शिवानी – पूनम सारस्वत : Moral Stories in Hindi

शिवानी को दिखावा इतना पसंद था कि वह चाहे कम खा सकती थी लेकिन फैशन के लिए खर्च करने को हर समय तैयार रहती । जब भी अपनी किसी सखी को किसी खास ड्रेस में देखती तो उसे तब तक चैन न आता जब तक कि उससे भी अच्छी ड्रेस वह न ले लेती ।

कई बार उसकी मां ने समझाया बेटा फैशन करना अच्छी बात है लेकिन होड़ करना नहीं, हमें उतने ही पैर पसारने चाहिए जितनी अपनी चादर हो।

किसी के पास क्या है इससे हमें फर्क नहीं पड़ना चाहिए ।

हमें अपनी आवश्यकता और पॉकेट के अनुसार ही सामान खरीदना चाहिए पर वह न सुनती।

उसकी यही आदत शादी के बाद भी बदस्तूर जारी रही।

उसका प्रेमी रवि जो कि अब उसका पति भी है,समझाने की बहुत कोशिश करता पर उसे न सुनना था न ही समझना था।

इस बार उनकी शादी की पांचवीं एनिवर्सरी थी तो उसने जिद पकड़ ली कि वह इस बार तो आइफोन ही गिफ्ट में लेगी।

नए फ्लैट ,गाड़ी व अपने फोन की ईएमआई के साथ साथ शिवानी की नई नई फरमाइशें पूरी करते हुए,रवि बहुत ज्यादा बचत करने की स्थिति में नहीं था, फिर भी वह कुछ रुपए हर महीने ही इमरजेंसी फंड के लिए बचाता था। बस इसी को खर्च कराने की जिद पर शिवानी अड़ी थी।

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उसका कहना था कि ये फंड तो फिर से इकठ्ठा हो जाएगा लेकिन एनिवर्सरी तो साल में एक बार ही आती है और इसलिए उसे न केवल अपना मनपसंद गिफ्ट ही चाहिए बल्कि वह सोसायटी की अपनी मित्रों को बुलाकर एक शानदार पार्टी भी देगी आखिर वह अपनी खुशियों से समझौता क्यों करेगी?

शिवानी की जिद के आगे , शादी की सालगिरह पर आपस में कलह न हो इसलिए रवि समझौता करने को तैयार हो गया और उसने वह इमरजेंसी फंड पार्टी और गिफ्ट में खर्च कर दिया।

शिवानी बहुत खुश थी उसकी सखियों ने उसकी ड्रेस, ज्वैलरी और उसके द्वारा की गई आवभगत की बढ़-चढ़कर तारीफ की ,ये अलग बात है कि सोसायटी गेट तक पहुंचते पहुंचते उनमें से कुछ ने शिकायत की कि यार और सब तो ठीक है लेकिन डेजर्ट के नाम पर कुछ खास नहीं था।

शिवानी को इतना तो ध्यान रखना ही चाहिए था।

शिवानी बहुत खुश थी और रवि भी कि चलो सब ठीक-ठाक निबट गया ,बस वह मन ही मन मना रहा था कि कुछ महीनों तक कुछ भी इमरजेंसी न आए अन्यथा उसके पास एक पाई नहीं बची है और इसी फ़िक्र में वह अंदर ही अंदर घुल रहा था।

पर ऊपर वाले को तो कुछ और ही मंजूर था ।

अगले महीने ही शिवानी प्रिगनेंट हो गई।

अब तो खुशी के मारे उन दोनों के ही पैर जमीन पर नहीं पड़ रहे थे। पहली बार माता पिता बनने के बारे में सोच सोचकर ही दोनों आनंदित थे ।

अब खर्च और बढ़ गए थे तो इमरजेंसी फंड के नाम पर रवि कुछ भी नहीं बचा पा रहा था और तीसरे महीने ही शिवानी की तबीयत अचानक ही बहुत खराब हो गई ।

उसे एडमिट करना पड़ा।

अब समस्या यह थी कि अस्पताल के खर्च के लिए पैसा आए तो आए कहां से?

इधर डॉक्टर्स ने बताया कि ऑपरेशन करना होगा क्योंकि अंदर कॉम्प्लिकेशन के चलते ब्लीडिंग शुरू हो गई है जिससे मां और बच्चे दोनों को खतरा है और ऐसे में पहले मां को बचाना ही , प्राथमिकता होगी।

रवि ने शिवानी के गहने बेचकर जैसे तैसे पैसे का इंतजाम किया और फिर ऑपरेशन कराया, जिससे शिवानी की जान बच सकी।

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जब शिवानी को होश आया तो जाकर रवि की जान में जान आई। हालांकि वह बच्चे को खोने की खबर से अंदर से टूट चुका था और कहीं न कहीं वह इसके लिए शिवानी के गैरजिम्मेदाराना व्यवहार को भी दोषी मान रहा था जो कि वास्तविकता भी थी,पर वह चुप था।

घर आकर धीरे धीरे जब शिवानी के आगे सारी बातें आईं तो उसे अपनी भूल का एहसास हुआ। 

अब उसे समझ में आया कि दिखावा करने की उसकी प्रवृत्ति की वजह से स्वयं उसकी ही जिंदगी के लाले पड़ गए। वो तो रवि का प्यार सच्चा था जो इतना सबकुछ होते हुए भी उसने शिवानी के लिए जी जान लगा दी और उसे मौत के मुंह से वापस छीन लाया ।

शिवानी ने रवि के हाथों को अपने हाथों में लेकर उससे माफी मांगी और वायदा किया कि आगे से वह कभी भी अपनी चादर से अधिक पैर नहीं पसारेगी।

रवि खुश था कि परेशानी आई तो आई पर अब उसका प्यार ,उसकी शिवानी वास्तव में जिम्मेदार बनकर उभरी है।

पूनम सारस्वत 

#दिखावे की जिंदगी

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