“अब आप कन्या का हाथ वर के हाथ में दीजिए।अब कन्यादान का समय हो गया है।
यजमान ,अब आपकी बेटी आपकी नहीं रही किसी और कुल की हो गई है।”
पंडित जी ने मंत्र पढ़ना शुरू किया थोड़ी देर बाद मंत्र संपन्न हो गए और विवाह के सभी रस्में संपन्न हो गए तो एक थाली में अक्षत और फूल लेकर वह वर और वधु दोनों पक्षों की तरफ देकर कहा “आप मंत्र के साथ में के ऊपर पुष्प की वर्षा करेंगे।
आप दोनों के घर में एक नए सदस्य का आगमन हो रहा है। उनके स्वागत में मंत्र पढ़ूंगा और आप लोग फूलों की वर्षा करेंगे।”
जब शादी के सारे रस्में खत्म हो गए तब पंडित जी ने निकिता और अरुण को सामने बैठा लिया। उसके साथ ही परिवार के सारे लोगों को एकत्र कर कहा “आप सब एक जगह बैठ जाइए और जो मैं कह रहा हूं उसे ध्यान से सुनिए।”
पंडित गजराज जी अरुण के पिता लक्ष्मीकांत जी के करीबी थे इसलिए वह जानते थे कि लक्ष्मीकांत जी इस शादी से खुश नहीं है। बेटे की जिद के आगे उन्होंने अपने हथियार डाल दिए थे और इस शादी के लिए तैयार हो गए थे।
पंडित जी की बात सुन कर बेमन से वह वहां बैठ गए। अपनी पत्नी सुधा को भी उन्होंने बैठा लिया। उधर लड़की वाले भी अपने परिवार वालों के साथ वहीं बैठ गए ।
पंडित जी ने नए वर वधु दोनों को संबोधित करते हुए कहा ” सुनिए बच्चों ,आप लोग नए जमाने के हैं । इसलिए कि आप लोगों को विवाह के नियम कानून, मंत्र और विधि विधान पता नहीं है इसलिए हमारी जरूरत पड़ जाती है। आप दोनों बालिग हैं और चाहते तो कोर्ट मैरिज भी कर लेते।
परंतु कुछ शुभ कार्य होते हैं ,मांगलिक कार्य होते हैं जिन्हें शुभ तरीके से और मांगलिक तरीके से करना चाहिए। शादी एक ऐसा ही पवित्र बंधन है ।
हम विवाह को विवाह नहीं कहते हैं बच्चों, विवाह को शुभ विवाह कहते हैं।
शुभ मुहूर्त निकाल कर शुभ लग्न में ही सारे रीति रिवाज संपन्न होते हैं।
जानते हैं क्यों, क्योंकि एक दूसरे से अनजान दो लोग पति-पत्नी बनते हैं। जीवन भर एक दूसरे का साथ निभाने के लिए। एक दूसरे का घर बसाने के लिए। सप्तपदी के जो सातों वचन मात्र दिखावा नहीं है, बच्चों। वह एक जिंदगी है, नियम है।
आपने अपनी पत्नी का पाणिग्रहण किया है इसका मतलब यह है कि अरुण बेटा आपने इस कन्या को अपना लिया। सिर्फ इसकी खूबसूरती पर नहीं, नजाकत पर नहीं, इसकी हर अच्छाई, हर बुराई के साथ इस अपनाइए। सिर्फ इसे नहीं जैसे आपको उम्मीद है
कि वह आपके घर आकर आपके परिवार को इज्जत और मान सम्मान देगी वैसे ही आप भी इसको तन-मन से अपना जीवन साथी मानकर इसके परिवार को भी अपना समझिए ।उनकी अच्छाई बुराई को भी अपना समझें। “
फिर पंडित जी निकिता की तरफ देखकर बोले…”और उसी तरह बहु रानी, भले ही आपकी जिद और विश्वास पर आपका दोनों का रिश्ता दोनों पक्ष ने कबूल कर लिया है तो आप भी इस रिश्ते का सम्मान करेंगी। अपने पति के साथ पति के माता-पिता और पूरे परिवार ,उनके पूरे समाज का इज्जत करेंगी ।
यह रिश्ता पीढ़ी दर पीढ़ी एक रीति एक रिवाज बन जाती है। आप जो करेंगी वही आपके बच्चे आपसे सीखेंगे और उनसे उनके बच्चे। इसलिए थोड़ा प्यार, थोड़ी तपस्या थोड़ा प्यार थोड़ा लड़ाई थोड़ा झगड़ा सब जरुरी है!
वह हंसते हुए बोले”मैं उम्मीद करता हूं कि शुभ विवाह के इन सारे रीति रिवाज का सम्मान आप दोनों करेंगे।”
यह सुनकर अरुण ने अपनी पत्नी निकिता का हाथ और जोर से थाम लिया” मैं तो तैयार हूं। आपको पता है कि मुझे शादी के लिए कितने पापड़ बेलने पड़े। पापा तो बिल्कुल ही तैयार नहीं थे। वह मुझसे रिश्ता तोड़ने के लिए तैयार थे मगर मां के दबाव और दीदी के दबाव में आकर उन्होंने यह रिश्ता मान लिया। मैं उनकी इज्जत करता हूं और दिल से आभार व्यक्त करता हूं क्योंकि मेरी जिंदगी में निकिता के अलावा और कोई भी नहीं था।
और फिर निकिता ने मेरे लिए 5 साल इंतजार किया जबकि वह भी अच्छी नौकरी कर रही है तो उसे लड़कों की कोई कमी नहीं थी मगर उसने मेरा इंतजार किया। मेरे लिए यह बहुत बड़ी बात है।”
नई नवेली दुल्हन निकिता अरुण की तरफ देखकर धीरे से मुस्कुरा दी और अपना सिर झुका लिया।
थोड़ी देर बाद जब शादी संपन्न हो गई विदाई का मुहूर्त निकाला गया।
शुभ मुहूर्त में अभी कुछ समय था। निकिता और अरुण दोनों को आराम करने के लिए भेज दिया गया
अरुण लक्ष्मीकांत जी का छोटा बेटा था। उससे बड़ी एक बहन थी और एक छोटी। उसने अपनी मर्जी से निकिता को पसंद कर लिया था।इसमें निकिता का कोई खास कसूर नहीं था।बस वह गैरजातिय थी और अरुण के पिता लक्ष्मीकांत जी एक कट्टर रूढ़िवादी परिवार से थे।
उनका कहना भी गलत नहीं था अगर घर का बेटा गलत कदम उठाता है तो बाकी बच्चों को रोकने टोकने का मतलब नहीं। घर में एक जवान छोटी बहन मौजूद थी। अरुण के इस कदम से घर पर नकरात्मक प्रभाव पड़ता।
लक्ष्मीकांत जी और सुधा दोनों ने अरुण को बहुत समझाने की कोशिश किया मगर अरुण था कि जिद पर अड़ा हुआ था।
अरुण के साथ निकिता कई बार उसके घर भी आई थी। उसमें उसे रिजेक्ट करने के लायक कुछ भी नहीं था। बहुत ही अच्छी लड़की थी, गुण संपन्न थी लेकिन कमी यही थी कि वह अरुण दोनों दो अलग-अलग जाति के थे।
लक्ष्मीकांत जी को यही समझने में पूरे पांच साल लग गए। लेकिन अरुण समझने के लिए तैयार ही नहीं था।
अब उनकी शादी हो चुकी थी। निकिता बहुत खुश थी। अपने घर से विदा होकर वह अपने ससुराल जा रही थी।
पंडित जी के बातें अपने आंचल में गांठें बांधकर।
जैसे निकिता अपने ससुराल पहुंची, सुधा जी आरती का थाल लेकर उसके स्वागत में खड़ी थी।
आरती उतारने के बाद उसका हाथ पकड़ कर गृह प्रवेश कराने के बाद उन्होंने निकिता से कहा “बिटिया, अब यह घर तुम्हारा है। इस घर की लक्ष्मी तुम हो। कोने कोने में खुशी फैला देना। जो पंडित जी ने कहा उसे जरूर मानना ।देखना थोड़े दिन में यह सब जो गिले शिकवे हैं खत्म हो जाएंगे।”
“मां ,मैं अरुण का हाथ थाम कर आई हूं उसकी जीवन संगिनी बनकर। मैं आपको निराश नहीं करूंगी। मां, जैसे आप अरुण की मां हैं वैसे ही मेरी भी।बस अपना हाथ मेरे सिर से कभी मत हटाइयेगा।”
यह कहकर निकिता सुधा जी से लिपट गई।
सुधा जी भी उसे अपने गले से लगाकर फूट फूट कर रो पड़ी और उसके सिर पर हाथ फेरते हुए बोली “हमेशा बच्चे गलत नहीं होते, कभी मां-बाप भी गलत हो जाते हैं। बेटा इस बार तुम्हें हक है कि तुम मुझे और अपने पापा को गलत साबित कर देना। भगवान तुम्हें हमेशा खुश रखे। तुम्हारा सौभाग्य बना रहे। तुम्हें सारा सुख मिले बिटिया, जीते रहो हमेशा फूलों फलों।”
“हां मां अब मैं आपकी बहू हूं। आप जो कहेंगी मैं वही करुंगी।”निकिता ने झुक कर अपनी सासु मां के पांव छूकर बोली।
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प्रेषिका -सीमा प्रियदर्शिनी सहाय
नई दिल्ली
साप्ताहिक विषय # शुभ विवाह के लिए
पूर्णतः मौलिक और अप्रकाशित रचना बेटियां हेतु