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बहु का दर्द – पूजा मनोज अग्रवाल

मम्मी जी सुनिए ,,,”ये टिफिन पैक किया है ,,,आप पार्क मैं टहलने जा रही है । तो जरा जाते हुए यह टिफिन नीचे वाले फ्लोर पर सुशीला आंटी को दे दीजियेगा और कुछ जान पहचान कर लीजिएगा ।

सुशीला,,,? बहु ,,कौन है यह सुशीला,,,?

मम्मी जी ,अभी कल ही मैं सुशीला आंटी से मिली , उनका परिवार अपनी सोसाइटी के तीसरे फ्लोर पर शिफ्ट हुआ है ।

अच्छा बहु तुम सही कह रही हो ,,,, ये लोग नए- नए आएं हैं ,,उनकी मदद के साथ – साथ पड़ोसियों से थोड़ी जान- पहचान भी हो जाएगी । यह कहकर सिया की सास माधवी जी टिफिन लेकर सीढ़ियां उतर गई ।

माधवी जी ने सुशीला जी के घर की डोर बेल बजाई ।

अंदर से सुशीला जी दरवाजा खोलने आई और माधवी जी को देखकर नमस्कार किया । माधुरी जी ने जान पहचान बढ़ाने के उद्देश्य से अपना परिचय दिया और कहा ,” हम ऊपर वाले फ्लोर पर रहते हैं मेरी बहू सिया कल आप से मिली थी , उसने ही यह आपके लिए खाना भेजा है,, और शिफ्टिंग के दौरान आपको कुछ मदद चाहिए तो आप बेझिझक हम से कह सकती हैं ।”

दोनों ही पड़ोसने एक दूसरे से मिलकर बहुत खुश हुई । दोनो की बहुएं अपने कामों में व्यस्त रहती ,,,परंतु माधवी जी और सुशीला जी प्रतिदिन मिलती और आपस में खूब बातें करती । कुछ ही समय में दोनों बहुत अच्छी सहेली बन चुकी थी ।

दोनों सहेलियां उम्र के उस पड़ाव पर थी कि घर की जिम्मेदारियों का बोझ भी नहीं था । इसलिए उनका अधिकतर समय भजन – कीर्तन ,पूजा-पाठ में बीत जाता था ।

एक बार माधवी जी सुशीला जी के यहां गईं,,, तो उन्हें महसूस हुआ कि आज उनकी सहेली बहुत उदास थी । पूछने पर उन्होंने बताया कि काम ना करने के लिए उनकी बहू नव्या उन्हें ताने मारती है । उनकी बात सुनकर माधवी जी को बहुत दुख पहुंचा ,,,परंतु दूसरों के घर के मामले में वह क्या ही कर सकती थी ।

वह बुझे मन से घर वापस आ गई और अपनी बहू सिया से उनके घर का सब हाल कह सुनाया ।




एक बार जो घर की बात बाहर गई ,,,तो अब तो यह रोज की ही बात हो गई । दोनों सहेलियां एक साथ उठती बैठती और सुशीला जी के घर की हर दिन की कहानी माधवी जी अपनी बहू सिया को सुनाती ।

सिया भी रोज-रोज की इस मुसीबत से तंग आ चुकी थी ।

एक दिन रविवार को सिया अपने घर का राशन लेने के लिए पास के ही एक स्टोर जा रही थी तो उसे लिफ्ट में नव्या भी मिली ।

अरे नव्या तुम ,,,कैसी हो ?

मैं बिल्कुल ठीक हूं,,, तुम बताओ ,तुम कैसी हो?

नहीं नहीं,,, सब ठीक ही है ।

नहीं नहीं क्या,,,कोई तो बात है,,।

जब तुम मुझे पहले मिलती थी तो इतनी उदास नहीं दिखती थी । परंतु आज मुझे तुम कुछ उदास जान पड़ रही हो अगर तुम्हें कोई परेशानी है तो तुम मुझसे शेयर कर सकती हो ।

अब सिया की बारी थी उसने कहा ,” अच्छा नव्या एक बताओ ,,,? तुम्हारी सास का व्यवहार तुम्हारे प्रति कैसा है,,,?

ऐसा क्यों पूछ रही हो सिया,,?

मेरी सास तो मां जैसी हैं,,, मुझे उनसे कोई परेशानी ही नहीं है,,। बस कल मेरी बड़ी ननद की डिलिवरी के लिए मम्मी जी इंदौर जा रही हैं सोच रही हूं,,, मम्मी जी इतनी बड़ी जिम्मेदारी कैसे निभा पाएंगी,,?

सिया अपने कानों पर विश्वास ना कर पा रही थी । इधर सिया की सासू मां तो रोज एक नई ही कहानी सुना रहीं थी ।

आज एक बार फिर माधवी जी सिया से बोली ,,,” देखो तो यह नव्या कितनी सीधी सादी लगती है ,,इस बुढ़ापे में अपनी बूढ़ी सास से काम कराते हुए भला शर्म नहीं आती उसे,,,?

सिया को यह सुनकर अच्छा ना लगा था । अगर अपने ही घर में सास कभी कोई छोटा मोटा काम कर लेती है तो इसमें हर्ज ही क्या है ,,,?

नव्या से ज्यादा मिलना तो कभी नहीं हुआ,,,। हां एक दो बार कभी लिफ्ट में आते जाते उससे मुलाकात हो जाया करती थी ।




अगले दिन रविवार था हमेशा की तरह सिया को आज भी पास वाले मार्ट से हफ्ते भर का राशन लेने जाना था जैसे ही घर से निकली तो सीढ़ियों में नव्या भी मिल गई ।

हेलो नव्या ! कैसी हो तुम,, और कहां रहती हो कभी दिखाई ही नहीं देती ?

मैं ठीक हूं सिया ! बस सिया क्या बताऊं तुम्हें बस ऑफिस और घर के कामों में ही समय व्यतीत हो जाता है,, बिल्कुल अपने लिए भी समय नहीं निकाल पाती हूं ?

बात करने के दौरान सिया का ध्यान नव्या के हाथों पर चला गया । उसके दोनों हाथों की उंगलियां बहुत सूजी हुई थी ।

सिया ने पूछा ,”नव्या तुम्हारे हाथों में इतनी सूजन क्यों है,,,?”

अरे बस ! यही तो दिक्कत है मुझे आर्थराइटिस है , और मैं घर का छोटा मोटा काम भी बमुश्किल ही कर पाती हूं । और पिछले कुछ दिन से तो तकलीफ इतनी बढ़ गई है कि सब्जी आदि कटवाने की सहायता मम्मी जी से लेनी पड़ रही है ।

नव्या की बात सुनकर मैं दंग रह गई थी । जब सुशीला जी अपनी बेटी की डिलीवरी के लिए उसकी मदद करने उसके घर भी जा सकती हैं । परंतु अपने ही घर रह कर अपनी बहू की मदद करने में उन्हें बुरा लगता है ।

सुशीला जी का असली चेहरा सिया की आंखों के सामने था ,,, जैसी वह दिखती थी,,,ऐसी तो वह बिल्कुल भी नहीं थी,,। रोज रोज उनकी बेकार की बातें सुनने से उसकी अच्छी भली सास का व्यवहार भी परिवर्तित हो गया था ।

और दूसरी ओर सुशीला जी का दोगला व्यक्तित्व बेटी की जरूरत को तो समझ पा रहा था ,,परंतु बहु का दर्द न ही उन्हें समझ आ रहा था और न ही उसका दर्द उनके मतलबी हृदय को पिघला पा रहा था ।

#दोहरे_चेहरे

स्वरचित मौलिक

अप्रकाशित रचना

पूजा मनोज अग्रवाल

दिल्ली

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