाल जी की तंद्रा टूटी …..

कांतिलाल जी काली चाय देखकर बोले बहू , यह चाय कम काढ़ा ज्यादा लग रही हैं !!

रेखा बोली पापाजी यहां शहर में सब ऐसी ही चाय पीते हैं , यह शहरी स्टेट्स हैं आप भी धीरे – धीरे इससे वाकिफ हो जाएंगे !!

कांतिलाल जी ने चाय की चुस्की भरी मगर उन्हें चाय बिल्कुल अच्छी नही लगी !! वे ठहरे दूध से बनी चाय पीने वाले और यहां दूध बगैर की चाय उनके गले से उतरने का नाम ही नही ले रही थी !!

वे बोले बहू मेरे लिए दूध वाली चाय बना देना !!

पापाजी इस घर में दूध सिर्फ बच्चों के लिए आता हैं बोलकर रेखा रसोई में चली गई !!

कांतिलाल जी मन मारकर रह गए और अपना सामान लेकर सामने वाले अपने कमरे की तरफ जा ही रहे थे कि रोहन बोला पापा रेखा का भाई यहां शहर में ट्रेनिंग के सिलसिले में आया हुआ हैं तो उस कमरे में वह रुका हुआ हैं आप आईए मेरे साथ मैं आपको आपका कमरा दिखा देता हुं !!

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घर के कोने में बना हुआ एक छोटा सा कमरा रोहन ने खोला जिसमें सिर्फ एक पुरानी चारपाई पड़ी थी , देखने से प्रतीत हो रहा था जैसे यह इस घर का कबाड़खाना होगा !!

रोहन बोला पापा आप आनेवाले थे इसलिए घर का सारा कबाड़ कल ही बेचकर आया हुं ताकि आप यहां आराम से रह सकें , वैसे यह कमरा साल में दो बार ही खुलता था इसलिए यहां थोड़े दिन आपको गंध आ सकती हैं आप एडजस्ट कर लिजिएगा कहते हुए उसने चारपाई पर कांतिलाल जी का सामान रख दिया !!

कांतिलाल जी कमरे के अंदर गए और जैसे ही लाईट जलाई , एक मध्यम सी रोशनी जल उठी , कमरे में जीरो वॉल्ट का बल्ब लगा हुआ था और शायद कमरा कई महिनों तक बंद होने के करण कुछ अजीब गंध भी आ रही थी !!

कमरा इतना छोटा था कि शुरू होते ही खत्म भी हो जाता था !!

कांतिलाल जी को ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने उन्हें ऊंचाई से उठाकर नीचे धम्म से फेंक दिया हो !!

कांतिलाल जी मन ही मन सोचने लगे यह कैसी आधुनिक व्यवस्था हैं ?? जहां खुद के और बच्चों के लिए आलीशान सुविधाएं हैं और अपने पिता के लिए यह कबाड़खाना हैं !!

क्या मैं भी पुरानी चीजों की तरह इनके लिए कबाड़ बन चुका हुं जो मुझे इस कबाड़ख़ाने में ठहराया गया हैं ??

थोड़ी देर बाद कांतिलाल जी जब कमरे से बाहर आए तो देखा बेटा- बहू और उसका भाई मिलकर सभी एक – दूसरे के साथ हंस – बोल रहे हैं मगर कांतिलाल जी को खड़ा देखकर सभी असहज हो गए !!

रोहन बोला पापा आप आपके कमरे में ही रहिए , कुछ चाहिए होगा तो हम वहीं आकर आपको दे जाएंगे !!

कांतिलाल जी भी तो सभी के साथ बैठने और बातें करने ही आए थे मगर बेटे के दो टूक जवाब से वापस अपने कबाड़ख़ाने वाले कमरे में आकर बैठ गए !!

धीरे – धीरे दिन बीतने लगे और कांतिलाल जी ने दूध ,सब्जी लाने और बच्चों को स्कूल छोड़ने की ज़िम्मेदारी अब अपने कंधो पर उठा ली थी क्यूंकि उनका मानना था कि जिंदगी में खुश रहना ज्यादा मायने रखता हैं इसलिए वह यह सारे काम खुशी से करने लगे !! एक दिन उन्हे बहू रेखा की आवाज कानों में पड़ी वह बेटे रोहन से कह रही थी हमारे बच्चे कितनी बड़ी स्कूल में पढ़ने जाते हैं , वहां ज्यादातर अमीर घरानों के बच्चे ही पढ़ने आते हैं , मैंने स्कूल में अपना एक स्टैंडर्ड बनाकर रखा हैं ऐसे में तुम्हारे फुहड़ पिताजी मेरे बच्चों को स्कूल छोड़ने और लेने जाते हैं तो हमारा  स्टैंडर्ड डाउन होता हैं !!

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तुम्हारे पिताजी का गांव का पहनावा और बात करने के तरीके से मुझे ड़र हैं कि कहीं मेरे बच्चे भी उनकी संगति में गांव वालो जैसे ना बन जाए !!

तुम तो जानते हो रोहन मैं मेरे बच्चों से घर पर भी अंग्रेजी भाषा में ही बात करती हुं ताकि स्कूल में उनका अच्छा प्रभाव पड़ सकें मगर तुम्हारे पिताजी मेरे बच्चों से दिन भर हिन्दी में बात करते हैं जिस वजह से बच्चे हिंदी भाषा का ज्यादा प्रयोग करने लगे हैं और उनके देहाती कपड़े वह तो मुझे बिल्कुल पसंद नहीं इसलिए मैं नहीं चाहती कि तुम्हारे फुहड़ पिताजी मेरे बच्चों के आसपास भी फटके !!

रोहन बोला रेखा मैं जानता हुं पापा चाहकर भी शहरी माहौल नहीं अपना पाएंगे , थोड़े दिन तुम एडजस्ट कर लो प्लीज !!

बेटे – बहू की ऐसी बातें सुनकर कांतिलाल जी का फिर एक बार दिल चकनाचूर हो गया और वे सोचने लगे हमारी मातृभाषा हिंदी बोलने से ना जाने कैसे मेरे बेटे और बहू का स्टैंडर्ड डाउन हो जाता होगा जबकि हिंदी भाषा पर तो हम भारतीयों को गर्व महसूस होना चाहिए !!

आज सुबह से ही बारिश बहुत बरस रही थी और कांतिलाल जी को मालती जी की बहुत याद आ रही थी और वे अतीत के गलियारे खो गए !!

यह लीजिए गरमा गर्म पकोड़े !!

अरे भाग्यवान !! मैं तो मजाक कर रहा था , तुमने पकोड़े बना भी दिए !!

क्या मैं नहीं जानती आपको बारिश में पकोड़े खाना बहुत पसंद हैं !!

कांतिलाल जी बोले वाह !! क्या स्वादिष्ट पकोड़े बनाए हैं मालती तुमने , जी चाहता हैं तुम्हारे हाथों को चूम लूं !!

मालती जी बोली क्या आप भी ना !! शर्माता और मुस्कुराता हुआ मालती जी का चेहरा कांतिलाल जी के मानस पटल पर प्रतिबिंबित हो ही रहा था कि रोहन की आवाज से ना चाहते हुए भी कांतिलाल जी को मालती जी की यादों से वापस आना पड़ा !!

रोहन बोला पापा मैं यहां कोने में रद्दी और घर का कुछ कबाड़ हैं वह रख देता हुं , जब ज्यादा कबाड़ जमा हो जाएगा तब कबाड़ वाले को बुलाकर दे दुंगा !!

कांतिलाल जी कुछ बोले नहीं और मन ही मन सोचने लगे मैं भी तो तुम्हारे लिए कबाड़ ही हुं बेटा इसलिए तो तुमने मुझे इस कमरे में ठहराया हैं !!

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कांतिलाल जी अपने मन में उठते दर्द को दबाते हुए बोले रोहन तुम्हें याद हैं तुम्हारी मां कितने स्वादिष्ट पकोड़े बनाया करती थी , आज भी उन पकोड़ो का स्वाद मैं महसूस कर सकता हुं !!

रोहन बोला पापा मैं जानता हुं आपको पकोड़े बहुत पसंद हैं और मैं रेखा से कहकर पकोड़े बनवा देता मगर रेखा भी बेचारी थक जाती हैं इसलिए उससे नहीं कहता !!

कांतिलाल जी बोले अरे नहीं बेटा इसकी कोई जरूरत नहीं , और उन्हें अभी थोड़े दिन पहले की बात याद आ गई , उन्होने बहू रेखा से पीने के लिए दुध मांगा था तब रेखा मुंह – नाक सिकोड़ते हुए बोली पापा जी यहां रहना हैं तो यह काली चाय ही मिलेगी , मैं आपसे पहले भी कह चुकी हुं यहां दूध सिर्फ बच्चे पीते हैं , उसके बाद कांतिलाल जी ने कभी रेखा से कुछ कहने की हिम्मत नहीं की !!

घड़ी में देखा तो उनका सब्जी लाने का समय हो गया था !!

बाहर आए तो देखा रेखा ने टेबल पर थैला और दो सौ रूपए रख दिए थे , वे थैला लेकर सब्जी लाने चले गए !!

सब्जी लेकर आए तो बहुत थक गए थे , दरवाजे पर डोर बेल बजाने के लिए हाथ उठाया ही था कि रेखा की आवाज कान में गूंजी रोहन तुमने कहा था थोड़े दिन एडजस्ट कर लो मगर बस अब बहुत हो गया , तुम्हारे भैया से कहो आकर तुम्हारे पापा को उनके वहां ले जाए , प्रापर्टी का हिस्सा तो वैसे भी दोनों भाईयों को बराबर मिलेगा तो हम अकेले तुम्हारे पापा को क्यूं रखे ?? अभी की अभी फोन करो तुम्हारे भाई को …

रोहन बोला हां बाबा करता हुं इतना क्यूं गुस्सा होती हो ?? तुम्हारे चेहरे पर गुस्सा बिल्कुल सूट नहीं करता …..

रेखा बोली रोहन तुम पहले फोन करो वर्ना मेरा गुस्सा ओर बढ़ जाएगा !!

रोहन फोन करके अभय से बोला हां भैया पापा का क्या करना हैं ?? जब से पापा यहां आए हैं आपने तो एक फोन भी नहीं किया , पापा को वापस ले जाने का विचार नहीं है क्या आपका ??

हम भी यहां कितने दिन रखे उनको …..

वहां से अभय ने भी कांतिलाल जी को वापस अपने पास लाने से मना कर दिया इसलिए रोहन बोला भैया फिर एक काम करता हूं पापा को वृद्धाश्रम रख आता हूं !!

वहां से अभय ने भी मंजूरी दे दी थी …..

कांतिलाल जी को तो जैसे अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था , उनके हाथ से सब्जी का थैला छूट कर नीचे गिर गया

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और वे दो पल वही बैठ गए , कांतिलाल जी मन ही मन अपनी स्वर्गीय पत्नी मालती जी से बोले अच्छा हुआ मालती तुम मुझसे पहले ऊपर चली गई , वरना आज जो मेरे साथ होने जा रहा है यही सब शायद तुम्हारे साथ हो रहा होता , मैं तो अपमान के घूंट पीकर जैसे तैसे जी रहा हूं मगर बस अब और नहीं , मैं इस घर का कोई कबाड़ नहीं कि जब चाहा तुमने इस्तेमाल किया और फिर उठा कर फेंक दिया !!

दो पल सोचने के बाद एक दृढ़ निश्चय के साथ कांतिलाल जी उठे और उन्होंने घर के अंदर प्रवेश किया !!

रेखा चिल्ला कर बोली पापा जी कितना समय लगा दिया आपने सब्जी लाने में ?? इतने समय में तो मेरा पूरा खाना बन जाता हैं !!

रोहन बोला पापा मैंने बड़े भैया को फोन किया था ताकि आपको यहां से ले जा सके आखिर आप भी कब तक कबाड़ वाले कमरे में रहेंगे मगर बड़े भैया ने भी साफ मना कर दिया है इसलिए हमने यह फैसला किया है कि आपको वृद्धाश्रम रख देते हैं वहां आप अपने जैसे लोगों के साथ आराम से रह पाएंगे आप अपना सामान पैक कर लीजिए , हम अभी ही चले जाते हैं !!

कांतिलाल जी भी शायद यही सुनने का इंतजार कर रहे थे वे बोले सामान तो पैक होगा मगर मेरा नहीं तुम लोगो का !!

रेखा फिर से एक बार चिल्ला कर बोली क्या कहना चाहते हैं पापा जी आप ??

कांतिलाल जी आत्मविश्वास के साथ बोले तुम दोनों बड़ी जल्दी भूल गए यह घर मैंने खरीदा था , इस घर पर तुमसे ज्यादा मेरा अधिकार है इसीलिए मैं कहीं नहीं जाऊंगा तुम दोनों यह घर छोड़कर जाओगे !!

रोहन भी झुंझलाकर बोला पापा यह कैसी बातें कर रहे हैं आप ?? क्या आप इतने बड़े घर में अकेले रहेंगे ??

कांतिलाल जी बोले नहीं बेटा मैं इस घर में नहीं रहूंगा , मैं यह घर बेचकर वापस गांव चला जाऊंगा और गांव के उसी घर में जहां मेरी पत्नी मालती की यादें हैं वहीं मेरा जीवन यापन करूंगा और हां मैं इतना निर्दयी नहीं हूं कि तुम्हें अभी की अभी इस घर से जाने कहूं , जब तक तुम लोगों को कोई नया घर नहीं मिल जाता तब तक तुम लोग इस कबाड़ खाने में रह सकते हो !!

दोनों पति-पत्नी एक दूसरे का मुंह ताकते रह गए और कांतिलाल जी अपना सामान लेकर उसी सामने वाले कमरे में आ गए जहां रहने के सपने उन्होंने मालती जी के संग संजोए थे !!

बहुत महीनों बाद आज मखमली गद्दों पर सो कर कांतिलाल जी को बहुत सुकून की नींद आई थी !!

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एक रात में ही बेटा – बहू कबाड़ वाले कमरे में रहकर घबरा गए और और अगले दिन कांतिलाल जी से माफी मांगने पहुंच गए मगर कांतिलाल जी ने माफ करना तो दूर उनके चेहरे की तरफ देखना भी जरूरी नहीं समझा !!

दोस्तों ना जाने आज की युवा पीढ़ी को क्या होता जा रहा है ?? खुद तो उन्हें सारी आधुनिक और आलीशान व्यवस्था चाहिए होती है मगर अपने माता पिता को वह उस टूटे-फूटे फर्नीचर के समान समझते हैं जिसे जब चाहा इस्तेमाल किया और इस्तेमाल होने के बाद उन्हें फेंक दिया जबकि माता-पिता की इबादत करना ईश्वर की इबादत करने जैसा होता है इसीलिए मेरा आप सब से अनुरोध है की हो सके तो खुद कष्ट सहन कर लेना मगर उन्हें कष्ट मत देना जिन्होंने तुम्हें बड़ा करने में अपना सब कुछ कुर्बान कर दिया हो !!

आपको यह कहानी कैसी लगी कृपया अपनी प्रतिक्रिया जरूर दीजिएगा तथा मेरी अन्य रचनाओं को पढ़ने के लिए मुझे फॉलो अवश्य करिएगा !!

आपकी सखी

स्वाती जैंन

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