शारदा – अंकित चहल ‘विशेष’

मम्मी, उठ जाओ ! ‌मम्मी, उठो, कहता और ज़ोर ज़ोर से रोने लगता, ऐसा विलाप और क्रंदन सुनकर, पत्थर दिल ‌वालों की भी आँखें भर आईं। एक 6से 7 साल का लड़का, अपनी ‌मृत माँ के साथ लिपटकर, उसे जीवित करने का असफल प्रयास कर रहा था।

     लेकिन ‌जाने वाले कभी वापिस नहीं आते, उस लड़के की माँ जीवन के सारे झंझावातों और कोलाहलों से मुक्त होकर, अनंत शांति ‌की तरफ प्रस्थान ‌कर चुकी ‌थी ।

मेरठ जिले के एक छोटे से गांव के बहुत छोटे घर में जन्मीं शारदा बहुत ज़िंदादिल लड़की थी। सात बहन भाईयों में, वह पांचवें नम्बर पर थी । पढ़ाई में होशियार होने के बावजूद भी, आठवीं कक्षा में पढ़ाई छोड़नी पड़ी, क्योंकि उसके पिता पढ़ाने या भरण-पोषण में से केवल एक कार्य कर सकते थे । शारदा का विवाह ‌ग़रीब माँ-बाप ‌ने‌ अपनी हैसियत से ‌बढ़कर‌ किया था, लेकिन ‌न जाने क्यों सुसराल पक्ष को ख़ास पसंद नहीं आया था । जिस लड़के को ‌शारदा ने‌ पति परमेश्वर माना था, वही लड़का आय‌ दिन ‌मारपीट करने ‌लगा‌ था । अभी उसी दिन की बात ले लो, शारदा के मरने से एक माह पहले की बात है, सुबह आठ बजे दोनों बच्चों को तैयार करके स्कूल भेज दिया था उसने, अब पति जी के लिए भोजन बना रही थी । पति नहाकर आया – शारदा मेरे मौजे कहाँ है? और मेरे जूते साफ कर दे ! अजी मैं आपका टिफिन लगा रही हूँ। जूतों के पास कपड़ा रखा है कर लीजिए साफ, शारदा ने इतना ही कहा था, यह सुनते ही उसका पति गुस्से में लाल पीला होकर बोला – साली तुझे किसलिए लाया हूँ, तू जूते भी साफ नहीं कर सकती, तू सारा दिन करती क्या है‌? शारदा फटाफट टिफिन छोड़कर आयी, अजी गुस्सा क्यों करते हो, मैं कर रही हूँ जूते साफ, ऐसा कहकर शारदा जूते साफ करने लगती है ।

पति के तैयार होने से पहले ही, वह खाने की प्लेट उसके सामने रख देती है, पति तैयार होकर खाना खाने बैठ जाता है और पहली कोर मुँह में डालते ही चिल्ला कर बोलता है- पागल औरत , तुझे समझ नहीं आता है, तुझे कितनी बार बोला है कि नमक कम डाला कर , तेरे ध्यान कहाँ रहता है, दो थप्पड़ अभी तेरे मुँह पर लग गये ना, तो दिमाग सही हो जायेगा तेरा ।

शारदा ने हिम्मत दिखाते हुए कहा – आज तो नमक सही है‌ जी। अब खाना भी तेरे स्वाद से खाना पड़ेगा मुझे, पति झल्लाकर बोला । शारदा चुप होकर किचन ‌में चली जाती है। क्योंकि उसने बचपन से ही सीखा था कि सौ बातों का जवाब एक चुप्पी होती है । शारदा के लिए अब यह सब सामान्य दिनचर्या का हिस्सा ‌बन‌ चुका था ।



अभी दो दिन सामान्य गुजरे होंगे कि तीसरे रोज‌ ही रात को शारदा का पति शराब के नशे में आता है और शारदा से खाना मांगता है। शारदा कहती है- अभी पांच मिनट रूको जी, खाना गर्म करके ला रही हूँ। खाना पतिदेव को देकर शारदा पलंग पर लेट जाती है और उसकी आँख लग जाती है। पति पानी मांगता है- ऐ शारदा पानी दे , पानी दे शारदा, लेकिन दो तीन बार पानी मांगने के बाद, शारदा की तरफ से कोई ‌प्रति उत्तर नहीं मिलने पर पति गुस्से से भर जाता है।साली मैं तुम लोगों के लिए इतना कुछ करता हूँ और तू मुझे पानी भी नहीं देती ऐसा कहकर, नशे की हालत मे ही बेल्ट निकालकर शारदा ‌को मारना शुरू कर देता है। मारपीट और  शोर शराबा सुनकर बच्चे भी जाग जाते हैं और अपनी माँ को बचाने के लिए ‌माँ से लिपट जाते हैं। बच्चों को माँ से ‌लिपटा देखकर पति को और अधिक गुस्सा आ जाता है। सालो‌ पिल्लों, तुम्हें मुझ से ‌ज्यादा इस औरत से प्यार है, निकलो‌ अभी के अभी मेरे घर से, ऐसा कहकर ‌शारदा का पति , शारदा और बच्चों को रात में ही साढ़े बारह बजे घर‌ से निकाल देता है।

शारदा रोते हुए बच्चों के साथ मुख्य मार्ग पर आकर वाहन ‌देखने लगती है, काफी देर ‌के बाद उन्हें एक आॅटो मिल जाता है और डरी सहमी शारदा उससे मदद की गुहार लगाती ‌है, तो‌ वह  आॅटो वाला उन तीनों को शारदा के गाँव के बाहर छोड़ आता है ।

रात में पौने ‌तीन बजे शारदा अपने ‌भाई का दरवाजा ‌खटखटाती है, इस वक्त शारदा ‌और‌ बच्चों को देखकर भाई का परिवार भौंचक्का रह जाता है। माँ बाप के गुजरने के बाद एक बस ये ही भाई , शारदा की खैर ख़बर रखता था, बाकी पांचों भाई अपने ही परिवार में मग्न रहते थे ।

सुबह उठकर शारदा ने अपने भाई को सारी बात बताई और बोली- बता भाई , मेरे पास और क्या चारा था । शारदा की सारी कहानी सुनने के बाद भाई बोला – बहन तुम्हें यहाँ ‌जब तक रहना है ‌रहो, लेकिन तुम्हारा गुजारा, वहीं से है । बाकी मैं बड़े भाइयों से बात करके देखता हूँ कि उनकी क्या राय है  ।

छोटे भाई ने बड़े भाइयों से बात की तो वो लोग बोले – अब हम अपने बच्चों के विवाह शादी के बारे ‌में ना सोचें? या इसके ही लड़ाई झगडे सुलझाते रहें।

चार पांच दिन तो किसी तरह गुजर जाते हैं, लेकिन शारदा को भाइयों और भाभियों का व्यवहार बदला बदला सा लगने लगता इसलिए वह वापिस सुसराल जाने का निर्णय करती है, और अगले दिन सुबह दोनों बच्चों को लेकर चली जाती है। वहाँ पहुंचते ही पति ताना मारकर कहता है – आ गयी महारानी, तेरे छः ‌भाइयों में इतना भी गुर्दा नहीं है कि तुझे कुछ दिन अपने ‌पास रख लेते । इस दुनिया ‌में मेरे सिवा तुम लोगों का कोई नहीं है, देख लिया ना, निकल गई हेकड़ी । चल अंदर जा , और एक कप बढ़िया सी चाय बनाकर ला ।



शारदा भारी मन से अपने काम में जुट जाती है। मानसिक थकान और घर के काम की वजह से शाम को शारदा को बुखार आ जाता है। वह अपनी बेटी गुड्डो को बुलाकर कहती है – गुड्डो, ये ले 30 रूपए और जाओ , मेडिकल स्टोर वाले अंकल से कहना कि मम्मी को बुखार और सर दर्द है, दवा लेकर आओ ।

गुड्डो अपनी माँ के कहे अनुसार उसको दवाई लाकर दे देती है। लेकिन ‌दो‌ तीन दिन बाद दोबारा ‌शारदा की तबीयत ख़राब हो‌ जाती है। वह फिर ‌गुड्डो को भेजकर‌ दवा मँगवा लेती है । तीसरी बार तबीयत बिगड़ने पर शारदा अपनी सुध बुध खो देती है, बच्चे अपनी माँ की स्थिति देखकर पड़ोस वाली आंटी को बुलाकर लाते हैं- आंटी, देखो ना, मम्मी को क्या हो गया है, कुछ बोल नहीं रही है। पड़ोस की महिला स्थिति को भांपकर शारदा के पति को फोन करके बताती है- भाई साहब, शारदा की तबीयत ज्यादा ख़राब है, वह कुछ बोल ही नहीं रही है, आप जल्दी आ जाइए । शारदा का पति कहता है – भाभी आप कुछ देर वहीं रूकिए, मैं आ रहा हूँ, ऐसा कहकर फोन काट देते है। जब तक पति घर आता है, शारदा की तबीयत और अधिक बिगड़ जाती है। शारदा को हाॅस्पिटल में एडमिट कराया जाता है, जहाँ डाॅक्टर उसे आईसीयू में रखते हैं और उसके कोमा में जाने की‌ जानकारी उसके पति को देते हैं। शारदा का पति वहीं सर पकड़कर बैठ जाता है। रात में शारदा का बेटा उठता है और  मम्मी, मम्मी कहते हुए रोने लगता है। पड़ोस वाली आंटी उसे ख़ूब सुलाने का प्रयास करती है लेकिन लड़के को नींद नहीं आती है और वह बस एक रट लगाए रखता है कि उसे मम्मी के पास जाना है, क्योंकि आज तक वह अपनी माँ के बिना एक दिन भी नहीं रहा ।

अगली सुबह शारदा की तबीयत ज्यादा बिगड़ी जाती है और डाॅक्टर उसे दिल्ली के लिए रेफर कर देते हैं।

शारदा के भाई दो बाद उसे देखने के लिए हाॅस्पिटल पहुँचते हैं, वो भी खाली हाथ, जबकि शारदा के पति को आशा थी कि छः भाई मिलकर कुछ तो मदद अवश्य करेंगे । लेकिन उन लोगों को ऐसे देखकर शारदा का पति उन्हें हाॅस्पिटल से भगा देता है।

अगले दिन मदर्स डे होने के पर  दोनों बच्चों अपनी माँ से मिलने की जिद पकड़ लेते हैं कि हमें मम्मी के पास जाना है तो जाना है। हमें मम्मी के पास ले चलो और रोने लगते हैं। बच्चों की ज़िद से मजबूर होकर, दोनों बच्चों को हाॅस्पिटल ले जाया जाता है। शारदा का लड़का उसके पास एक कागज़ रखकर शारदा को पकड़कर रोने लगता है। बड़ी मुश्किल से दोनों बच्चों को वापिस घर लाया जाता है। जब डाॅक्टर विजिट पर आते हैं और शारदा के पास रखें कागज़ को उठाकर पढ़ते हैं, तो वहाँ उपस्थित सबकी आँखें सजल हो उठती हैं। कागज पर लिखा होता है – हैप्पी मदर्स डे मम्मी, आई लव यू मम्मी। आप इस दुनिया की सबसे अच्छी मम्मी हो, जल्दी ठीक होकर आ जाओ, मुझे तुम्हारे बिना नींद नहीं आती और रात में बहुत डर लगता है। मैं अब दीदी को भी परेशान नहीं करता । अब मैं अच्छा बच्चा बन गया हूँ।

डाॅक्टर बत्रा बच्चे का लेटर पढ़कर अपने इमोशंस कंट्रोल नहीं कर पाते और अपने केबिन में आकर बहुत रोते हैं क्योंकि उन्हें पता चल गया था कि आज का दिन शारदा का आख़िरी दिन है।

~ अंकित चहल ‘विशेष’

 

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