अजी सुनती हो कहां हो..? पति राकेश की चिलचिलाती आवाज सुनकर रीता जी झल्लाकर बोली
कहां सुनती हूँ.. मैं तो बहरी हूँ वो भी जन्म से…थोड़ा झल्लाकर
हाँ बोलिए क्या बात है..?
अरे तुम तो नाराज ही हो जाती हो मैंने ऐसा कब कहा..?
जरा एक कप चाय मिलेगी पति राकेश की आवाज में बेहद नम्रता थी ।
अजी एक कप क्यों पूरा जग भरकर ले आती हूँ ।
तुम भी न कभी सीधे मुँह बात नहीं करती हो पति राकेश थोड़ा गुस्साये से बोले । अच्छा यह बताओ क्या तुम बच्चों को स्कूल छोड़ने जा रही हो ?
क्यूं ऽऽ मैं ही क्यों जाउंगी तुम क्यों नहीं जा सकते, मेरे ही बच्चे हैं ये क्या…? दहेज में लेकर तो आई नहीं मैं इनको, दोनों की ही बराबर जिम्मेदारी बनती है।
अच्छा, अच्छा.. ठीक है, मैं ही चला जाता हूँ छोड़ने…इन औरतों की माया ये ही जानें राकेश बुदबुदाया।
अच्छा जा ही रहे हो तो फिर चाय पीकर जाना ठहरों जरा…अभी दो मिनट में लाती हूँ बनाकर
पति राकेश पत्नी की तरफ आश्चर्यचकित हो देखकर बोले- “तुम भी कमाल करती हो.. जहां से बात शुरू हुई वही खत्म हो गई अरे भई मैं तो पहले से यही कह रहा था “ ।
इस परिवार मे ऐसी नोंक-झोंक की आवाज अक्सर सुनाई पड़ती आमने सामने के फ्लेट में रह रहे अधिकांश दम्पति तो उनके इस व्यवहार से परीचित ही थे। क्योंकि सभी काफी पुराने थे काफी समय से साथ रह रहे थे। सभी उनको जानते थे…उनकी नोंक-झोंक अपितु लड़ाई झग़डा नहीं,एक दूसरे का तिरस्कार नहीं, हमारी ऐसी नोंक-झोंक जो रिश्तों में ज्वलंत व जीवंतता बनाये रखती है….
दोनो पति-पत्नी बात को तूल देकर लम्बा नहीं खींचते उनमें थोड़ा सा छिछोरापन थोड़ा सा अल्हड़पन थोड़ी सी अनबन जीवन में बहुत से मनोवैज्ञानिक रहस्य खोलती चलती है। इसमें उनके विश्वास की परीक्षा भी हो जाती है। दोनो ही ध्यान रखते बस प्रेम की मात्रा में न्यूनता ना
आने पाये ।
मगर एकदम साथ के फ्लैट में हाल ही में आये नये युवा दम्पति उनका ऐसा व्यवहार समझ ही नहीं पाते पति श्याम अपनी पत्नी सुमन से कहते हैं, बड़े अजीब पडौसी है यार ये तो इनकी तो सुबह ही किचकिच से शुरू होती है आज उनके घर जाने की सोचने लगते हैं। चलो शाम में उनसे मिलने चलते हैं…. काफी बार कह भी चुके हैं कभी आइये हमारे यहां, कभी आइये हमारे यहां…..
शाम को जब राकेश,रीता के घर पहुँचते है दोनों के कहकहों की आवाज बाहर तक गूंज रही होती है। और बीच बीच में राकेश जी के गाने की आवाज “चाँद सी महबूबा हो मेरी कब ऐसा मैंने सोचा था”… कौन कहेगा सुबह इतनी खिचखिच हो रही….?जैसे ही श्याम और सुमन डोरबेल बजाते हैं…राकेश मस्ती में गाने की पंक्तियाँ गुनगुनाते हुए दरवाजा खोलते है ।
अरे श्याम भाई आइये, आइये कितनी बार कहा आइये समय निकालिए हमारे गरीब खाने को सम्मानित कीजिए…चलो आज मिल ही गई फुर्सत आपको नमस्ते, नमस्ते।
आइये भाभी जी बैठिए तब तक रीता भी आ गई बताये क्या लेंगे चाय काफी या…?
अरे नहीं, नहीं, कुछ नहीं तकल्लुफ मत कीजिए हम तो ऐसे ही मिलने चले आये।
फिर वो दोनों पति-पत्नी बड़े जोश गहमा-गहमी से उनका अभिनंदन करते हैं। श्याम कहते हैं अजीब हो भाई साहब आप लोग भी सुबह सुबह किचकिच शाम में मस्त माहौल क्या है ये…?
अच्छा तो ये बात है हमारे सफल दाम्पत्य का रहस्य जानने आये है …राकेश जी का यह कहना सभी खिलखिला कर हँसने लगे ।
रीता कहती हैं देखों सुमन तुम्हारी नई नई शादी हुई है तुमको हमारी नोक झोक समझ नहीं आने वाली लेकिन हाँ सीख लो तुम भी बाद में बहुत काम आयेगा। रिश्ते को सदा युवा व जीविंत बनाए रखना है तो यह शरारत भरी नोंक-झोंक रिश्ते को निखारती है…. इससे पार्टनर में प्यार बढ़ता है। विश्वास बढ़ता है। ‘रिलेशन स्ट्रांग’ स्वस्थ मजबूत होता है।
सुमन पति श्याम की तरफ देखकर बोलती है लेकिन भाभी जी ये तो मुझे बोलने का मौका ही नहीं देते । कुछ भी बात हो दिल में रख लेते हैं,चाहे इनको कोई बात मन ही मन परेशान ही क्यों न कर रही हो…? अब ये मौका दे़ तभी तो मैं झगड़ा करू…मैं तो सोचती रह जाती हूँ । अब पड़ोस में जाकर तो झगड़ नहीं सकती ना
सुमन ने बात इतने भोलेपन से कही रीता और राकेश मुस्कुराये बिना न रह सके ।
श्याम आप ऐसा कभी मत करना रमेश बोले अगर कोई बात आपको परेशान करे..जो आगे जाकर झगड़े में ना बदल जाए, ये ध्यान रखना खास जरूरी है। इससे तो अच्छा है कि छोटी मोटी नोंक-झोंक से समाधान निकाल लिया जाये ताकि बाद में बात रिश्ते टूटने तक न जाए एक सुखी रिलेशनशिप के लिए झगड़े को इग्नोर कर देना ही सही रहता है।
रीता बोली नया पन बनाये रखने के लिए एक छोटी मुठभेड़ तो होनी ही चाहिए। इससे रिश्तों में ताजगी बनी रहती है। नयापन रहता है। इन छोटी छोटी लड़ाइयों की वजह से ही हमें एहसास होता है कि सामने वाला पार्टनर हमारे लिए कितना महत्वपूर्ण है। उसके बिना रहना मुश्किल सा लगने लगता है।
“ प्रेम सम्बन्ध में छोटी मोटी बहस स्वाभाविक ही है जो आपसी सम्मान बातचीत मजबूत करने का तरीका भी हो सकता है।बस इसे स्वस्थ तरीके से व्यक्त किया जाए उसमें तिरस्कार भावना न हो “!!
हम इन नोंक-झोंक के दौरान एक दूसरे को बहुत समय देते हैं। तभी जिससे रिश्ते को मजबूती मिलती है।
देखों जी हम तो ऐसे ही नोंक-झोंक में आनन्द खोजते हैं। राकेश बोले..
“ज्यादा, मीठा ही मीठा हो मसाला बिल्कुल न हो तो ऊब सी नहीं होने लगेगी ज़िन्दगी में “ !!
सुमन राकेश और रीता की बातें ध्यान से सुन रही होती हैं…कहती हैं आप सही कह रहो हो भाभी जी, हम भी आज से कोशिश करेंगे एक दूसरे की बात सिर्फ सुनना ही नहीं अच्छे से समझेंगे भी, एक दूसरे की भावनाओं की कद्र करेंगे। तभी एक दूसरे के प्रति विश्वास को बढ़ावा मिलेगा। ‘इमोशनल बाँन्डिग’ मजबूत होगी…अब हम अच्छी तरह से समझ गये आपकी नोंक-झोंक का असली रहस्य…. सुमन की बात सुनकर चारों खिलखिला कर हँसने लगे,रीता जी किचन में कुछ लाने जैसे ही दौड़ी… राकेश जी की चिलचिलाती आवाज सुनकर पैर वही ठिनक कर रह गये ।
अजी सुनती हो चाय वाय नहीं मिलेगी क्या …?
सुन लिया वहीं बनाने जा रही थी .. रीता जी ने मुड़कर जवाब दिया।
राकेश और रीता जी की आपसी वार्ता पर श्याम और सुमन मुस्कुराये बिना न रह सके।
दोस्तों यह जिंदगी जग का मैदान नहीं है…इसमें हार जीत से ज्यादा रिश्तों को जीतना ज्यादा जरूरी हो जाता है। चाय में चीनी की बराबर मात्रा, समान ही जिन्दगी में तिरस्कार नहीं धैर्य, प्रेम, सामंजस्य हो तो नोंक-झोंक होते हुए रिश्ते में मधुरता बनी रहती है। कभी भी ईंट का जवाब पत्थर से देकर अपने को जीता हुआ न समझे कभी ये ही मामूली तकरार में बदलकर दाम्पत्य जीवन में कटुता घोल सकती है।
जहां प्यार वहीं तकरार…इस जिंदगी में थोड़ी सी नोंक-झोंक, थोड़ा सा छिछोरापन, थोड़ा सा अल्हड़पन, थोड़ी सी अनबन रिश्ते में अनेक मनोवैज्ञानिक रहस्य खोल सकती है । फिर आपका दिल भी कह उठेगा …अजी हम तिरस्कार नहीं करते हमतो नोंकझोंक में भी आनन्द खोजते हैं।
लेखिका डॉ बीना कुण्डलिया
#तिरस्कार कब तक