सिर्फ तुम और कुछ नहीं” –  रचना कंडवाल

ओहो! मेजर साहब हमारी और आपकी शादी को कितने साल हो गये हैं?? बताइए न?? ऐसा कहते हुए कल्पना  मुस्कुरा उठी। मेजर धीरेन्द्र प्रताप सिंह झुंझलाहट भरी नजरों से उसे देख कर अपना फोन अटेंड करने लगे। फोन बंद करते ही उसकी ओर मुखातिब हुए और डपटते हुए बोले। अभी इस कैलकुलेशन का वक्त नहीं है मेरे पास मेरी अपनी अलग परेशानियां हैं।पता नहीं तुम कब समझोगी?? अभी साहब का फोन था वापस बुलाया है मुझे।अभी तो आपको सिर्फ पन्द्रह दिन हुए हैं आए हुए कल्पना की पलकों पर आंसू ठहर ग‌ए। दो महीने का कहा था अब इतनी जल्दी….

बारामूला में पोस्टिंग हुई है। मेजर साहब का स्वर गंभीर था। कल ही निकलना होगा।

मॉम और डैड को भी बता देता हूं। ऐसा कह कर वह तेजी से बाहर चले गए।

कल्पना रूम में अकेली रह गई।उसके सब्र का बांध टूट गया। वह फफक-फफक कर रो पड़ी। हमेशा ऐसा ही क्यों होता है???  क्यों हमारी जिंदगी ऐसी हो गई??? मेजर साहब आप हमेशा इतने कठोर कैसे हो सकते हैं??? प्यार तो आपको मुझसे है ही नहीं।


रात को डाइनिंग टेबल पर अजीब सी खामोशी थी। कल्पना ने आज मेजर साहब की मनपसंद खीर बनाई थी।

डिनर के बाद मीठे में खीर परोसी तो सबने खाकर तारीफ की सिर्फ मेजर साहब ने ही कुछ नहीं कहा।

बेडरूम में आकर भी एक आर्डर मिला अच्छा सुनो! मॉर्निंग में जल्दी उठना है। पैकिंग अभी करनी होगी।

वो खामोशी से पैकिंग करने लगी। गुस्से से उफनती हुई बोल‌ पड़ी कुछ लोग पता नहीं क्यों शादी करते हैं??

क्यों करते हैं का क्या मतलब??ये तुम्हें नहीं पता शरारत से उन्होंने उसका हाथ पकड़ कर अपनी तरफ खींच कर उसे अपनी बाहों में भर अपने सीने में भींच लिया।

“डोंट बी सिली” आज इस खुबसूरत रात को यूं गुस्से की नजर न करो। तुम्हारी इस एक झलक के सहारे मुझे वहां महीनों गुजारने होंगे।

अंतरंग क्षणों में भी वो यही सोच रही थी कि पुरुष बहुत स्वार्थी होते हैं।

एक एक यादें वह समेट लेती है महीनों के लिए।

अगले दिन वो वक्त भी आ गया जिससे वह हमेशा नजरें चुराती है। उसके मेजर साहब पापा के पैर छुएंगे, मम्मी को गले लगाएंगे उन्हें ख्याल रखने को कहेंगे और उसकी तरफ सिर्फ एक नजर डालेंगे और कुछ भी नहीं कहेंगे। बिल्कुल निर्मोही हैं। वह गाड़ी जाते हुए देखती रही


आंखों में आंसू लिए।

पहुंचने के बाद फोन आया। अब आवाज में कोमलता थी।सुनो नाराज तो नहीं हो। ये सुनकर कल्पना का दिल भर आया। जोर से रोने का मन किया पर आंसू पी गई। नहीं मैं नाराज नहीं हूं सही से पहुंच गए आप वहां ठंडा बहुत होता है ध्यान रखिएगा। कल्पना मेरा नेचर ही ऐसा है रूखा सा शायद मेरे काम ने मुझे ऐसा बना दिया है। अब आऊंगा तो तुम्हारी सारी शिकायत दूर कर दूंगा। मेरा सब कुछ वहां पर तुम्हारे भरोसे है। मॉम और डैड दोनों का ख्याल रखना। यहां ज्यादा बात नहीं हो सकती। मैं खुद फोन करूंगा।

कल्पना रोज फोन का इंतजार करती है। पांच महीने हो गए हैं। हफ्ते में एक ही दिन बात होती है।

मेजर साहब की सोपोर में ड्यूटी है। फोन पर कहा था कि यहां आज-कल आंतकवादी कुछ ज्यादा पकड़े जा रहे हैं। सेब के बगीचे उनके छिपने के लिए मुफीद जगह है।

कल्पना बेटा ऐसे उदास न हो जाया करो।सासू मां की मीठी आवाज से उसकी आंखें नम हो गई।

बेटे अगर जी अच्छा नहीं है तो मायके का चक्कर लगा आओ। चार साल बाद तो कान्हा जी हमारी सुन रहे हैं। हमारे यहां भी नन्हे कदम पड़ेंगे उनके।

पर मम्मी अगर बेटी हुई तो??

तो कोई बात नहीं। बेटा-बेटी सब एक ही है मेरे लिए।


मम्मी आज मन कुछ बेचैन है। कुछ समझ नहीं आ रहा है कि क्या हो रहा है?? आज शायद इनका फोन आए। शाम हो गई पर कोई फोन नहीं आया टीवी पर कल्पना के ससुर न्यूज देख रहे थे हेडलाइन थी कि सोपोर में आतंकवादी मुठभेड़ में  मेजर धीरेन्द्र प्रताप सहित सेना के पांच जवान शहीद हो गए हैं। उनका चेहरा सफेद पड़ गया। उन्होंने तुरंत टीवी बंद कर दिया। इकलौता बेटा शहीद हो गया। मेजर धीरेन्द्र प्रताप ने आखिरी वक्त तक संघर्ष किया सात गोलियां लगी थी परन्तु वह अंत तक मोर्चे पर डटे रहे।

कल्पना की तो जैसे दुनिया ही खत्म हो गई। पति का शरीर जब तिरंगे में लिपट कर आया तो बस वह उनसे ऐसे लिपट गई कि जैसे कि कभी अलग नहीं होगी।

उसकी चीखें सबको दहला गई।

सम्मान के साथ मेजर साहब का अंतिम संस्कार हुआ।

कुछ सैनिक उनका सामान लेकर आए।

मैम ये सर का सामान है।‌

कल्पना ने उदास सूनी नजरें उस पर डाली। सासू मां ने वो बाक्स उसके रूम में रखवा दिया था।


कल्पना रूम में आई  उस बॉक्स से लिपट कर प्यार से उसे निहारते हुए हाथ फेरने लगी उसे महसूस हो रहा था कि उसके मेजर साहब कहीं नहीं ग‌ए यहीं उसके सामने तो हैं वो बुदबुदाने लगी मुझे पता था “आप मुझे ऐसे छोड़ ही नहीं सकते।” अभी आप मुझे डांटेंगे कल्पना ये सब क्या है?? तुम तो अभी से हमारे बच्चे को रोना सिखा रही हो। उसने आंसू पोछतें हुए कांपते हाथों से बॉक्स खोल दिया। वही चिरपरिचित खुशबू मेजर साहब के कपड़े उनका शेविंग किट सब कुछ था उसमें। सामान में सबसे नीचे एक लैटर था। पिछले हफ्ते की तारीख थी।

क्या लिखूं तुम्हें?

क्योंकि तुम तो समझती हो कि मैं एक अनरोमांटिक पति हूं। हमेशा शिकायत रहती है तुम्हें मुझसे। पर मेरी बात को समझना कि मेरा पहला प्यार मेरा देश और मेरा आखिरी प्यार तुम हो। एक सैनिक की जिम्मेदारियां ही अलग होती हैं। मॉम डैड और तुम मेरे लिए क्या हो?? शायद शब्दों में नहीं बता पाऊंगा। तुम्हें जाते हुए पलट कर इसलिए नहीं देखता क्योंकि तुम्हारा दुःखी उदास चेहरा नहीं खिलखिलाता खुश चेहरा याद रखना चाहता हूं। इस समय ऐसी जगह पर हूं जहां सांसे कब हवा बन जाए पता नहीं। हमारे बच्चे को मैं जल्दी ही देखूंगा उसके और तुम्हारे साथ वक्त बिताऊंगा। तुम्हारी सारी शिकायत एक दिन दूर हो जाएंगी। पर एक वादा तुमसे चाहता हूं कि मैं अगर नहीं रहा तो मेरे प्यार को एक खूबसूरत बंधन समझना बेड़ियां नहीं।

मेरे लिए प्यार का मतलब “सिर्फ तुम हो और कुछ नहीं “


सिर्फ और सिर्फ तुम्हारे

मेजर साहब

आप सच में यहीं है मेजर साहब आप मुझे छोड़कर कभी कहीं नहीं जा सकते उनकी वर्दी को सीने से लगा कर वो रोते-रोते बेहोश हो गई।

© रचना कंडवाल

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