त्याग के उसूलों की हार –  प्रेम बजाज

सब कुछ तो साफ था मेरे सामने। सारे रास्ते खुले थे फिर क्यों नहीं जिंदगी को अपना सका मैं? 

क्यों मैं  पीछे मुड़कर नहीं देख पाया? क्या यह जिंदगी मेरी जरा सी भी नहीं है? अगर इसे मैंने खुद चुना है तो अब  क्यों मैं पीछे मुड़ कर देखता हूँ? 

उसने तो कहा था मुझे “जिंदगी को खुद पर हावी मत होने दो, रजत। त्याग होना चाहिए अपने अहम का।

त्याग होना चाहिए बड़े और छोटे में भेदभाव की भावना का।

किसी दूसरे के लिए अपने उसूलों का भी कभी-कभी त्याग करना पड़ सकता है, कभी किसी की भलाई के लिए अपने आदर्श और सिद्धांतों का भी त्याग करना पड़े तो कर देना चाहिए, मगर अपने उसूलों के लिए किसी रिश्ते का त्याग करना कहां तक उचित है?” 

पर कहाँ अमल कर पाया मैं उसकी बातों पर? तब मैं समझ भी कहां पाया था उसकी बातों को। 

त्याग, आदर्श, उसूल, सिद्धांत यही मेरी जिंदगी थी। मेरे त्याग, आदर्शों, उसुलों ने मुझे आज समाज में ऊंची मान प्रतिष्ठा दी है, लेकिन इन सब में मैं अनजाने में सभी रिश्तों का त्याग कर बैठा। वो भी कहां तक अपने अरमानों, उसूलों, सिद्धांतों और ख़्वाबों का त्याग करती। फिर क्या ढूंढता है मेरा मन आज भी इस पुरानी डायरी के अधफटे पन्नों में ? 


आज अचानक उसका सामना होने पर मैं उससे आंखें नहीं मिला पाया, पर वह मुझे अपलक देखती रही एक प्रश्न चिन्ह अपनी निगाहों में लिए……..

आज उससे एक बिजनेस मीटिंग में मुलाकात हो गई, मिस्टर राहुल के बारे में  सुना था कि मूढ़ी है, किसी बात को सीरियसली नहीं लेता, अपने  वर्करों से अक्सर मस्ती-मज़ाक करता रहता है, सभी वर्कर्स  से अपनों जैसा व्यवहार करता। वो जानता है, मज़दूर भी इन्सान है, और उन्हीं की मेहनत से ही मालिक की फैक्ट्री चलती है, इसलिए कभी-कभी वो अपने उसूलों को भी त्याग कर मज़दूरों के साथ उन्हीं के काम में हाथ बंटाता, उनके साथ चाय इत्यादि पी लेता, उनके दुःख-सुख में साथ खड़ा होता था। 

इधर रजत जो कहता,”उसूल और ओहदा नाम की भी कोई चीज़ है, मालिक, मालिक होता है और मज़दूर, मज़दूर”

रजत को हर काम नियमों के मुताबिक ही चाहिए, रीता कभी किसी छोटे ओहदे वाले से हंसकर बात करती तो रजत गुस्सा करता कि,”क्या तुम उनकी बराबरी की हो जो उनसे इस अपनेपन से बात करती हो”

आज वही रीता रजत के काॅम्पीटिटर राहुल की बीवी है, राहुल के पास आज रजत से चार गुना ज्यादा कांट्रेक्ट है, क्योंकि जब कांट्रेक्ट पूरा करना हो तो उसके वर्कर्स दिन-रात मेहनत करते हैं।

जबकि रजत के वर्कर्स केवल जितनी उनकी ज़रूरत, उतना काम करते हैं, कांट्रेक्ट पूरा हो या ना हो उन्हें कोई सरोकार नहीं।

आज रजत अपने बनाए त्याग के उसूलों से हार मानता हैं।

#त्याग

प्रेम बजाज ©®

जगाधरी ( यमुनानगर)

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