त्याग के उसूलों की हार – प्रेम बजाज
सब कुछ तो साफ था मेरे सामने। सारे रास्ते खुले थे फिर क्यों नहीं जिंदगी को अपना सका मैं? क्यों मैं पीछे मुड़कर नहीं देख पाया? क्या यह जिंदगी मेरी जरा सी भी नहीं है? अगर इसे मैंने खुद चुना है तो अब क्यों मैं पीछे मुड़ कर देखता हूँ? उसने तो कहा था मुझे … Read more