संकीर्ण मानसिकता-हेमलता गुप्ता: short stories in hindi

    कहने को तो आज महिलाओं और पुरुषों की समानता की कितनी ही बातें की जाती है! पर क्या पुरुषों की संकीर्ण मानसिकता औरतों के प्रति बदल पाई है! सदियों से पुरुष महिलाओं पर अपना एकाधिकार समझता आया है ,और वर्तमान समय में भी बह इससे पूरी तरह मुक्त नहीं हो पाया है !

कुछ अपबादो को छोड़ दे, तो आज भी पुरुष महिलाओं को अपने बराबर का दर्जा देने में अपनी तोहीन समझता है! वह एक पिता, पति और बेटे का  चरित्र निभाते हुए भी इस दमनकारी रूप से बाहर नहीं आ सका है! अगर महिला पुरुष की हां में हां मिला दे तो उसका जीवन सफल है अन्यथा उसका जीवन नरक के समान है!

             नयन और निशा कानून की पढ़ाई करते-करते कब करीब आ गए उन्हें पता ही ना चला! निशा एक आधुनिक विचारों वाली  लड़की थी! निशा के पापा ने उसे हर मुश्किल घड़ी में हिम्मत से लड़ना सिखाया था!

इसी कारण निशा कॉलेज में वाद विवाद में हमेशा अब्बल आती थी! नयन को निशा का दबंग और आधुनिक रूप बहुत भाता था! 1 दिन कॉलेज के विदाई समारोह में नयन ने निशा को अपने प्रेम की बात जिस अंदाज में कहीं निशा उसे मना ना कर सकी!

कुछ समय बाद दोनों ही हाईकोर्ट में प्रैक्टिस करने लगे! और जब उन्हें लगा कि अब वह अच्छी तरह से क्षेत्र में स्थापित हो चुके हैं तो उन्होंने घरवालों की रजामंदी से शादी कर ली! धीरे-धीरे निशा अपनी मेहनत और लगन के बलबूते पर बहुत अच्छी वकील के रूप में प्रतिष्ठित होने लगी!

शुरू शुरू में तो नयन निशा की तरक्की देकर खुश होता रहा ,किंतु कुछ समय बाद उसे लगने लगा, निशा के सामने उसका अपना कोई वजूद नहीं है! निशा की गिनती अब शहर के जाने-माने लोगों में होने लगी! शहर के बड़े-बड़े केस अब निशा के पास ही आते थे!

  एक बार एक नाबालिग के दुष्कर्म का मामला सामने आया! पक्ष और विपक्ष में निशा और नयन ही थे ! पक्ष में निशा और विपक्ष में नयन इसकी पैरवी करने वाले थे! निशा इस केस में इस बार मानसिक रूप से जुड़ गई और उसकी पूरी सहानुभूति उस पीड़िता के साथ थी!

शुरू से ही निशाने हमेशा अन्याय के खिलाफ आवाज उठाई थी! अब वह आरोपियों को कड़ी से कड़ी सजा दिलाना चाहती थी! उधर नयन भी इस केस में कड़ी मेहनत कर रहा था! नयन को लेकिन यह भी पता था ..ऐसे मामलों में अधिकांशतः न्याय पीड़ित पक्ष की और ही होता है

..अतः वह निशा के ऊपर दवाब बनाने लगा कि…. या तो वह केस से हट जाए अथवा वह इस केस को इस तरह प्रस्तुत करें कीउसका प्रार्थी इस आरोप से बाइज्जत बरी हो जाए! यह सुनकर निशा का खून खौल उठा!

निशाने इस बात से इनकार कर दिया!  नयन के स्वाभिमान को गहरी चोट पहुंची !वह निशा के मना को नहीं पचा पाया था! जिस नयन को शादी से पहले निशा का दबंग और निर्भीक रूप पसंद आता था –वही आज उसे चुनौती दे रहा था!

वह लगातार निशा को उसके सामने झुकने के लिए मजबूर कर रहा था! और अंत में दोनों की बातचीत विवाद में बदल गई! निशा के केस से नहीं हटने पर नयन के अहम को धक्का पहुंचा और उसने निशा के ऊपर हाथ उठा दिया!

पर पता नहीं क्यों उस समय निशा इसका विरोध नहीं कर पाई बस गुस्से में रो कर रह गई! मन तो कर रहा था उसका कि वह  नयन की गालियों और थप्पड़ का जवाब उसी की भाषा में दे पर वह यह नहीं कर पाई! इधर नयन इसे अपने पुरुषोंचित् दंभ की जीत मान रहा था!

उसे लगने लगा इसी तरह से वह निशा पर जीत हासिल कर सकता है! किंतु निशा के मन में नयन के प्रति नफरत होने लगी! कोर्ट की सुनवाई में आज निशाने पूरी ताकत झोंक दी और जीत का परिणाम निशा के पक्ष में आया! एक बार फिर पूरा कोर्ट तालियों की आवाज से गूंज उठा!

निशाने अब नयन जैसे दंभी पुरुष से अपने आप को आजाद करने के लिए तलाक की अर्जी दे दी !और हमेशा के लिए नयन को छोड़ एक स्वतंत्र दुनिया में आ गई! नयन निशा के सामने काफी गिडगिडाया किंतु निशा ने उसकी तरफ देखा ही नहीं!

निशा के सामने उसका सुनहरा भविष्य खड़ा था जहां उसे किसी पुरुष की प्रताड़ना नहीं सहनी पड़ेगी! वह आज की औरत है जमाने के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने की हिम्मत रखती है! वह सोच रही थी पुरुष पुरुष में भी कितना अंतर होता है!

पिता के रूप में पिता ने उसे पूरी आजादी दी.. स्वतंत्र आसमान दिया! उड़ने के लिए पंख दिए ,किंतु एक पुरुष जब पति बना तो उसने उसके पर काट देने चाहे !

हर पुरुष समान नहीं होता!   जिस समाज में महिलाओं को अपनी मर्जी के कपड़े तक पहनने का अधिकार नहीं मिल पाता वह समाज पुरुष सत्तात्मक समाज ही कहलाता है! कहीं-कहीं पुरुष बड़े दिलवाले होते हैं किंतु अधिकांश  पुरुष संकीर्ण मानसिकता वाले ही होते हैं, जो औरतों की उन्नति को बर्दाश्त नहीं कर सकते!  

हेमलता गुप्ता

स्वरचित

#पुरुष

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