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आखिरकार – डॉ उर्मिला सिन्हा

गोपू निढाल होकर बिस्तर पर जा गिरा।बुरी तरह थक गया था। अन्दर से वार्तालाप , ठहाकों का मिला-जुला शोर मानों उसे चिढा रही थी। आधुनिक कोठी के पिछवाड़े सेवकों के लिए बने हुए छोटे-छोटे कमरे। जिसमें गोपू अपनी मां के साथ रहता है। मां के आंचल का सुख उसे यहीं मिलती है। थका-हारा जब वह लौटता है तो यह सीलन भरा कमरा ही उसे सुकून पहुंचाता है।इसी कमरे में उसका बचपन बीता। किशोर उम्र की भावुकता भरे दिनों में जब छोटी छोटी बातें उसे बुरी तरह उद्वेलित करती थीं ; कोई घटना व्यथित करती थी तब वह इसी कमरे में घंटों आंसू बहा मन-ही-मन अपना दुख-सुख बड़बड़ाया करता था।

   युवावस्था में क़दम रखते ही वह संजीदा हो चला था। भले-बुरे की कुछ-कुछ पहचान होने लगी थी।

  बाल्यावस्था की धुंधली तस्वीर उसकी आंखों में उभरने लगी है।”मां उसके फटे-पुराने कपड़े धो सुखा रही हैं। उसके बालों में तेल चुपड़ कंघा कर रही हैं।उसे बात-बात पर सीने से लगा माथा चूम रही हैं।”

   भोला गोपू मां के इस व्यवहार से चकित। मां को क्या हो गया है।

  “मां , तुम रोती क्यों हो?”

“तुम्हें किसने मारा ….!”गोपू रूआंसा हो उठता।

   “किसी ने नहीं जिसे ईश्वर ने मारा हो उसे भला कौन मारेगा?”

   “ईश्वर कौन है मां , उसने तुम्हें क्यों मारा …”!वह अपनी मां के खातिर ईश्वर से भी टक्कर लेने के लिए उद्यत हो जाता।

  “ईश्वर हम-सब के भाग्यविधाता हैं , पालनकर्ता “मां समझाती।

  “फिर तुम रोती क्यों हो ….?’बालक मां के आंखों में आंसू नहीं देख सकता था।

  मां झट आंखें पोंछ उसे अपने हृदय से लगा लेती। इधर उधर देखती कोई देख तो नहीं रहा है।





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   कहीं मामी या उनके बच्चों की नजर पड़ गई तो तीखे व्यंग्य वाणों से उनका जीना हराम हो जायेगा।

  मां पिछवाड़े उपले पाथ रहीं थी , वहीं इशारे से गोपू को बुलाकर बोली”बेटा , तुम्हें बहुत बड़ा आदमी बनना है अपने पापा की तरह। अतः मन लगाकर पढाई करना।”

“पापा की तरह “…कहते कहते मां की गर्दन तन गई । आंखों में एक विशेष चमक उभर आया।

 “तुम्हें आगे की पढ़ाई के लिए उनके पास शहर जाना होगा ..”।

   “मैंने तो आजतक उन्हें देखा ही नहीं ।तुम भी चलो । मैं अकेले नहीं जाऊंगा।”

    “मैं नहीं जा सकती , मेरे लाल ,तुम्हारे पापा बहुत बड़े आदमी हैं , बहुत बड़े विद्वान ।उनका दिल नहीं दुखाना , उनकी बातें मानना।”

    दस साल का नन्हा गोपू मां की इन बड़ी-बड़ी बातों का मर्म समझने में विफल रहा। मां रोती जाती और अपनी मन की कहती जातीं। बातें उसके समझ के बाहर की थी ।मगर मां इतना रो क्यों रही हैैं इसके पीछे कोई न कोई गम्भीरता छिपी हुई है यह सोच गोपू का बाल हृदय द्रवित हो उठा। मां का आंचल आंसुओं से भींग गया।

   “मां मैं तुम्हें छोड़कर कहीं नहीं जाऊंगा ।वह मां से लिपट कर रोने लगा । दोनों एक-दूसरे से लिपटे देर तक सिसकियां लेते रहे।

   मामा सिर झुकाए हुए,मामी हाथ नचा -नचाकर मामा को ऊंच-नीच समझा रहीं थीं ,”इतने रसूखदार हैं ननदोई जी तो क्या अपने बेटे का भार नहीं उठायेंगे । मैं तो कहती हूं ननदजी को भी लेते जाओ । आखिर हम कब तक इनका बोझ उठायेंगे। हमारे भी बाल-बच्चे हैं।”

   गोपू अपने मामा के साथ जब अपने पिता के यहां पहुंचा तो भौंचक रह गया। इतना शानदार बंगला। आदमी जन , शान-शौकत , चहल-पहल और यह आकर्षक व्यक्तित्व का स्वामी उसका पिता…!

   मामा ने अटकते हुए बात शुरु की,”यह गोपी चन्द्र —गोपू है आपका बेटा ,अब यह बड़ा हो रहा है ।इसको पिता की छत्र छाया, देख-रेख की जरूरत है …” झनझना झन …झन;गोपू के पिता जी चौंक उठे। विस्मृत कटु स्मृतियां एक एक कर आंखों के समक्ष झलकने लगी। उन्होंने नजर उठाकर देखा ,बेटा उन्हीं का प्रतिरूप है । कद-काठी, चेहरा -मोहरा में अप्रत्याशित समानता।

      उनके मुंह से बोल न निकले। मामा गोपू को छोड़ जा चुके थे। बौखलाया सा अपने पिता का मुख निरेखता किशोर वय गोपू चुपचाप खड़ा रहा।

   पिता के आदेश पर एक सेवक गोपू को अपने साथ भीतर ले गया। इतना बड़ा घर , इतनी साज-सज्जा।सेवक ने उसके नहाने धोने का प्रबन्ध किया। फिर सुस्वादु भोजन ले आया।

  “खा लीजिए!”

  “जी …!”उसे मां की याद आ गई।वह कुछ भी रूखा सूखा उसके लिए बचाकर रखतीं उसे बिना खिलाये खाती नही थी।





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    “मां, मां…..’उसे बिस्तर पर लेटते ही नींद आ गई। कहां पिता की सम्पन्नता और मां की विपन्नता।

      इधर गोपू के आने से प्रोफेसर के हृदय में तूफान सा उठने लगा था।

  वे मेधावी थे , रिसर्च कर रहे थे। साधारण किसान पिता ने उनकी पढ़ाई में कोई कसर नहीं छोड़ी थी।उनका विवाह भी पिता ने ही करवाया था। लड़की औसत घर की कम पढ़ी-लिखी रूपवती कन्या थी।जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार कर लिया था।

     इसी बीच उनके पिता और ससुर के बीच किस बात को लेकर ठनी वे जान न पाए। बात लड़ाई से मर -मुकदमा और फिर रिश्ता तोड़ने तक पहुंच गया।

  “अब यह मेरी बहू नहीं । तुम्हारा कोई सम्बन्ध इस कपटी के बेटी से नहीं।”

   “पर पिता जी हुआ क्या..…..? प्रोफेसर ने जानना चाहा।

  “तुम्हें मेरी सौगंध, तुम्हारे ससुर ने मुझे धोखा दिया है , जैसा बाप वैसी बेटी ….”पिता क्रोध से थर-थर कांप रहे थे।

    उन्होंने वास्तविकता जानने की बहुतेरी कोशिश की। मनाने का प्रयत्न किया। गर्भवती पत्नी से मिलना चाहा लेकिन वहां उसके ससुर आड़े आ गये ।

  “मेरी बेटी तुम्हारे साथ नहीं जायेगी …”!

  “मेरी पत्नी है , मां बनने वाली है ..”उसने चिरौरी की।

   किन्तु मगरूर ससुर ने उसे बेइज्जत कर निकाल दिया।

     दोनों ओर से अनाप-शनाप,अनर्गल आरोप प्रत्यारोप । पत्नी से भी मिलना नहीं हो पाया।पिता और ससुर के दोहरे चेहरे सामने आ रहे थे।एक तरफ दांतकाटी दोस्ती और दुसरी ओर जानी दुश्मनी।

   मामला शांत होने पर देखेंगे.. व्यथित हृदय से वापस आ गए। फिर विशेष प्रशिक्षण हेतु विदेश चले गए । यहां आकर पठन-पाठन में लग गए। पत्नी बच्चे की कोई खबर नहीं मिली क्योंकि वे सभी वहां से कहीं दूसरी जगह चले गए थे।

   आज गोपू को देख प्रोफेसर की चेतना लौटी है। पत्नी की याद आई।

  “तुम्हारी मां कहां रहती हैं?”

बेटे के मुंह से सम्पूर्ण वृतांत सुन ले दहल गये। दोनों घरों के बुजुर्गो की हठधर्मिता , मुकदमे बाजी में गोपू के नाना अपना सबकुछ हार गए । खेत-खलिहान , घर कर्ज चुकाने में सब-कुछ बिक गया । फांसी लगा आत्महत्या कर ली।विवश गोपू के मामा सभी के साथ दूसरी जगह चले आए। जीविका के लिए  औरतें लोगों के घरों का काम और मामा बाहर का छोटा मोटा काम करने लगे। किसी सज्जन ने दया कर अपना सर्वेंट क्वार्टर रहने के लिए दे दिया।

  “बहन, ऐसा कब-तक चलेगा ..”भाई की उदासी गोपू की मां को चीर देती।

   “न बाबा रहे ,न ससुर जी ….गोपू के पिता जी का कोई संदेशा नहीं …”आंखें सावन भादो बन जाती।

   इसी बीच किसी पूर्व परिचित ने गोपू के पिता की जानकारी दी ,”वे बड़े प्रोफेसर हो गये हैं । उनके निर्देशन में क‌ई शोध , पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। बड़ा नाम है उनका।”

“उन्होंने दूसरी शादी कर ली होगी?” 

“ना…ना, ऐसा सुनने में नहीं आया …”

अब मामा-मामी और मां को आस बंधी। परिणाम कि मामा गोपू को उसके पिता के पास पहुंचा आये।

   “मां, मां …..देखो पिता जी आये हैं ..!”

 प्रोफेसर साहब स्तब्ध …

   पत्नी को फटेहाल स्थिति में देख प्रोफेसर को अपने आप पर शर्म आई। इस के लिए अपने पिता के साथ वे भी जिम्मेदार हैं।

   “आप लोगों को लेने आया हूं । विदेश से वापस आ कर मैं आपसभी से मिलने पहुंचा था लेकिन न आप लोग मिले और न आपका पता ठिकाना। मैं अपनी ओर से अपने पिता की ओर से क्षमाप्रार्थी हूं “उन्होंने हाथ जोड़ लिए।

   मानिनी पत्नी को मानना पड़ा।देर आए दुरुस्त आए। यह बुजुर्गो की हठधर्मिता का दुष्परिणाम। सब-कुछ रहते हुए भी कष्ट झेलने की विवशता।अश्रुधार बह निकले।

  आखिरकार गोपू और उसकी मां के दुःख भरे समय बीते। उसके पापा के सहयोग से मामा के भी  दिन बहुरे…!

   आज पिता का दोहरा चेहरा सामने आया जो  बुरा नहीं अत्यंत  भला था।

#दोहरे_चेहरे 

  सर्वाधिकार सुरक्षित मौलिक रचना-डॉ उर्मिला सिन्हा©®।

रांची झारखंंड

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