तिरस्कार कब तक – वीणा सिंह : Moral Stories in Hindi

मैं मधु छोटे से मध्यम वर्गीय परिवार की बहु पत्नी और मां हूं… वर्तमान में यही मेरी पहचान है… कभी साल दो साल पर दो दिन के लिए मायके जाती हूं तो लगता है मैं भी किसी की बेटी हूं बहन हूं… ब्याह कर ससुराल की दहलीज पार की उसी पल से मान स्वाभिमान इच्छा उसी दहलीज के बाहर दफन कर दिया… पति जिसे जीवन साथी गृहस्थी के गाड़ी का एक पहिया की उपमा अक्सर सुना करती थी पर हकीकत में पति को देखा तो ठगी सी रह गई…

टांग खींचने का एक भी मौका नहीं छोड़ते चंदन मेरे पति.. अम्मा के साथ बैठकर मेरे हर काम में खाने में शक्ल सूरत से लेकर मेरे मायके तक का मजाक बनाते कमियां निकालते… कभी कोई हिम्मत कर के विरोध कर देता बहु बहुत सहनशील समझदार और संस्कारी है उसका घर आना जाना मां बेटा बंद कर देते… मैं शांत और थोड़ी डरपोक स्वभाव की थी इसका पूरा फायदा पति ने उठाया.. धीरे धीरे मै दब्बू बनती गई… उनका गलत सही सब बर्दाश्त करती रही.. तिरस्कृत होने के लिए शायद भगवान ने मुझे इस घर में भेजा था…

शादी के दो साल बाद धानी का जनम हुआ…. बेटी पैदा की पहले पहले..करमजली औरत अम्मा ने पहला वाक्य यही बोला धानी को देखते हीं मुंह बिचका के… चंदन ने बेटी की तरफ देखा भी नहीं… धीरे धीरे धानी बड़ी होने लगी… बड़ी ननद के बेटे ने प्रेम विवाह किया जिसमें हम सभी सम्मिलित होने गए… ननद बेटा से नाराज थी पर कमाऊ बेटे को नाराज भी नहीं करना चाहती थी… अपने भाई और मां के सामने ननद अपने मन की भड़ास निकाली… कितना अरमान था बेटे ने पानी फेर दिया…

कुछ नहीं मिला… इतने बड़े फॉर्म में सीए है… और भी बहुत सारी शिकायतें.. रिसेप्शन के दिन चंदन ने मुझे ननद की नई बहु और बेटा से बात करते देख बेवजह सारे लोगों के बीच डांटना शुरू कर दिया… फालतू ही ही क्यों कर रही हो… कमरे में ले जाकर बोले मेरी बहन दुःखी है और तुम नई बहु से इतना हंस हंस के बात कर रही हो… बेशर्म औरत….. कमरे में हीं रहो… बाहर आने की जरूरत नहीं है…

वक्त से समझौता – पूजा मनोज अग्रवाल

           वक्त गुजरता रहा.. धानी को मैने पढ़ाने में अपनी जी जान लगा दी…पैसा के लिए कई बार मुझे बड़े भइया के सामने मुंह खोलना पड़ा…भाभी के ताने एक बेटी को भी नहीं पढ़ा सकते हैं नंदोई जी सुनना पड़ा..

पर मैने हार नहीं मानी..धानी आज बहुत बड़े फॉर्म में लीगल एडवाइजर है… एक लड़के राघव से प्रेम करती है और उसी से शादी करना चाहती है.. मैं मिल चुकी हूं उस लड़के से…. बहुत सुलझा हुआ समझदार और गंभीर बच्चा है राघव… मुझे बहुत पसंद है..मैं उसके साथ हूं… पर चंदन बिल्कुल खिलाफ हैं…

             धानी एक महीने की छुट्टी लेकर आ गई है… इसी महीने के अंत में शादी की तारीख है… खरीदारी हल्दी मेहंदी संगीत इतना सब कैसे मैनेज होगा.. मेरे हाथ पैर कांप रहे हैं.. मैने धानी को कितना समझाया बेटा कोर्ट मैरेज कर लो.. तुम्हारे पापा बहुत तमाशा करेंगे और मेरे जीना हराम कर देंगे… मां तुम परेशान मत हो… अब तक तुम्हारा बहुत तिरस्कार कर चुके अब नहीं होगा… मैने होटल के अलावा सब ऑनलाइन बुक कर दिया है…

घर में विधिवत शादी करने का मेरा मकसद तुम्हारे तिरस्कार का अंत करना है… मेरे दोस्त एक सप्ताह पहले आ जाएंगे….. मेरा कलेजा धक धक कर रहा है… चंदन एकांत में जब मिल रहे हैं विष में डूबे व्यंग बान मुझपर चलाने से बाज नहीं आ रहे हैं… मैं उनसे कट रही हूं…. ज्यादातर धानी के आस पास हीं रह रही हूं… क्योंकि धानी अपने पापा को अच्छे से समझा दिया है मम्मी को परेशान करना बहुत भारी पड़ेगा..

शादी में किसी तरह का नौटंकी मत कीजियेगा..

यहां के एसपी  मेरी दोस्त नेहा के पापा हैं… वो भी शादी में आ रही है… और कानून की पढ़ाई की हूं… इसलिए प्रयास कीजियेगा ऐसी नौबत नहीं आए… धानी के दोस्त आ गए हैं… शाम को डांस गाना खूब मस्ती चल रही है…. घर सजना शुरू हो गया है..

” मुश्किल वक्त में मिला अपनों का साथ ” – अमिता कुचया

बिजली की लड़ियां लटकाई जा रही है…. कल हल्दी कुटाई है… अचानक रसोई में चंदन मुझे घेर लेते हैं बेशर्म औरत घर में बेशर्मी का नंगा नाच हो रहा है और तुम उसमें तालियां बजा रही हो.. कलाई छोड़िए प्लीज बहुत दर्द हो रहा है…. मैं कलाई छुड़ाने की कोशिश कर रही 4हूं तभी अचानक धानी आ जाती है…. चंदन की पकड़ ढीली हो गई है…. क्या हुआ मम्मी.. कुछ नहीं बेटा… मैं अपना दर्द छुपा उसको खींच कर ले जाती हूं… बेकार का तमाशा क्या करना…

             आज मेहंदी संगीत है…. धानी मेरे लिए सुंदर सा ड्रेस लाई है…. डांस गाने चल रहे हैं… मेरी बिटिया कितनी खुश है… उसके हाथों में मेहंदी लग रही है.. अचानक धानी के सारे दोस्त मुझे स्टेज पर खींच के ले जाते हैं डांस करने के लिए….. हंसी खुशी और मस्ती के माहौल में अचानक मेरी बड़ी ननद और चंदन स्टेज पर आ कर मुझे भला बुरा कहने लगे…. एक तो बेटी नाक कटा दी और रही सही कसर मां पूरी कर रही है…. भाई अपना खून मत जलाओ जैसी मां वैसी बेटी..

अचानक धानी स्टेज पर पहुंची चंदन और बड़ी ननद को मुझसे माफी मांगने के लिए विवश कर दिया… अभी पुलिस को बुलाती हूं आप दोनों को सही जगह ले जाएगी तब अकल ठिकाने आएगी… आज और इस पल के बाद मेरी मां का तिरस्कार करने की जुर्रत मत कीजियेगा.…अब और नहीं बर्दाश्त करूंगी… मैं इस काबिल हो गई हूं कि अपनी मां के मुजरिम को उसकी जगह पहुंचा सकूं….

       पूरी शादी शांति और हँसी खुशी से संपन्न हो गई… मुझे पता नहीं था विदाई के बाद धानी मेरा टिकट भी एक महीने के लिए चार धाम की यात्रा के लिए बुक करवा दिया था..

और वापसी का टिकट लखनऊ का था… यानी अब मुझे धानी के साथ रहना है… थोड़े पुराने खयालात बेटी के घर… धानी से दबे ज़ुबान से ये बात कही तो बोली मम्मी एक एनजीओ में तुम्हारे लिए मैने बात की है.…तुम वहीं जॉब करोगी… मेरे साथ अच्छा नहीं लगेगा तो अलग घर ले लेंगे तुम्हारे लिए…. यहां तुम जब भी आओगी मेरे साथ… जाओगी भी मेरे साथ… बचपन से तुम्हारा तिरस्कार होते देख बड़ी हुई हूं.. पर अब नहीं ..

 

लेखिका : वीणा सिंह

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