घमंड तो रावण का भी नहीं चला था – सुषमा यादव

एक छोटे शहर में किरायेदारों के लिए दो, दो कमरों का मोहल्ला बसाया हुआ था। मकान मालिक बहुत अमीर थे, उन्होंने  कालोनी का नाम अपनी पत्नी के नाम से रखा था।रमा सदन।

रमा जी बहुत ही कठोर, और कड़क मिजाज वाली घमंडी महिला थीं। उन्हें अपने तीन बेटों और दो बेटियों पर बहुत घमंड था। सबसे ज्यादा वो अपने बीच वाले बेटे रोहन से बहुत प्यार करती थीं। वो उनका लाड़ला, बिगड़ैल बेटा था। उसकी कोई भी शिकायत वो सुन नहीं सकतीं थीं।

बेटियां तो खैर अपने भाइयों की देखभाल करने और घरेलू कार्य करने के लिए ही थीं।

उनके सदन में एक मध्यम वर्गीय परिवार अपने एक बेटी और दो बेटे के साथ रहने आया। बेटी बड़ी थी, दसवीं कक्षा में थी।बेटे छोटे थे।

रमा जी रात में कई फेरे मोहल्ले के लगातीं, किसकी बिजली जल रही है,कौन कितने बजे आ रहा है।कौन जा रहा है।सबकी निगरानी करतीं और सुबह सबके सामने खूब धुलाई करतीं।सब उनसे बहुत डरते थे।

उनको किराया माह के प्रथम सप्ताह में ही मिल जाए वरना खैर नहीं।

एक दिन नये किरायेदार की बेटी सपना ने अपनी मां से कहा, अम्मा, वो रोहन स्कूल से आते जाते मेरा पीछा करता है और गंदे गाना गाता है।

मां माला ने उसकी शिकायत मकान मालकिन रमा जी से की।

सुनते ही वो गुस्सा कर बोलीं, खबरदार मेरे बेटे को कुछ कहा तो, मुझसे बुरा कोई नहीं होगा।मेरा बेटा ऐसी ओछी हरकत कर ही नहीं सकता।

बेचारी माला चुपचाप चली आई और बेटी को उससे बचने की सलाह दी।

एक दिन जब सपना स्कूल से आ रही थी तो रोहन ने उसका रास्ता रोक लिया, फिर पीछे से उसका दुपट्टा खींच लिया, किसी तरह वो अपना दुपट्टा छुड़ा कर रोते हुए भागी। मां से सब बताया।

मां माला गुस्से में गई और रमा जी से सब बताया,पर रमा को अपने बेटे पर अंधविश्वास था,अपना रौद्र रूप दिखाते हुए बोलीं, हद कर दिया तुम लोगों ने। अरे, अपनी लड़की संभाली नहीं जाती और मुंह उठाकर चली आती हो उलाहना लेकर।रहना हो रहो चुपचाप, वरना घर खाली कर दो।यह कहते हुए गुस्से में जिस लोटे से सूरज और तुलसी को अर्घ्य देने जा रहीं थीं,उसी से अपने पैरों में जल उड़ेल कर लोटा फेंक दिया।

माला ने यह देखकर कहा,किस बात पर इतना घमंड है आपको।

अरे, धरती पर ही रहिए, आसमां पर मत उड़िए।

घमंड तो रावण का भी नहीं चला था,आप किस खेत की मूली हैं।

हम गरीब जरूर हैं पर हमारा भी आत्म सम्मान है, हमारी भी इज्जत है,कह कर आंसू पोंछते हुए माला चली गई।

एक महीने बाद रमा जी के घर में हाहाकार मचा हुआ था। खूब रोने, चिल्लाने की आवाजें आ रही थी। सब चाल वाले भागे, क्या हुआ ?  इतना कारुणिक रूदन,सबके आंखों से आंसू बहने लगे। रमा जी अपना सिर पीट पीट कर बिलख रहीं थीं।अपना आपा खो चुकी थीं।

कारण पूछने पर पता चला कि रोहन को रमा बाई बीच बीच में अपने गांव फ़सल का पैसा उगाहने और बाग बगीचे की देखभाल करने भेज देतीं थीं। वह कई कई दिन गांव में अपने मकान में पड़ा रहता था।

उसकी शादी अगले माह होने वाली थी। वो वहीं गांव गया था। वहां की एक लड़की के साथ उसका संबंध बन गया था।अब वो गर्भवती हो गई है। ये जानकर गांव वालों ने उसे घेर लिया, मारने पीटने लगे। भागकर किसी तरह  अपने घर में घुसकर उसने दरवाजा बंद कर लिया। गांव वालों ने दरवाजा पीटना शुरू किया, निकल बाहर लफंगे, वरना दरवाजा तोड़ डालेंगे। इतने में किसी ने कहा, अरे, पुलिस बुलावो, इसके परिवार वालों को जाकर ले आओ।

ये सब सुनकर रोहन घबरा गया। जब लोग दरवाजा तोड़ 

कर अंदर गये तो सबकी बोलती बंद हो गई।सब आंखें फाड़कर छत से लटके रोहन को देख कर हतप्रभ रह गए। रोहन फांसी पर झूल रहा था।

यह सुनकर सब सांत्वना देने के बजाय चुपचाप खिसकने लगे,माला के साथ ही सब कहने लगे,काश, समय रहते उस लड़के पर अंकुश लगा देती तो आज ऐसी नौबत ना आती।

सारे गांव और शहर में इनकी इज्जत,मान सम्मान की धज्जियां उड़ रहीं हैं। 

सही कहा गया है,” घमंड तो भगवान का आहार है। हमें कभी भी किसी चीज का घमंड नहीं करना चाहिए। ना ही किसी को अपमान जनक बातें कह कर उसका दिल दुखाना चाहिए।

सुषमा यादव प्रतापगढ़ उ प्र

स्वरचित मौलिक अप्रकाशित

# घमंड

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