तिरस्कार – कल्पना मिश्रा

काफी अंतराल बाद मैं अपने बचपन के दोस्त नीरज के घर आया तो लॉन में ही उसके दादा जी मिल गये। वह बड़े प्रेम से एक घायल चिड़िया के पंखों पर दवा लगा रहे थे। मुझे देखते ही वह खुश हो गए “अरे बेटा.. तुम अचानक कैसे? आओ,आओ! देखो तो कितनी घायल है ये बेचारी! पता है? इसके पीछे कौव्वे पड़े थे। वो तो कहो मैं आ गया नही तो,,,”  वह मुझसे बात कर ही रहे थे कि उनका पालतू कुत्ता रॉडी दुम हिलाता उनके आ गया तो

” दुर्र,हट,, हट कुत्ते” भगाते हुए अचानक उनका चेहरा गुस्से से लाल हो गया। फिर उन्होंने इधर-उधर देखा और अपनी बेंत उठाकर पूरी ताकत से उसे कुत्ते की पीठ पर दे मारा।

तिलमिलाया रॉडी कूं,कूं करते हुए बड़ी तेज़ी से अंदर भाग गया। लेकिन मारने के बाद दादा जी के चेहरे पर एक संतुष्टि सी देखकर मुझे बड़ा अजीब सा लगा,, “ये कैसा दोहरा चरित्र है इनका? एक ओर तो घायल चिड़िया के प्रति इतनी दया है कि उसके मरहम लगा रहे थे! दूसरी ओर घर में पले इस निर्दोष कुत्ते के लिए इतना निर्मम बर्ताव..?”

 

 तभी नीरज के पापा आ गये और मैं सब भूलकर उनसे बात करने में मशगूल हो गया।




थोड़ी ही देर में अंदर से नाश्ता आया तो शिष्टाचारवश मैंने दादा जी से भी कुछ लेने का आग्रह करते हुए प्लेट आगे बढ़ाई। अभी उन्होंने बिस्किट उठाया ही था कि अंकल ने बिस्किट छीनकर वापस रख दिया और गुस्से से बोले  “ये क्या बाबूजी.? आपको हर चीज़ खाना है? पता है ना कि कितना फैट होता है इसमें? अरे अब तो अपनी ज़ुबान को काबू करना सीखिये”  फिर मेरी ओर मुख़ातिब होकर हंस पड़े “बुढ़ापा आ गया लेकिन इनकी आदतें नही सुधरीं”

दादा जी का खिसियाया चेहरा देखकर मैं उठने की सोच ही रहा था कि अंकल बोले “अरे अभी कहां चले? मेरे रॉडी से तो मिलो?”

 “मिला हूं अंकल” मैंने कहना चाहा,, तब तक उन्होंने ज़ोर से आवाज़ लगाई “रॉडीईई,,,कम हियर” सुनते ही वह दौड़ता हुआ आया और उनकी गोद में चढ़ गया और कभी उनका मुँह चाटता, तो कभी हाथ और फिर बिस्किट वाली प्लेट पर लपकने लगा।

“रॉडी,, मेरे बच्चे,क्या खायेगा? बिस्किट खायेगा? वेट ,वेट” दुलारते हुए अंकल ने प्लेट से दो तीन बिस्किट उठाकर उसे खिला दिया।

 ये देखकर मेरा मन क्रोध से भर गया “अपने बुज़ुर्ग पिता का ऐसा तिरस्कार, वो भी किसी ग़ैर के सामने?,,,क्या एक  जानवर की हैसियत अपने पिता से ज़्यादा है?”  

अनायास ही मेरी नज़र दादाजी की ओर चली गई । आग्नेय दृष्टि से वह रॉडी को घूरे जा रहे थे। अब मुझे दादाजी का अकेले में उसे बेंत से मारने का मतलब समझ में आ गया था।

 

कल्पना मिश्रा

कानपुर

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