बेटा..! अगले महीने तेरी बुआ के यहां जाना है… रुचि की शादी जो है…और हमें कुछ अच्छा भी देना पड़ेगा… एक सोने का..?
रोहित: सोने का..? मां..! कहने से पहले घर की हालत भी देख लीजिए… अभी अभी पापा के इलाज में इतने रुपए खर्च हो गए… उन सब के कर्ज शुरु ही हुए हैं.. ऐसे में शादी..? मां..! हम पापा के तबीयत का बहाना बना देंगे और शादी पर नहीं जाएंगे… और जो जाएंगे ही नहीं, तो तोहफे का तो सवाल ही नहीं उठता..!
पार्वती जी: बेटा..! यह कोई पड़ोसी की शादी नहीं है, तेरी बहन की शादी है.. हम उपस्थित हो या ना हो… तोहफा तो फिर भी जाएगा.. आखिर रुचि के मामा घर की बात है…
रोहित: तो एक काम करिए.. मुझे बेच डालिए और उस पैसे से रुचि को जेवर चढ़ा दीजिएगा…
यह कहकर रोहित गुस्से में वहां से चला गया..
उसके जाते ही पार्वती जी अपने पति बलराम जी से कहती है… यह आजकल के बच्चे, जब देखो तब रुबाब में ही होते हैं… रिश्ते नाते की तो इन्हें कोई कद्र ही नहीं… पता नहीं भगवान ने ऐसे पुरुष को मेरे गर्भ में ही क्यों दिया..? सच ही कहते हैं सभी, बच्चे बड़े होने के बाद, मां-बाप को कहां पूछते हैं..? और भी बहुत कुछ भला बुरा कहा उन्होंने…
कुछ दिनों बाद, रोहित की पत्नी तनु उससे कहती है… प्रिया अपने पति के साथ यहां आ रही है… वह अपने हनीमून से लौट रही है, तो दिल्ली एयरपोर्ट पर ही उतरेगी… मैंने ही उससे कहा.. जब दिल्ली आ ही रही है, तो मुझसे मिलती जाना…
रोहित: हां.. तो ठीक है कब आ रही है साली साहिबा..?
तनु: परसों… वह पहली बार आ रहे हैं.. शगुन में नए कपड़े देने होंगे… तो क्यों ना कल हम शॉपिंग..?
रोहित: शॉपिंग..? फिर से खर्च..? मुझे यह समझ में नहीं आता, यह सभी रिश्ते नाते बिना खर्च कराए अपनी रिश्तेदारी क्यों नहीं निभाते..? जब देखो यहां शगुन, वहां भेंट… किसी को किसी की हालत से कोई मतलब नहीं…
यह कहकर वह चला जाता है और तनु खुद से ही कहती है… ऐसे तो यह ठीक ही रहते हैं… पर जब भी इन्हें किसी को कुछ देना होता है.. पता नहीं इतने भड़क क्यों जाते हैं..? सबके पति अपने ससुराल में कितने भेंट लेकर जाते हैं… और एक यह पुरुष है, जो हर वक्त देने के नाम से किच किच ही करते हैं… मेरी ही किस्मत खराब है जो ऐसे पुरुष से पाला पड़ा…
मतलब रोहित घर में सबके लिए खराब ही था, यह कह सकते हैं… उसके ना तो घर से निकलने का कोई समय था, और ना ही घर में लौटने का… कोई कुछ पूछता तो वह झल्ला उठता था…
1 दिन तनु को एक फोन आता है और उसे किसी ने बताया कि रोहित आज ऑफिस में काम करते हुए बेहोश हो गया… उसे सिटी अस्पताल में भर्ती कराया गया है…
रोहित के माता-पिता और तनु दौड़ते हुए अस्पताल पहुंचते हैं… जहां उसके कमजोरी का पता सबको चलता है… कमजोरी के वजह से ही वह बेहोश हो गया था…
तनु अस्पताल में ही बैठी थी, कि रोहित का एक दोस्त पराग आकर तनु के बगल में बैठ कर कहता है… भाभी जी..! घर पर कुछ परेशानी चल रही है क्या..?
तनु: ऐसे क्यों पूछ रहे हैं भैया..?
पराग: वह भाभी.. पिछले कुछ महीनों से देख रहा हूं, रोहित लगातार ओवरटाइम कर रहा है… ना खाने की सुध, ना आराम करने का ठिकाना… पूछने पर बस जिम्मेदारी कह कर टाल देता है… अंकल के ऑपरेशन के लिए, उसने जो लोन लिया था… वह अभी चुका ही नहीं कि उसने फिर कुछ लोन के लिए अप्लाई किया है… कह रहा था कि फुफेरी बहन की शादी है और भी कुछ खरीदारी करनी है.. यह सब नहीं करने से रिश्तेदारी कहां निभेगी…? और शायद इन्हीं सब की वजह से वह बहुत चिड़चिड़ाने भी लगा हैं…
तनु के पास पार्वती जी भी खड़ी थी… यह सब सुनकर दोनों को सब कुछ समझ आ जाता है…
कितनी आसानी से हम एक पुरुष पर दोषारोपण कर देते हैं… जबकि बाहर उसकी हालत का हमें जरा सा भी अंदाजा नहीं होता… वह भी इंसान है.. वह अपनी जिम्मेदारियां बिना किसी उफ्फ के निभाता चला जाता है… कभी बेटा, तो कभी पति, कभी भाई, तो कभी पिता… सबकी जिम्मेदारियां बखूबी उठाता है… तो क्या उसके इस जज्बे को हमें सराहना नहीं चाहिए…? हमें उसकी किच किच तो दिखती है, पर वह भी तो अपने अंदर हो रही किच किच को झेल रहा होता है..
हम औरतें तो परेशान होने पर अपना दुख रोकर दुनिया को दिखा देती है… पर पुरुष..? वह तो अंदर ही अंदर घुटता है, पर बाहर एक मुस्कान को अपने होठों पर चिपकाए अपने दर्द को अपने अंदर ही दफना देता है..
खैर तनु और पार्वती सब कुछ समझ तो गए थे… पर क्या जो पहले अपने घर के इस पुरुष को कोस रही थी..? उसको अब इस मुश्किल घड़ी से उभार पाएगी..?
चलिए जानते हैं… रोहित के घर आने के बाद, पार्वती जी: बेटा..! आज से तू ना तो ओवरटाइम करेगा और ना ही कोई और लोन लेगा… हमारे पास जितना है, जो है.. उसी में हम चलेंगे.. इन सब के बावजूद, जिनको रिश्तेदारी रखना है हमसे, वह रखें, वरना हम आपस में ही खुश हैं..
तनु: हां जी..! हमारे लिए तो हमारा यह रिश्ता ही सबसे ऊपर है… और उसे दाव पर रखकर हमें और कोई रिश्ता नहीं निभाना..
रोहित: मुझे भी माफ कर दीजिए आप लोग… पता नहीं, आप लोगों को समझाने या आप लोगों से बात करने की जगह, खुद को आप लोगों से दूर क्यों कर लिया..?
फिर सभी गले मिलकर आंसू बहाने लगते हैं… शायद आंसू होते ही ऐसे हैं… खुशी हो या हो गम, कमबख्त निकल ही आते हैं..
कितना सच है ना..? यह सभी कहते हैं और जानते हैं, कि 1 बच्चे को जन्म देते वक्त एक औरत मौत के द्वार तक पहुंच जाती हैं… पर कभी कोई यह नहीं कहता, कि अपने परिवार को ऐसी हालत में देख एक पुरुष भी पल-पल डर से मरता है… बच्चे को जन्म देने की क्षमता को औरतों में भगवान ने हीं दिया है… पर इसमें एक पुरुष की क्या गलती..? वह भी तो इस रचना में भगवान के दिए हुए किरदार को ही निभा रहा होता है… सोचिएगा जरूर..
धन्यवाद
स्वरचित/मौलिक/अप्रकाशित
#पुरुष
रोनिता कुंडू