सुहागन – अनुज सारस्वत

“मां जी मैं मार्केट जा रही हूं शॉपिंग के लिए अब समय ही कहां बचा है शादी के लिए 2 महीने ही तो रहे हैं इधर हमारे देवर जी इतने भोले हैं कि बिना भाभी के उनका काम नहीं होता”

सुप्रिया ने अपनी सासू मां से कहा सासू मां बोली

“बेटा तुझे मना किया ना तेरा पूरा टाइम चल रहा है तू इतनी भागदौड़ मत किया कर इतना बड़ा हाथी हो गया खुद ले आएगा तू आराम कर और तू, जबसे इसकी शादी पक्की हुई है अपने लिए एक समान नहीं लाई, बस देवरानी और देवर के लिए ही कर रही है शॉपिंग रहने दे ये कर लेगा”

” अरे नहीं यह दोनों बच्चे ही तो है मेरी जिम्मेदारी बढ़ गई ना और आप चिंता ना करो”

“मैं तो हार गई तुझसे जल्दी आना”

सासु माँ ने कहा

सुप्रिया जब से शादी हो कर घर में आयी थी, पूरा घर संभाल लिया था अब दूसरा बच्चा होने वाला था पहला बच्चा 5 साल का लड़का था और देवर  को अपने बच्चे से बढ़कर प्यार करती थी ,ससुर जी तो  20 साल पहले ही दिवंगत हो गए थे देवरानी की आने की खुशी में इतनी पागल होती जा रही थी ,वह कहती रहती अब मैं धौंस जमाऊंगी बड़ी हूं जेठानी सब हँसते फिर, रोजाना देवरानी से फोन पर बातें कर करके  उसकी पसंद नापसंद पूछती, हमेशा यह कहना कि तुम बहन हो मेरी,  हमें देवरानी जेठानी बनना ही नहीं है सब राजपाट तुम्हारा है अब, चिंता नहीं होगी मेरी तरफ से कोई, देवर से ज्यादा तो खुद लगी रहती थी देवरानी से फोन पर ,देवरानी भी कहती “



दीदी आप कब करोगी अपने लिए शॉपिंग”

तो उसको  पेट की तरफ इशारा करके कहती

“यह महान आत्मा तो निकले ,इस महीने हो जाएंगे तो हम फ्री, खुद की शॉपिंग के लिए 2 महीने ही तो बचे”

डिलीवरी वाले दिन  शाम हो चुकी थी सुप्रिया ने आटा लगा दिया था सब्जी काट चुकी थी तभी दर्द होने शुरू हो गए सभी लोग अस्पताल ले गये उसे स्ट्रेचर पर लेटते हुए सासू मां से गोली माँ आकर खाना बना दूंगी लौट कर, माँ  बोली चुप कर कुछ मत सोचो घबराना नहीं भगवान का नाम लेती रहना ,वह मुस्कुरा दी।

डिलीवरी रूम में बंद हो गया थोड़ी देर बाद डॉक्टर बच्चे को लेकर घर वालों के पास आए बच्चों को देखकर सब खुश हुए पूरे स्टाफ को सुप्रिया के देवर ने लड्डू बटवा दिए, उन्होंने डॉक्टर से सुप्रिया  के बारे में पूछा डॉक्टर ने कहा थोड़ी देर में डिसचार्ज कर रहे हैं,  इतनी देर में एक नर्स डिलीवरी रूम में से आकर डॉक्टर के कान में कुछ कहा ,वह अंदर गया तो देखा जूनियर डॉक्टर की गलती से कोई गलत नस कट गई थी सुप्रियो की और खून बहना शुरू हो गया था जो रुक नहीं रहा था 1 घंटे के अथक प्रयास के बाद भी खून नहीं रुका अब डिलीवरी के 2 घंटे बीत चुके थे सब लोगों ने शोर मचाना शुरू किया, क्योंकि ना माँ ने बच्चा देखा ना बच्चे ने मां को  डाक्टर के  हाथ पांव फूल गए, सुप्रिया सफेद पड़ चुकी थी और दुनिया को अलविदा बोल चुकी थी।

इधर उसकी बॉडी को घर वालों के हवाले कर दिया गया लाश को देखते घर वालों में कोहराम मच गया सुप्रिया का पति देव और सासू मां सदमे से बेहोश हो गए पूरा शहर इकट्ठा  हो गया ,डॉक्टर को मारने को उतारू हो गये, बड़े लोगों को समझाने के बाद   कंट्रोल हुये,इधर फोन पर देवरानी को जब मालूम पढ़ा तो उसकी भी हालत खराब हो गई रो-रोकर बार बार सुप्रिया की बातें याद आ रही थी, “जल्दी आ जाओ शादी करके”

बल्कि सुप्रिया ने कोशिश की थी जल्दी मुहूर्त निकलवाने की, इधर देवर भी अपनी मां जैसी भाभी को खोने के कारण बेसुध था और 5 साल के अभिनव  को तो पता भी नहीं था कि क्या हुआ है, वह बच्चों के साथ खेलने में व्यस्त था ,बीच में पूछ लेता है मम्मी के हाथ से खाना खाना है ,पास खड़े लोग भी अपने आंसू नहीं रोक पा रहे थे इस घटना को देखते हुए।

पूरी दुल्हन की तरह सजी हुई सुप्रिया को उसके पति कंधा देते हुए याद कर रहा था कि कैसे वह उसे छेड़ा  करती थी, कि  मेरी इच्छा है सुहागन ही  जाऊं ऊपर ,आपके कंधों पर सजी धजी जैसे आप मुझे ब्याह कर लाए थे

#कभी_खुशी_कभी_गम

-अनुज सारस्वत की कलम से

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