Moral stories in hindi :
सोमवार की सुबह थी।अचानक से फोन की घंटी बजी। गरिमा ने फोन उठाया। वह काफी देर तक हैलो हैलो बोलती रही। अरे भाई कौन है? जवाब तो दो, गरिमा ने कहा।
अरे भाई किसका फोन है? मुझे ऑफिस के लिए लेट हो रहा है, जल्दी करो। गरिमा के पति आशीष ने कहा।
पता नहीं आशीष किसका फोन है? कोई जवाब नहीं दे रहा। यह कहकर उसने फोन रख दिया और अपने काम में व्यस्त हो गई।
आशीष और गरिमा की शादी को अभी कुछ ही दिन हुए थे और दोनों खुशी खुशी अपनी जिंदगी व्यतीत कर रहे थे। दोपहर में अचानक से फिर घंटी बजी। इस बार गरिमा की सास ने फोन उठाया। उसने भी वही सवाल किया कि कौन बोल रहा है? पर दूसरी तरफ से किसी ने कोई जवाब नहीं दिया। गरिमा की सास नीलिमा जी हैलो हैलो करती रही पर कोई जवाब ना आने की वजह से उन्होंने भी फोन रख दिया।
नीलिमा जी ने गरिमा से पूछा किसका फोन हो सकता है? गरिमा ने कहा, पता नहीं मांजी किसका फोन है? सुबह ऐसा ही एक अनजान फोन कॉल आया था। मैंने उठाया पर दूसरी तरफ से किसी ने कोई जवाब नहीं दिया तो मैंने रख दिया।
अगले ही दिन से तो अनजान फोन कॉल्स का तो जैसे सिलसिला ही चलने लगा। फोन कॉल आते ही जैसे ही कोई फोन उठाता परंतु दूसरी तरफ से कोई आवाज ना आने की वजह से परिवार के लोग फोन रख देते।
अब यह फोन कॉल एक चिंता का विषय बन चुका था। एक दिन सुबह सुबह फिर फोन की घंटी बजी। गरिमा ने फोन उठाया और हैलो हैलो बोल कर रख दिया। कभी अचानक से गरिमा की सास नीलिमा जी बोली। आजकल का तो जमाना बहुत ही खराब है। पता नहीं यह हर रोज़ फोन कौन कर रहा है? आशीष जरा संभल के, पता तो कर कहीं यह फोन कॉल इसके पुराने यार का तो नहीं। नीलिमा जी ने गरिमा की तरफ इशारा करते हुए कहा। क्या पता कॉलेज का पुराना प्यार वापस जाग गया हो। हमने कौन सा शादी के वक्त इसकी और उसके पूरे परिवार की जानकारी हासिल की थी। तुझे ही इश्क का भूत सवार था, अब भुगत बैठ कर।
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नीलिमा जी की इस तरह की कड़वी बातें सुनकर गरिमा की आंखों से आंसू छलक आए। उसने अपनी सास को बोला मम्मी जी यह आप क्या कह रही हैं? आप ऐसे कैसे सोच सकती हैं? मैं इस घर की बहू हूं, इसका मतलब यह नहीं है कि आप जो मर्जी कुछ कहें। मेरा भी स्वाभिमान है, मेरी भी कुछ इज्जत है। मैंने कभी भी ऐसा कोई काम नहीं किया है जिसे इस परिवार की इज्जत पर आंच आए। आप भूल रही हैं इस घर में एक बेटी भी है जो कि कॉलेज में पढ़ती है। हो सकता है यह फोन कॉल्स संध्या के लिए आ रहे हों?
नीलिमा जी ने कड़क आवाज में कहा यह फोन मेरी बेटी के लिए नहीं हो सकता। मेरी बेटी इस तरह की नहीं है। उसका किसी के साथ कोई चक्कर वक्कर नहीं है।
तो क्या मै इस तरह की हो सकती हूं? आप बिना जांच पड़ताल किए मुझ पर शक कर इल्जाम कैसे लगा सकती हैं? यह कहकर गरिमा अपने कमरे में रोती रोती चली गई।
आशीष भी उसके पीछे-पीछे उसको मनाने चला गया। शाम को फिर से एक फोन कॉल आया। नीलिमा जी ने फोन उठाया। इस बार फोन से आवाज आई। मैं दीपक बोल रहा हूं आंटी। संध्या है? अनजान लड़के के मुंह से अपनी बेटी का नाम सुनते ही जैसे नीलिमा जी के पैरों तले जमीन खिसक गई हो। उसे अपने कहे गए शब्द याद आ रहे थे। किस तरह से उन्होंने आज अपनी बहू और बेटी में फर्क किया। बहू को शक की नजर से देखा।
उन्होंने तुरंत फोन काटा और अपनी बहू के कमरे में गई। उन्हें अपनी गलती का अहसास हो गया था। बहू मुझे माफ़ कर दो, आज के बाद मैं कभी भी बहू और बेटी में कोई फर्क नहीं करूंगी और सास ने बहू को गले लगा लिया।
#शक
ज्योति आहूजा