सोने जैसा ससुराल

“जीजी… देखो ना कितने सारे रिश्ते आए और गए लेकिन मनीता के लिए सही लड़का मिल ही नहीं रहा!! अभी देखिए ना कल ही एक परिवार आया था बरेली से, लड़का इंजीनियर था महीने दो लाख तक का कमाता है. लेकिन उनको शादी के दहेज में बीएमडब्ल्यू और लड़की डबल ग्रेजुएट मांग रहे” गौरी अपनी ननंद से बोली.

“तू चिंता मत कर हमारी मनीता अभी २१ साल की है. शादी की इतनी जल्दी क्या है!! तू ना ढूंढती रहना, लेकिन हां जल्दबाजी नहीं. मैंने रमननाथ से कह दिया है कि बिटिया की शादी अच्छे से जांच परख कर ही करना!!” मनीता की बुआजी गौरी से बोली। 

दरअसल मनीता की उम्र २१ साल की थी. अपनी कॉलेज की तीन साल की पढ़ाई पूरी कर चुकी थी. और परिवार भी बड़ा ही साधारण था. मनीता के पिताजी की हलवाई की दुकान थी सब उनको रमन हलवाई के नाम से जाना  करते. और मनीता की मां गौरी घर में ही सिलाई कढ़ाई कर कुछ पैसे कमा लेती. मनिता का छोटा भाई भी, कन्हैया जो बांके बिहारी की कृपा से कई मन्नतो के बाद मिला, इसलिए उसका नाम कन्हैया रख दिया. वह मनीता से 9 साल छोटा था. मनीता के परिवार वालों को उसकी शादी की चिंता खाए जा रही थी.

समय बदलता जा रहा था और शादी के लिए अच्छे लड़के-लड़कियों की कमी भी होती जा रही थी. ऐसे में बिटिया के लिए अच्छे लड़के के साथ साथ अच्छा परिवार मिलना जैसे सौभाग्य की बात थी. कई रिश्ते आए और गए लेकिन कभी लड़के वालों ने मना किया तो कभी मनीता के पिताजी रमननाथ जी ने रिश्ता ठुकरा दिया. कभी लड़का अच्छा होता तो उनके दहेज की भारी मांग का बोझ… ऐसे में मनीता के लिए रिश्ता ढूंढना मतलब जमीन आसमान एक करना जैसा था.

फिर वह दौर भी आया जब बुआजी मनीता के लिए एक रिश्ता लेकर आई. कुछ दो दिन बाद ही मनीता को देखने आने वाले थे. बुआजी ने गौरी को सब समझाते हुए कहा,

“देख गोरी, अब बिटिया की जिंदगी का सवाल है… वसुधा जी का परिवार बहुत ही संस्कारी और अच्छे विचारों वाले है. हां थोड़े बड़े लोग जरूर है पर वसुधाजी को इस बात का जरा भी घमंड नहीं. उनका छोटा बेटा मोक्ष विदेश से एमबीए की पढ़ाई करके आया है. और हां रमननाथ को कहना कि बड़ा खानदान है तो उनके सामने अपनी छाती जरा चौड़ी रखें!!” बुआजी गोरी से बोली.




“जैसा आप कहे जीजी, लेकिन आप को समय से पहले ही आना होगा वरना मेरा तो ऐसे मामलों में दिमाग ही काम नहीं करता…” गौरी बुआजी से बोली.

अगले दिन सुबह घर पर जोर-शोर से साफ सफाई चलती है. घर का एक-एक कोना चमका दिया जाता है. नए पर्दे और नई चादरें बिछा दी जाती है. उधर बुआजी और गौरी मिलकर मेहमानों के लिए चाय नाश्ते का इंतजाम करते है.

उधर से दरवाजे की घंटी बजती है और…

“आइए, आइए… नमस्कार गुप्ता जी 🙏 अंदर आइए!!” रमननाथ जी वसुधाजी के परिवार का जोर-शोर से स्वागत करते है.

मनीता को देखने वसुधाजी के साथ बेटा मोक्ष पिता कौशिक जी और बड़ा बेटा मोहित और बहू पारुल आए थे. आदर सत्कार से उनको अंदर बिठाते है. उधर गौरी रसोईघर से दरवाजे के पीछे खड़ी वसुधाजी के ऊपर अपनी नज़र घुमाती है…

“यह वसुधाजी तो बड़ी जवान दिखती है!! और देख कर तो लगता है कि बहुत गर्म खून की है जीजी!!”

“सससहहह… चुप कर, ऐसा नहीं है पैसे वाले लोग है ना!! अपनी सेहत का पूरा ध्यान रखते है. और हमारी तरह घरेलू नहीं है काफी मॉडर्न ज़माने की है. बातें छोड़ हमारी और मनीता को लेकर आ…” बुआजी गोरी से.

गौरी सुंदर साड़ी पहना मनीता को अपने साथ मेहमानों के सामने ले आती है. मनीता शर्माती हुई मोक्ष को देखती है. तो मोक्ष भी मनीता को अपनी नज़रें चुराता हुआ देखता ही रहता है. जैसे मनीता उसको एक ही नज़र में भा जाती है.

बातचीत पूरी होती है और रमननाथ जी अपनी राय देते है…




“हमारी बेटी को और हमें आपका बेटा मोक्ष बहुत पसंद है. अब आप अपनी राय बता देते तो अच्छा होता रमननाथ जी वसुधाजी से बोले, 

“हमारे बेटे को भी आपकी बेटी मनीता बहुत पसंद आई है. तो यह रिश्ता हम पक्का समझते है.” वसुधाजी और कौशिक जी बोले.

“जी जरा लेन-देन की बात भी हो जाती तो अच्छा रहता!! वो क्या है ना बेटी को विदा तो करना ही है पर उसके लिए तैयारी भी तो पूरी होनी चाहिए!” रमननाथ जी बोले.

“वह तो होती रहेंगी पहले आप अपनी बेटी को जल्द से जल्द विदा करने की तैयारियां शुरू कीजिए। बाकी बातें हम शादी की तारीख पक्की होते ही कर लेंगे” कौशिक जी बोले.

कुछ दिन बाद वसुधाजी और कौशिक जी घर आते है… तब गौरी भावुक होकर बोली…  “देखिए वसुधाजी आपने तो हमसे कुछ नहीं मांगा लेकिन हमें तो हमारी बिटिया के लिए कुछ तो देना है ना! यह अनीता के सोने के चेन  उसके पिताजी ने बनवाए है”

“अरे लेकिन हमें तो बेटी ही पूरी सोने की चाहिए… सिर्फ सोने के चेन  से हम क्या करेंगे!!” वसुधा जी बोली.

गौरी कुछ समझ ना पाई और आश्चर्य से वसुधाजी की तरफ देखती है और कहती है… “पर वसुधाजी हमारी इतनी हैसियत तो नहीं है कि हम बेटी को पूरे सोने के गहनों में विदा करें! आपने पहले तो यह बात नहीं की थी हमसे!”

“आप समझे नहीं मेरा मतलब है कि हमें अपनी बहू को सोने के चेन  में बांधकर नहीं रखना चाहते! हम मनीता को आगे औरपढ़ाएंगे  मनीता ने मोक्ष से बातचीत के दौरान कहा था कि उसे आगे पीएचडी की पढ़ाई पूरी करनी है. तो हम उसे पढ़ायेंगे… वह अपने पैरों पर खड़ी होगी तो अपने आप ही वह पूरी सोने की हो जाएगी ना! गौरी जी हमें आपसे और कुछ नहीं चाहिए बस आप की सोने जैसी बेटी ही चाहिए!” वसुधाजी गौरी का हाथ थामे बोली.

यह सुन गौरी और रमननाथ जी के आंख में आंसू आ गए… जैसे की अगर दिया लेकर ढूंढे तो भी उन्हें ऐसा अच्छा परिवार अपनी बिटिया मनीता के लिए नहीं ढूंढ पाते.

और ऐसे कुछ छे महीने बाद मनीता और मोक्ष की शादी हो जाती है. शादी के बाद मनीता अपनी पीएचडी की पढ़ाई पूरी कर अपने नाम के आगे डॉक्टर मनीता लगाकर मायके और ससुराल दोनों का नाम गर्व से ऊंचा‌ करती है.

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