वक्त से समझौता – पूजा मनोज अग्रवाल

अरु,,, अरु ,,,  ” क्या बात है भई ,,,अब तक सो रही हो,,,? चलो जल्दी उठो ,,,,देखो मैं तुम्हारी पसंदीदा कड़क चाय बना कर लाया हूं ,,,,। ” अमित चाय की ट्रे लेकर बेड रूम में आया ।  

अरु ने अंगड़ाई लेते हुए ,,,” अरे अमित तुम भी ना ,,, मुझे क्यों नहीं कहा , मैं बना देती तुम्हारे लिए चाय ,,,। कप हाथ में पकड़ते हुए अरु ने अमित को प्यार से थैंक्स कहा । 

” मुझे तो बहुत देर से चाय पीने की इच्छा हो रही थी,,,पर तुम जानती हो ना ,,,तुम्हारे साथ के बिना चाय का स्वाद भी मुझे अच्छा नही लगता । ” अमित ने अपनी पत्नी अरुणिमा का माथा चूमते हुए कहा ।

ओह,,,तो यह बात है ,,, कहते हुए अरु मुस्काने लगी । 

अरु और अमित दोनो चाय का आनंद ले ही रहे थे कि अमित के पास उसके दोस्त महेश का फोन आया ,,,,। 

हेलो ,,अमित ! यार कहां है तू,,,? 

महेश की आवाज से वह बहुत घबराया हुआ लग रहा था ।

अरे महेश ! क्या बात है,,, ? आज इतनी सुबह फोन ,, सब ठीक तो है न ,,,! अमित ने पूछा ,,।

अमित तू जल्दी से मैक्स अस्पताल पहुंच मां को दिल का दौरा पड़ा है,,,, मैं उन्हें लेकर घर से निकल चुका हूं,,, मैं तुम्हारा वहीं इंतजार करूंगा प्लीज जल्दी पहुंच जाना ,,,यह कहकर महेश ने फोन काट दिया । 

चाय की प्याली अधूरी ही छोड़कर अमित जल्दी से गाड़ी की चाबी ले कर घर से निकल गया । अरु का दिल बैठा जा रहा था ,जाने क्यों आज उसके मन में कुछ घबराहट सी हो रही थी । अमित के जाने के बाद अरु बुझे मन से रसोई में रोजमर्रा के कामों में लग गई । 



अरुणिमा और अमित की शादी को तेईस वर्ष हो चुके थे,, दोनों के एक बेटा और एक बेटी था ,,, बेटी छवि पढ़ाई के सिलसिले में बेंगलुरु और बेटा ऋषभ अपने मां पापा के पास दिल्ली में ही रह रहा था । 

अरु और अमित की जोड़ी एक परफेक्ट जोड़ी थी । उनसे दोनो से जो भी मिलता उन दोनो के स्वभाव का कायल हो जाता । उनकी जिंदगी में धन – दौलत , प्रेम – प्यार किसी चीज की कोई कमी नहीं थी । जिंदगी हंसते खिलखिलाते व्यतीत हो रही थी ।

घंटा भर भी ना बीता होगा कि अमित के फोन नंबर से अरु के पास एक कॉल आई ,,,और उस एक कॉल से उसकी बसी बसाई दुनिया उजड़ गई ,,,,। 

एक बेकाबू ट्रक से अमित की गाड़ी का एक्सीडेंट हो गया था,,, आनन फानन में अरु दौड़ कर अस्पताल पहुंची ,,, पर अमित उसे हमेशा के लिए छोड़ कर जा चुका था । अभी कुछ पल पहले ही  तो दोनो एक दूसरे की बाहों में थे ,,,ऐसा कैसे हो सकता है यह सोच – सोच कर अरुणिमा के प्राण पखेरू उड़ने को तैयार थे । 

जिस इंसान से एक पल भी दूरी अरु को गवारा न थी,,, वह तत्क्षण उससे हमेशा के लिए बिछड़ गया था । अरु की खुशहाल जिंदगी ने एक भयानक यू टर्न ले लिया था  ।

छवि और ऋषभ , पिता को खोने के दर्द के साथ-साथ मां को इस हाल में देखने का दर्द भी झेल रहे थे । 

अमित की तेरहवी तक उसके घर में रिश्तेदारों और  पड़ोसियो का तांता लगा रहा । अरुणिमा खुद को संभालने में नाकामयाब हो रही थी वह दिन भर अमित को याद कर इतना विलाप करती थी कि देखने वालों की छाती फट जाती । 

आज अमित को दुनिया छोड़ कर गए हुए पंद्रह दिन बीत चुके हैं । परंतु अरुणिमा का मन अभी भी इस बात पर विश्वास नहीं कर पा रहा कि अमित उनकी जिंदगी से जा चुका है । उसने हंसना, मुस्कुराना तो छोड़ ही दिया है । नींद की गोलियां उसकी रोज की दिनचर्या में शामिल हो चुकी हैं ।

इधर छवि भी अपने कॉलेज के लिए वापस जा रही है अब घर में अरु और ऋषभ अकेले रह जाएंगे । रह-रह कर अरु को इस बात की चिंता सता रही थी ,,, कि वह अमित के बिना कैसे दोनों बच्चों की परवरिश कर पाएगी  । 

धीरे-धीरे दिन बीतते रहें और इस प्रकार महीने और फिर साल बीतने लगे । अरुणिमा को फ्यूचर डिपोजिट , बैंक बैलेंस और एलआईसी की रकम मिल जाने के चलते जीवन में पैसे की कोई तंगी नही आई । परंतु मानसिक क्षति तो कोई पूरी नहीं कर सकता था । 



अमित को दुनिया छोड़े हुए सात साल बीत चुके हैं ,,। इस बीच अरूणिमा ने अपनी बेटी छवि का विवाह उसके मनपसंद के लड़के से  कर दिया। 

 

इतना समय व्यतीत हो जाने पर अब भी अरुणिमा हर दिन नींद की गोली पर निर्भर थी । उसके एकाकीपन का दर्द ,,,शायद कोई ऐसा व्यक्ति ही समझ सकता है जो कि स्वयं इस अकेलेपन की लड़ाई लड़ रहा हो  । 

अब ऋषभ की भी अच्छी जॉब लग गई थी  अरुणिमा ने उसके लिए भी एक अच्छे घर की लड़की पसंद कर ली  । लेकिन अपनी मां को हर क्षण एकाकीपन से जूझते  देखकर ऋषभ विवाह नहीं करना चाहता था  । उसे ऐसा लग रहा था यदि वह अमृता से विवाह कर लेगा तो उसकी मां से दूरियां बढ़ जाएगी ।

 परंतु अरुणिमा ऋषभ की इस बात से सहमत नहीं थी । उसने ऋषभ को बड़े प्यार मनुहार से मना कर अमृता से उसकी सगाई कर दी  ।

इस बार ऋषभ भी जिद्द पर अड़ गया था  । उसने अपनी मां  के सामने स्पष्ट शब्दों में एक शर्त रख दी  । शर्त के अनुसार अगर अरुणिमा अपने लिए कोई उचित वर ढूंढ कर दूसरा विवाह करेगी  ,,, तभी वह विवाह करेगा अन्यथा वह भी अपनी मां की तरह अकेले ही जीवन व्यतीत करेगा । 

अपने बेटे ऋषभ की बात सुनकर अरुणिमा के कलेजे पर मानों  बिजलियां सी गिरने लगी थीं । जिस एकाकीपन के बोझ से वह तिल- तिल मर रही थी,,, उसका भयानक विष वह अपने बेटे की जिंदगी में नहीं भरना चाहती थी ।

अरुणिमा ने ऋषभ से कहा ,” बेटा ,,,, तुम नहीं जानते हमारा समाज इस बात को मंजूरी नही देगा कि एक विधवा अधेड़ उम्र में अपने दूसरे विवाह के बारे में  सोचे । और फिर मैं भी अपनी जिंदगी वैसे ही काट लूंगी जैसे और विधवा औरतें काटती हैं । “

ऋषभ ने कहा ,” नही मां,,, आपको अपनी जिंदगी स्वयं ही जीनी है,,, आप जिस समाज की बात कर रही हैं वह समाज आपके एकाकीपन के बारे में जानता ही क्या है ,,,,? 

इस समाज ने आपको रातों में अकेले जाग कर रोते हुए नहीं देखा है ,,मुझे लगता है हमारे समाज को अभी बहुत बदलाव की जरूरत है। तो क्यों ना हम अपने घर से शुरुवात करें । 

इससे पहले अरुणिमा कुछ कहती ऋषभ फिर बोल उठा,,,।

बस मां ,,,अब इसके आगे आप कुछ नहीं कहेंगी । मैंने एक मैट्रिमोनियल साइट पर आपकी सारी डिटेल्स फिल कर दी है । जिस दिन आपका जवाब हां में होगा ,,,उस दिन मैं और अमृता अपनी शादी की भी डेट फिक्स कर लेंगे ।



 अरु मन ही मन बेचैन थी ,,, ऋषभ ने यह कैसी शर्त उस पर लाद दी थी ,,,ना तो वह अपने पहले जीवन साथी को भुला पाई थी और ना ही किसी अन्य को वह अपनी जिंदगी में अमित की जगह देना चाहती थी ।

 

अरुणिमा कश्मकश में डूबी थी ,,,। 

विवाहित बेटी छवि का इस बारे में क्या विचार होगा,,, ? समाज ,आस पड़ोस और बाकी रिश्तेदार क्या सोचेंगे ,,, ? 

 इतने में छवि ने अपने पति के साथ कमरे में प्रवेश किया ।  पीछे से दामाद जी  ” कुछ तो लोग कहेंगे,,, लोगों का काम है कहना ” गाना गुनगुना रहे थे  ।

अचानक छवि को अपने निकट पाकर कर अरुणिमा हतप्रभ रह गई । छवि ने अपनी मां को अपने गले से लगा लिया , अरुणिमा  की आंखों से अश्रुओं की अविरल धारा बह रही थी  ,,,।

चलो मां , छोड़ो ये रोना धोना ,,, अब आप अपनी सभी जिम्मेदारियों से मुक्त हो चुकी हो ,,, । आपका जीवन नीरसता से भरा हुआ था उम्र भर ऐसे अकेले रह कर जीवन काटना आसान नहीं है ।  फिर मैं और ऋषभ भी आपकी तरफ से चिंता मुक्त होना चाहते हैं अगर आप अपनी जिंदगी में खुश रहेंगी तो हमारा जीवन भी खुशहाल रहेगा ।

अपने बच्चों की खुशी की खातिर अरूणिमा ने ना चाहते हुए भी मजबूरी वश वक्त से समझौता कर लिया और जीवन की इस नई राह पर चलने के लिए अपनी स्वीकृति दे दी ।

🙏🙏🙏

स्वरचित मौलिक

पूजा मनोज अग्रवाल

दिल्ली

 

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