तुलसी – मंजू तिवारी : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : गर्मियों की छुट्टी में जब मैं अपने घर गई यानी अपने पापा के पास,,, पापा ने घर के वातावरण को बहुत ही सुंदर बना रखा है भिन्न-भिन्न प्रकार के पौधों का सुंदर सा बगीचा जिसकी देखभाल रोज पाप करते हैं। उस बगीचे में बहुत सारे तुलसी के पौधे यानी तुलसी का पूरा उपवन ही लगा हुआ है।

मैंने अपनी मम्मी से कहा मम्मी मेरे घर की तुलसी बैकुंठ चली गई है। मम्मी ने कहा पापा से  तुलसी एक छोटे से गमले में लगवा लेना जब तुम जाओ तब उसे लिए जाना,,, पापा ने उसी दिन तुलसी मैया को एक छोटे से गमले में लगा दिया उसके साथ कई और पौधे भी मेरे लिए तैयार कर दिए

जब मैं घर आई तो मेरे पापा ने  तुलसी के पौधे के साथ-साथ और भी पौधे मुझे दे दिए,,, 

बड़ी खुश थी कि उन पौधों में मेरे घर के आंगन की मिट्टी भी थी और उसमें संजीव पौधा भी लगा हुआ था

जैसे बेटियों को पिता के आंगन से बहुत प्यार होता है। मुझे भी अपने पापा के आंगन से बहुत प्रेम है। उसमें पूरे मेरे  25 साल बीते है। पापा ने इस तुलसी के पौधे की तरह ही मेरी देखभाल की थी और मुझे बड़ा किया था,,,, हमें हमेशा  हमारे पापा का धन ही कहा जाता था जब हम दोनों बहने साथ-साथ चलते  तो हमारा परिचय तिवारी जी का धन कह कर दिया जाता था तो मैं बड़ी खुश हो जाती थी,,,, लोग हमारा परिचय बिल्कुल सही देते थे हम दोनों बहने पापा का धन ही तो थे जैसे सभी अपने धन की देखभाल करते हैं ठीक उसी तरह से पापा ने हम दोनों बहनों की देखभाल की और सुरक्षा दी। ठीक तुलसी के पौधे की तरह हम दोनों की देखभाल और अपने आंगन में पूजित किया और हम बड़े हो गए,,, समय के साथ बेटी रूपी पापा की दोनों तुलसियां अपने-अपने घर को विदा हो गई

 जैसे पापा ने 16 साल पहले इसी तुलसी के पौधे की तरह मुझे गाड़ी में बिठाकर एक नए घर के लिए विदा किया था वह बड़ा ही करुणामय दृश्य था जिसे सिर्फ मैं और मेरे पापा ही समझ सकते हैं।

पापा  का विदा करते हुए आशा के साथ निवेदन था कि मैं जिस परिवार को अपना तुलसी रूपी पौधा सौंप रहा हूं वह भी कभी मुरझाने ना देगा,,,, समय के साथ-साथ मैंने अपने नए घर में अपनी जड़े मजबूत बना ली और अपने नय घर में भी पूजित हो गई,,,,

गाड़ी के चलते ही तुलसी का पौधा थोड़ी देर तक तो ठीक लग रहा था लेकिन धीरे-धीरे वह मुरझाने लगा सारी रास्ता वह मुरझाया रहा मैं उसकी और अपनी तुलना कर रही थी इसी तरह मैं भी तो गाड़ी में मुरझाई हुई थी जब मैं अपने नए घर में गई थी मैं अपने नए घर और वहां की वातावरण नए माहौल के डर से सहमी हुई थी जैसे ही मैं अपने ससुराल पहुंची तो वहां पिता की तरह प्यार दुलार  देने वाले मेरे दूसरे पिता थे यानी ससुर जी उनका मुझे भरपूर वात्सल्य मिला तथा सारे रिश्तों की कमी पूरे करने वाला जीवन साथी मिला,,,,

 जो मात्र मेरी आवाज के उतार-चढ़ाव से मेरे मन को पढ़ लेता है।,,,,,, जैसे माता-पिता बच्चों की बिना कहे सारे दुख को जान जाते हैं।,,,,, सबके सामने खुले शब्दों में मेरी तारीफ करते हैं।,,,,, मेरे मान सम्मान तथा  स्वाभिमान का हमेशा ध्यान रखते हैं।,,,, जिस प्रकार पिता के घर में एक बेटी निश्चित होती है ठीक उसी प्रकार से मैं अपने  घर में निश्चिंत हूं।,,,, पिता की भांति मेरी सारी इच्छाएं मेरे पति पूरी करते हैं। और मुझे आगे बढ़ाने की प्रेरणा देते हैं।,,,,,  मुझे देखकर लोग कहने लगते हैं कौन से गंगा यमुना जौ बोए  थे जो इतना अच्छा पति मिला,,,,,, मुझे हंसी आ जाती है और मुंह में हंसते हुए जवाब देती हूं हां मैंने जौ बोए  थे गंगा जी बीच धार में   हर की पौड़ी पर,,,,,, जो मेरी अम्मा ने बोने के लिए कहा था,,, गंगा मां की कृपा से मेरी किस्मत में इतना अच्छा जीवनसाथी आया जिसकी देखभाल तथा सानिध्य में अपने घर को महक रही हूं। 

खैर अब हम तुलसी के पौधे की बात कर लेते हैं।,,, इसका क्या हुआ,,,

हां तो सारे रास्ते का सफर तुलसी ने मुरझाते हुए पूरा किया,,, मैं घर आ गई गुड़गांव आते ही मैंने पापा के घर से लाए हुए पौधों को जैसे ही बाहर निकाल… पौधे की लगने की गुंजाइश कम लग रही थी ऐसा लग रहा था ,, मैंने जल्दी से  पौधे को मिट्टी सहित निकाला और गमले की दूसरी मिट्टी में लगा दिया आप उस गमले में गुड़गांव और इटावा दोनों की ही मिट्टी थी तुलसी ने रात भर किसी तरह से गुजरी और सुबह ही तुलसी को मैं देखने के लिए उठी तुलसी का पौधा खिला हुआ था 

थोड़े ही दिन बाद मेरे पति के पैर में फ्रैक्चर हो जाने पर पापा जब गुड़गांव देखने के लिए आए,,,, तो उसके दूसरे दिन मैंने उनके दिए हुए पौधों को भी दिखाया पापा उस तुलसी के पौधे को देखकर बड़े खुश हुए पापा गमले के पास बैठे तुलसी के पौधे को देख रहे थे और खुश हो रहे थे उनका दिया हुआ तुलसी का पौधा लग गया,,,

पापा की एक तुलसी गमले में पूजित हो रही है। और पापा के आंगन की दूसरी तुलसी अपने घर परिवार में पूजित हो रही है पहले पापा देखभाल करते थे उनके सुरक्षा घेरे में सुरक्षित थी अब पति के सुरक्षा घेरे में सानिध्य में,,,,,,

मुझे अपनी और अपनी तुलसी के पौधे की कहानी एक जैसी लगती है। मैं उस तुलसी के पौधे पर जल चढ़ाती हूं और उसकी मिट्टी मेरी जन्मभूमि और कर्म भूमि दोनों की है जिसमें वह लगी हुई है और मैं रोज आशीर्वाद मांगती हूं ।  उन तुलसी मैया से मैं अपने आंगन और पापा के आंगन की खुशहाली की प्रार्थना करती हूं।,,,

मेरी किस्मत अच्छी थी कि मैं मुरझाई नहीं मैंने मजबूत जडे पकड़ी और मैं पल्लवित हो गई,,, मुझे किस्मत से अच्छा जीवन साथी प्राप्त हुआ,,,,, मैं मुरझाई नहीं मुझे खुश देखकर मेरे पापा खुश हो जाते हैं क्योंकि उनकी तुलसी रूपी बेटी खुश है।,,,,, 

वहीं दूसरी तुलसी रूपी बेटी की मुरझाने से पापा भी मुरझाए रहते हैं।,,,, क्योंकि तुलसी रूपी बेटी की किस्मत पिता के हाथ में नहीं होती,,,,,, अगर पिता के हाथ में तुलसी रूपी बेटी किस्मत हो तो सारे गम सारे दुख दर्द अपने हिस्से में ले लेते ऐसे होते हैं। पिता,,,,,, काश कोई पिता खुद लिख पाता अपनी बेटी की किस्मत,,,,,, हर बेटी की कहानी बिल्कुल मेरे तुलसी के पौधे की तरह ही होती है। किस्मत से घर परिवार अच्छा मिल जाए तो पल्लवित हो जाती है नहीं तो मर कर खत्म हो जाती है। या सादा मुरझाई रहती है।,,,,

मेरी कहानी कैसी लगी प्रतिक्रिया जरुर दें

प्रतियोगिता हेतु

#किस्मत#

मंजू तिवारी, गुड़गांव

स्वरचित मौलिक सर्वाधिकार सुरक्षित

 

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