समझदार – रेखा मित्तल

     मां की तबीयत खराब थी। कुछ उम्र का तकाजा, कुछ घुटनों का बढ़ता दर्द। मुझे कल 5/7 दिनों के लिए मां के पास जाना था। 1 सप्ताह से तो बड़ी दी देखभाल कर रही थी परंतु उनकी भी छुट्टी खत्म हो रही थी तो अब मुझे वहां जाना था। प्रोग्राम पहले से ही तय था। शाम को निखिल मेरे पति ऑफिस से घर आए। चेहरे से कुछ परेशानी झलक रही थी।

     मैंने चाय परोसते हुए पूछा,”क्या हुआ? कुछ परेशान दिखाई दे रहे हो? सब ठीक-ठाक है।

ऑफिस में तो कुछ परेशानी नहीं आई।”

“हां, ऑफिस में तो सब ठीक है।”निखिल ने कुछ छिपाते हुए बोला।

“फिर परेशान क्यों हो, तुम्हारा चेहरा बहुत कुछ कह रहा है।”मैंने जोर देकर पूछा।

“अरे, पिताजी की तबीयत खराब है। मुझे 3/4रोज के लिए बुलाया है!”निखिल बोला।

   बच्चों की वार्षिक परीक्षा चल रही है। मैंने जाने के कारण पहले से ही अच्छे से तैयारी करा दी थी।पर नहीं छोड़ा जा सकता। सब कुछ सेट था ,अब यह नई प्रॉब्लम!!!!मुझे मां को देखने जाने का प्रोग्राम खटाई में पड़ता दिखाई दिया।



   “सुनो गीत, तुम अपना प्रोग्राम चार-पांच दिन बाद का बना लो। दीदी से बात कर लो यदि वह तीन-चार दिन किसी तरह मैनेज कर ले!”निखिल ने मुझे समझाते हुए बोला।

 ” तुम समझदार हो, थोड़ा एढजस्ट कर लो।”

 याद आ गया मुझे शादी के बाद का किस्सा। ऐसे ही एक बार निखिल का तबादला दूसरे शहर में हो गया था, तब उन्होंने मुझसे नौकरी छोड़ने का प्रस्ताव रखा।

 “गीत  तुमतो समझदार हो ।”

 मुझे ही अपनी नौकरी छोड़कर इनके साथ जाना पड़ा।

 निखिल का है यह बोलना,”गीत तुम तो समझदार हो ,मेरी प्रॉब्लम को समझो।”

मेरे लिए एक नया समझौता !!हर बार की तरह मुझे ही करना पड़ता है। रिश्तों को‌ संभालने की जिम्मेदारी मेरी ही है।

        —–रेखा मित्तल, स्वरचित

                       चंडीगढ़

 

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