तिरस्कार कब तक – उमा वर्मा : Moral Stories in Hindi

सुमेधा सुबह सुबह अपने घर पहुंच गयी थी ।रात भर की सफर से थक कर चूर हो गई थी ।घर में कुछ सामान तो पहले से था लेकिन दूध लाना पड़ेगा।चाय पीने की आदत है तो जुगाड़ करने के लिए जुट गयी ।बगल में ही गाय का खटाल था।जाकर दूध लाना है ।दूध लाकर चाय बना लिया ।कप लेकर बरामदे में कुरसी डाल कर बैठी तो थोड़ी राहत मिली ।अपना बरामदा कितना अपनापन देता है ।मन में एक शान्ति मिलती है ।कुछ पिछले और पुरानी बातें याद आ गई है ।

इसी घर में सुमेधा कभी दुलहन बन कर आयी थी ।सास ससुर देवर ननद से भरा पूरा परिवार था लेकिन अब सबकुछ बिखर गया था ।घर की बड़ी बहू थी ।सास का दुलार तो था लेकिन कायदे कानून के साथ ।और साथ ही मायके की अवहेलना भी समय समय पर मिलती रहती ।पति को एक दिन कहना चाहा तो उनहोंने साफ कह दिया  ” जैसा घर के लोग चाहे वैसा ही रहो” ।एक दिन माँ से अपना मन हल्का करना चाहा तो नसीहत दे दिया “बेटा,वह ससुराल है तुम्हे वहां के बारे में सोचना चाहिए “सुमेधा को लगता ” क्या बेटी इतनी परायी हो गई

कि सहानुभूति के दो बोल की आशा भी  न करे ” खैर मन को समझा लिया ।माँ है तो अच्छी सीख देगी न?” वह अपने मन को लगाने की कोशिश करती रही ।सास को पसंद नहीं था कि मायके से अधिक मेल जोल रखे।वह सोचती सभी ने कहा दिया था कि दो नाव पर पैर न रखें, वरना गिर जाओगी ।तो क्या,जहाँ जन्म लिया,पली बढ़ी उसे छोड़ दूँ? भूल जाउँ सबकुछ? पर इतना आसान कहाँ होता है भूल जाना ।शादी के छःमहीने हो गये ।एक दिन डरते डरते सास से पूछा “अम्मा जी,आप कहें तो दस दिन के लिए माँ से मिल आऊं? छः महीने हो गए ।

“”ठीक है चली जाना लेकिन जल्द ही लौट आना “सास ने आज्ञा के साथ नसीहतों का पुलिंदा थमा दिया ।खुशी खुशी मायके पहुँच गयी ।पति ने ही पहुंचा दिया था।माँ से गले मिलते ही आखों से खुशी के आँसू टपक पड़े। छोटी भतीजी ने आकर पैर छू कर प्रणाम किया ।” बुआ,आप वाला कमरा अब मेरा हो गया ” आपका बिस्तर अब हाल में लगेगा ।दादी ने बताया है।मन धक से  हो गया ।सोचा था दो पल का अपनापन, सुख शांति बटोर लूंगी अपने कमरे में ।पर शायद वह नसीब में नहीं आ रहा है ।कोई बात नहीं ।मन को समझा लिया ।

बूढ़ी छड़ी-कहानी-देवेंद्र कुमार

माँ अब दिन रात बहू और पोते पोती मे लगी रहती ।सुमेधा के लिए समय का अभाव था उनके पास ।रसोई में कुछ बनाने का मन होता तो भाभी आकर टोक देती “रहने दो सुमी,अब तुम मेहमान हो घर की ,कुछ चाहिए तो मै कर दूँ? “पीछे हट गई थी वह।दस दिन समय कैसे बीत गया पता ही नहीं चला ।वह अपने घर लौट आई थी ।शायद यह घर भी अपना नहीं लगता था।सास का घर अधिक था वह।अपनी मर्जी से वह न रसोई बना सकती थी न कोई साज सामान इधर-उधर कर सकती थी ।

एक दिन सोफे को करीने से लगा दिया तो हजार बातें सुननी पड़ी थी ” ऐसे क्यों सोफे को रखा? आखिर गरीब घर की हो ना? कैसे रखते हैं तुम्हे क्या पता होगा? “इतनी बड़ी बात कह दी थी सासू माँ ने ।फिर पति को कहा तो उनहोंने साफ कह दिया ” जाने दो ना सुमी, माँ की बात का बुरा नहीं मानना चाहिए तुम्हे ” पर बात कोई तरीका से होना चाहिए ना? ।आँसू न जाने कैसे ढलक आये थे ।समय भागता रहा ।एक बेटे की माँ भी बन गई थी ।

और छोटे देवर की शादी हो गई थी ।देवरानी पूरे दान दहेज के साथ आई थी ।दिखने में भी सुन्दर थी तो रूप और धन का रुतबा भी पूरा था।छोटी बहु सास की दुलारी बन गई ।माँ ने चाहे सुमेधा को संस्कार पुरे दिया था पर रूप और धन का रुतबा ही अलग था।वह बात बात पर दबती गई ।माँ और पत्नी के बीच का टेंशन पति नहीं झेल पाये।एक दिन रात में सोये तो उठे ही नहीं ।सुमेधा को बहुत चाहते थे लेकिन माता पिता की अपेक्षा अधिक थी सो जान की कीमत दे दी।

सुमेधा पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा था ।बेटा दो साल का था।बेटे के चले जाने का दर्द सास ससुर नहीं सह पाये।छः महीने में वे भी गुजर गए ।घर में देवर देवरानी का राज था।सुमेधा के सामने बहुत बड़ी समस्या थी ।बेटे की परवरिश, शिक्षा, अपना भोजन?  कैसे करेगी वह?   फिर माँ ने हिम्मत दिया,।”बेटा तुम पढ़ी लिखी हो।हिम्मत मत हारना ।कोई नौकरी ढूंढ लो।” सुमेधा ने घर से बाहर कदम निकाला तो हंगामा मच गया ” अब घर में इतनें सारे काम पड़ा है,कौन करेगा? ” लेकिन चार बात सुनकर भी अपने घर के काम करती और बैंक में नौकरी ज्वाइन कर ली थी ।

जो साथ देंवे  हैं मान उनका होंवे है…. – रश्मि प्रकाश 

एक दिन छोटी देवरानी ने कहा कि अब हमारा चूल्हा अलग होना चाहिये ।मैं इतना सबके लिए नहीं कर सकती ।और रसोई अलग हो गयी ।सुमेधा को पैसे की दिक्कत नहीं थी।बेटे की देखभाल की चिंता अधिक थी ।बेटा पढ़ाई में आगे बढ़ने लगा ।पढ़ाई में तेज था।अच्छे नंबर से पास होता गया ।सुमेधा की उम्र बढ़ती गई ।बेटा अच्छी कम्पनी में लग गया ।उसके लिए लड़की वालों का आना शुरू हो गया ।सत्रह फोटो छांटने के बाद भी बेटा यश को कोई लड़की पसंद नहीं आईं ।

” आखिर तू चाह्ता क्या है? कैसी लड़की चाहिए तुम्हे? ” फिर एक दिन बेटा एक विजातीय लड़की को घर ले आया ।”मम्मी,यह सौम्या है “मेरी पसंद ।अकबका गई थी वह।उसके परवरिश में तो कोई कमी नहीं थी फिर ऐसा कयों हुआ उसके साथ? चलो कोई बात नहीं है ।बेटे की पसंद उसकी पसंद ।आखिर जीवन तो उसी के साथ बिताना है उसे ।माँ कबतक साथ रहेगी ।धूमधाम से शादी हो गई ।सौम्या बहू बन कर घर आ गई ।

बेटा पूना में नौकरी करता था ।सौम्या भी साथ में ही करती थी ।सुमेधा बैंक से रिटायर हो गयी थी।यश ने बहुत जोर दिया था कि मम्मी हमारे साथ चलो ।लेकिन सुमेधा ने इनकार कर दिया ” बेटा,अभी तो शादी का घर था ।लेन देन बाकी है।सबको निबटा कर आती हूँ ।फिर यश सौम्या को लेकर चला गया ।जीवन का कितना हिसाब-किताब करे सुमेधा ।कुछ भी तो अपने मन का नहीं जी सकी।चलो कोई बात नहीं है ।आखिर अपना परिवार है ।

फिर कुछ दिन के बाद ही यश का फोन आया “मम्मी तुम दादी बनने वाली हो”तुम्हारे लिए टिकट भेज दिया है ।आ जाना ।खुशी के मारे पागल हो गई थी सुमेधा ।बेटे का बच्चा ।बहुत प्यारा होता है ।सुमेधा पूना चली गई ।सौम्या को उसकी जरूरत है ।जैसा सोचा था वैसा कुछ नहीं था ।यश सौम्या के आगे पीछे घूमते रहता ।सौम्या ने भी आवभगत में उत्साह नहीं दिखाई ।सुमेधा ने सुना सौम्या ने अपनी मम्मी को बुलाया है ।दो दिन के बाद ही यश सास को लाने के लिए चला गया ” मम्मी सौम्या अपनी माँ को बुलाना चाहती थी ” क्या कहती सुमेधा ।

यादगार यात्रा – नताशा हर्ष गुरनानी

उसकी जरूरत नहीं है यहाँ ।सौम्या की माँ आ गई ।रसोई में उनका एक अधिकार हो गया ।उसदिन सुमेधा जब सुबह चाय बनाने के लिए रसोई में गयी तो समधिन ने टोक दिया ।अरे अभी इतनी सुबह चाय कौन पियेगा?बार-बार गैस जलाने से खर्च भी तो बढ़ता ही है ।सुमेधा को लगा यह उसका घर नहीं है ।बेकार ही यहाँ आयी।सौम्या के खाने का पूरा जिम्मा उसकी माँ पर था।लेकिन यश को भी कुछ बना कर खिलाना चाहती तो सौम्या टोक देती ।

यश को उसके हाथ का पनीर के कोफ्ते और दही बड़े बहुत पसंद थे ।सोचा था कि आज बना कर खिलायेगी ।बाजार से पनीर खुद ले आयी।दही बड़े के लिए उड़द दाल भीगोने जा रही थी  तभी सौम्या ने मना कर दिया “मम्मी जी  दही बड़े न बनायें  यश का गला खराब होता है ।और पनीर तो यश को पसंद ही नहीं है ।बेकार ही बना रही है ।कौन खायेगा? “हाथ रूक गये सुमेधा के ।पहले तो ऐसा नहीं था।फिर भी आज जरूर बनायेगी ।

बड़े मन से बना कर परोस दिया बेटे के लिए ।सौम्या दनदनाती हुई आई और दोनों प्लेट हटा दिया आगे से ।पच्चीस साल जो बेटे की पसंद को जानती थी वह आज नाकारा हो गई ।बेटा भी उठ गया ।”मम्मी अब मुझे पनीर अच्छा नहीं लगता “और दही बड़ा से गला बैठ जाता है ।फिर सौम्या का समय आ गया ।उसने एक बेटे को जन्म दिया ।परिवार में खुशी की लहर दौड़ गई ।सुमेधा को लगा अब वह अपना समय बच्चे के बीच बाँट लेगी।

बेटा रहे अपनी पत्नी के साथ ।वह एक बार फिर से अपने बेटे का बचपन जीना चाहती थी ।अस्पताल से सौम्या घर आ गई ।पोते के स्वागत के लिए कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी सुमेधा ने।लेकिन बहू ने कहा दिया ” मुझे यह सब दिखावा पसंद नहीं ” नोच कर सारे बैलुन और फूलों की लड़िया फेंक दिया ।यश चुप चाप देखता रहा ।सुमेधा बच्चे को अपने हाथों मालिश करना चाहती ।नहलाने के लिए हाथ बढ़ाती तो उसकी नानी बच्चे को ले लेती ।

“सर्दी लग जायेगी रोज नहायेगा तो” इतना तिरस्कार? बात बात पर? ।कल का आज्ञाकारी बेटा भी तो सास और पत्नी के आगे चुप रहता है ।मन मसोसकर रहते हुए एक महीने बीत गए ।सुमेधा का मन होता पोते को खूब गोद में लेकर खेलाये ।कलह के डर से चुप हो गयी थी वह ।एक दिन रात को जोर से प्यास लगी थी ।पानी रखना भूल गयी थी वह।रसोई में पानी लाने गयी।कानों में आवाज़ आयी ।”सौम्या सास को कितना दिन रखेगी? खर्च भी तो बढ़ता ही है ” समधिन की आवाज थी।

सोने जैसा ससुराल

“हाँ मम्मी,यश मानें तब ना ” माँ की नाम का माला जपते रह्ते हैं “देख लेना जल्दी ही विदा करेंगे उनकों “बच्चे के लिए तुम तो हो ही ।और भला नानी से अधिक कौन कर सकता है ” जड़ हो गई थी सुमेधा ।फैसला कर लिया अब नहीं रहेगी यहाँ ।चली जायेगी अपने घर ।कल ही बात करेगी यश से ।सुबह कुछ करने का मन नहीं कर रहा था उसका ।चाय भी नहीं बनाया ।बेटा उठा तो बोली ” बेटा,अब मै घर जाना चाहती हूँ ।

बहुत दिन रह लिया ।टिकट हो जाता तो ठीक था ।” इतनी जल्दी जाने की क्या है मम्मी “?बस ऐसे ही ।बेटा दूसरे दिन का टिकट करा दिया ।आज सुमेधा अपने घर में खुश थी ।कितनी शान्ति मिलती है यहाँ ।अपने मन का जीना सबसे सुखद अहसास होता है ।सुमेधा चाय पीकर फ्रेश होने चली गई ।पति के छोड़े हुए कुछ पैसे हैं ।कुछ अपने पैसे है ।जीवन चल जायेगा ।घर के काम के लिए किसी को रख लेगी।बार बार किसी का तिरस्कार सहना बहुत तकलीफ दायक होता है ।

अब यहां चैन की नींद सोयेगी ।शरीर का क्या है ।कब आंख मुँद जाय ।और सचमुच सुमेधा हमेशा के लिए सो गयी ।सारी दुनिया से छुटकारा मिल गया ।पड़ोस के चाचा जी ने यश को खबर कर दिया है ।बेटा बहू दूसरे दिन पहुंच गए ।

रात भर सुमेधा के देखभाल के लिए मीना चाची बैठी रही ।कहतें हैं कि शरीर को अकेले नहीं छोड़ते हैं ।सौम्या खूब रोने का नाटक कर रही है ।साथ ही निर्देश भी देती जा रही है ।किसी चीज की कमी नहीं होने चाहिए ।आखिर माँ थी हमारी ।बेटा चुप चाप सामान जुटाने में लगा है।आखिर सुमेधा चली गई ।बहुत तिरस्कार सबदिन सहती रही ।सुमेधा की आत्मा की शांति के लिए पूजा पाठ हो रहा है ।क्या सुमेधा को शान्ति मिल जायेगी? यह सवाल पाठकों पर छोड़ दिया है ।

उमा वर्मा ।नोयेडा ।स्वरचित ।मौलिक ।

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