वरदान – डॉ संगीता अग्रवाल : Short Stories In hindi

“मां!मां!” क्षितिज बहुत देर से आवाज़ लगा रहा था रुचि को।

“आई बेटा! पल्लू से हाथ पोंछती वो आई,क्यों तूफान सिर पर उठा रखा है?”वो हंसती हुई बोली।

“कल सुबह आप पानी मत पीना”,वो उसे समझाते हुए बोला।

“क्यों भला? कल मेरा निर्जला उपवास है?”

“अरे नहीं मां!कल पापा का ब्लड सैंपल लेने आएगा जो वो आपके भी सैंपल ले लेगा”।

“क्यों फिजूलखर्ची करता रहता है तू,मुझे क्या होना है,भली चांगी तो हूं मैं!”

“जानता हूं मां,सारे घर का ध्यान रखते रखते,आप खुद की फिक्र करना भूल गई हैं,बचपन से देखता आ रहा हूं,कभी दादा दादी जी की सेवा में लगी रहती,कभी बुआ, ताऊ जी,और अब पापा की में, लेकिन अपनी बारी आते ही आप अच्छी हो जाती हैं।” क्षितिज ने कहा तो रुचि प्यार से उसे निहारने लगी।

“ठीक है बाबा,गुस्सा न हो पर सच में मुझे कोई बीमारी नहीं है,बेकार में पैसे डाले तूने।

क्षितिज के जाते ही ,रुचि सोचने लगी,”लगता है मेरे बाऊ जी फिर से आ गए इसके रूप मे मेरे पास,बिलकुल वैसे ही मेरा ध्यान रखता है,डांटता भी उनकी ही तरह है मुझे जैसे मैं बच्चा हूं और ये मेरा पापा।”

ये सोचते ही,रुचि का मन अतीत के गलियारों में भटकने लगा।

अपने पापा की रानी बिटिया रुचि को,मजाल है,कोई कुछ कह सके।बहुत प्रतिभाशाली थी वो और उसके बाऊ जी दिनेश चंद्र उसपर जान छिड़कते थे।जो उम्मीद उन्हें अपने बड़े बेटे दीपक से थीं वो रुचि पूरा कर रही थी।लाख समझाने पर भी दीपक का मन पढ़ने में नहीं लगता और उनके पिता दुखी रहते इस बात से जबकि रुचि बिना कहे,उनकी अपेक्षाओं पर खरी उतर रही थी।वो अपने पापा की परी बन गई थी लेकिन जाने अनजाने में ही उसका भाई दीपक,उसका दुश्मन बन गया था।वो उससे बहुत चिढ़ता था।

इसलिए पिता के जाते ही उसने बहन की शादी,उसकी मर्जी के विरुद्ध एक बिजनेस घराने में कर दी जो सिर्फ पैसे की भाषा समझते थे,रुचि के तेज दिमाग,बुद्धि से एलर्जी थी उन्हें।”औरतों को सिर्फ कपड़े गहनों से खुश रहना चाहिए इससे इतर न उनमें दिमाग होता है न कबलियत।”

इस विचारधारा वाले परिवार में,रुचि को सांसे घुटने लगी थीं पर वो मजबूर थी सब कुछ चुपचाप सहने के लिए।

कभी प्यार से,कभी रूठ कर पति  को समझाना चाहा था उसने पर पता नहीं कितना पत्थर दिल आदमी था,कुछ समझने को तैयार न रहता।दिन भर उसे ताने सुनाता,नीचा दिखाता और रात के अंधियारे में उसका पति बन जाता।

उसने सोचा,सास तो महिला हैं एक ,शायद वो उसका दर्द समझें पर वो बिलकुल मशीन बन चुकी थीं,उनकी जवानी की कड़वाहट ने उन्हें क्रूर बना दिया था।वो भी रुचि से अपने साथ हुई ज्यादती का बदला लेने में मस्त थीं।

फिर हुआ उसके बेटे क्षितिज का जन्म,रुचि को जैसे जीना का एक बहाना मिल गया।सब कुछ भूलकर,वो सच्चे दिल से उसकी परवरिश में लग गई।

पति की कड़वी बातें और सास ससुर का गुस्सा उस मासूम की तोतली बातों और स्वर्गिक स्पर्श में धुल  कर बहने लगा और

वो तन मन से जुट गई उसे एक नेक इंसान बनाने में।वो नहीं चाहती थी कि उसके पापा की हृदय हीनता का लेशमात्र भी असर उसके बेटे के स्वभाव में आए।

उसकी निस्वार्थ मेहनत रंग लाने लगी और क्षितिज एक दयालु,शांत और नेक लड़का बना।सब उसके व्यवहार से खुश रहते और वो खुश रहता अपनी मां के चेहरे पर मुस्कराहट देखकर।शायद उसकी जिंदगी का उद्देश्य बन गया था कि अपनी मां रुचि के जीवन के सारे कांटे बटोर कर फेंक देगा।

अगले दिन,उसका ब्लड सैंपल ले लिया गया था।उसके पति बड़बड़ाए भी थे, “अरे!तुम्हें क्या होना है,इतना बढ़िया खाती पीती हो,नौकर चाकर लगे हैं,ठाठ हैं तुम्हारे,तुम कब से बीमार पड़ने लगीं!”

लेकिन जवान बेटे की जिद के आगे चुप रहना पड़ा।

अगले दिन रिपोर्ट आ गई थीं।उसके पति जो हर तीसरे महीने,अपने टेस्ट्स सिर्फ इसलिए कराते थे कि कोई भी ऊंच नीच हो तो प्राचल जाते शुरू में ही,उनके टेस्ट्स तो हमेशा की तरह ठीक ही थे पर रुचि का थायराइड, शुगर लेवल और बीपी,कोलेस्ट्रॉल सब हिला हुआ था,उसे दवाई की जरूरत थी।

चौंक गई थी वो,जिंदगी में खाने पीने से भी ज्यादा तनाव से बचकर रहना जरूरी होता है इसका मतलब।डॉक्टर ने भी यही कहा,अच्छा है,आप समय रहते आ गए नहीं तो मुश्किल हो जाती।

वो प्यार से क्षितिज को देख रही थी,”ये मेरी जिंदगी का वरदान है भगवान की तरफ से,कितनी फिक्र करता है मेरी!क्या हुआ जो पति नहीं समझते,भाई की आंख की मैं किरकिरी हूं पर कोई तो है जो मेरा बेटा होकर भी मेरे पिता की तरह मेरी देखभाल करता है।”

समाप्त

 डॉक्टर संगीता अग्रवाल

वैशाली,गाजियाबाद

#पुरुष

2 thoughts on “वरदान – डॉ संगीता अग्रवाल : Short Stories In hindi”

  1. बहुत बढ़िया कहानी 👍 काश! सब बेटे ऐसे निकलें।

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