Moral Stories in Hindi : मैं तुम तीनों भाई बहनों को कोई सफाई नही देना चाहता की मैं पैंसठ साल की उम्र में एक बेटी की मां से शादी क्यों की.. तुम लोगों की बहुत बदनामी हो रही है.. उसकी चिंता है तुम्हे..
पैंसठ साल की उम्र में शादी करना तुम लोगों की नजरों में गुनाह है पर विधुर पिता के लिए वक्त निकालना तुम्हारा कर्तव्य नहीं है … तुमलोग के सोच के अनुसार मुझे तुम्हारी मां की चिता में खुद को भी जला लेना चाहिए था…अब तुम लोग जा सकते हो… नरेंद्र राय ने गंभीर स्वर में कहा… बेटी नेहा और दोनो बेटे कमल और बिमल धीरे धीरे कमरे से बाहर आ गए…
और नरेंद्र राय अपने साथ काम करने वाले बचपन के दोस्त सहपाठी रामचंद्र जी के पास जी हल्का करने के लिए चले गए.. वहां भी मन नहीं लगा तो वापस अपने कमरे में आ गए.. दूसरी पत्नी इंदु बेटी शुभा के साथ आज रात की ट्रेन से आने वाली थी..
पहली पत्नी सीता बरबस याद आ गई और आंखों से आसूं लुढ़क कर गालों पर आ गए…
कितने खुश थे हम.…तीन बच्चे और वो भी अपने कैरियर में सेटल.. सबसे बड़ी नेहा स्कूल में टीचर थी और उसका पति रेलवे में इंजीनियर था..कमल जिस कॉलेज में मैं प्रोफेसर पद से रिटायर हुआ उसी कॉलेज में लेक्चरर, बिमल एलआईसी में डीओ…
रिटायर होने के दो साल पहले सीता की तबीयत खराब रहने लगी थी.. कमल की शादी की बात उसके साथ हीं काम करने वाली लड़की तनुजा के साथ छः महीने पहले हीं फाइनल हो गई थी…कमल के पसंद को माता पिता के सहमति की मुहर लग गई थी.. सीता को लोकल डॉक्टर को दिखाया तो दो तीन टेस्ट लिखा.. पंद्रह दिन बाद रिपोर्ट आई..कैंसर का लास्ट स्टेज .. जैसे जिंदगी ठहर सी गई.. भूचाल आ गया नरेंद्र जी की जिंदगी में.. कैसे जिएंगे सीता के बिना.. मां की इच्छा थी बहु घर में आ जाए… बहु उतार लूं..कमसे कम मेरे नही रहने पर सबका ख्याल तो रखेगी..शुभ मुहूर्त देखकर कमल की शादी संपन्न हो गई. बहु घर आ गई..पत्नी के चेहरे पर संतोष और खुशी देख नरेंद्र जी की आंखें भर आई.. मुंबई ले जाने से भी कोई फायदा नही हुआ.…इस उम्र में ये वज्रपात असहनीय था नरेंद्र जी के लिए.. अंतिम समय में तीनों बच्चों से मां ने वादा लिया अपने पापा का पूरा ख्याल रखेंगे..
कुछ दिन नरेंद्र जी का ख्याल सबने अच्छे से रखा.. फिर बहु ने अपने हिसाब से गृहस्थी संभाल ली.. कुक आने लगी खाना बनाने के लिए..
समय से आती खाना बना कर डाइनिंग टेबल पर हॉट केस में रखकर चली जाती.. चाय पीने की इच्छा होती तो कहीं बाहर जाकर पीना पड़ता..कुक को बहु का आदेश था उसी के मेनू से सब कुछ बनेगा.. बारिश के मौसम में गरम पकौड़े और चाय की तलब होती पर पूरा करने वाली सीता कहां थी..बेटा बहु कॉलेज से कहीं बाहर घूमने चले जाते कभी मूवी देखने..रात का खाना अक्सर खा कर आते.. कभी इच्छा होती बेटे के साथ बैठकर बात करें जैसे हीं उसके कमरे की ओर जाते आहट सुनते हीं बहु पर्दे खींच दरवाजा बंद कर देती.. पापा सबको अपनी प्राइवेसी प्यारी होती है और थोड़ा रिश्ते में स्पेस भी जरूरी है..
छोटा बेटा बिमल जब ऑफिस का काम खतम हो जाता तो अपने दोस्तों के साथ टाइम बिताता कभी अपनी प्रेमिका मानवी से मिलने उसके शहर चला जाता… तरस के रह जाते नरेंद्र बाबू अपने बच्चों के साथ दो पल बिताने के लिए.. सीता की बहुत याद आती और आसुओं से तकिया गिला हो जाता..
बिमल कोर्ट मैरिज कर मानवी के शहर में अपना तबादला करवाकर चला गया.. पिता बेबस देखते रह गए.. दोस्तों के पास जाकर समय बिताते नरेंद्र बाबू.. एक दिन एक दोस्त ने मजाक में हीं कहा मेरी पत्नी कहती है नरेंद्र बाबू के साथ कम हीं रहो इनके लक्षण ठीक नहीं हैं कहीं तुम्हारा भी यही हस्र न हो.. एक सम्मिलित ठहाका गूंज उठा.. और नरेंद्र जी तड़प के रह गए.. वहां भी जाना छोड़ दिया.. कितना टीवी देखते.. कुछ खाने की इच्छा होती तो उसको भी मारना पड़ता.. अकेलापन की मार से घायल नरेंद्र जी #तिनके का सहारा #ढूंढ रहे थे..
शहर में मलेरिया का प्रकोप बढ़ा हुआ था.. जिसके शिकार नरेंद्र बाबू हो गए.. बुखार 104 पहुंच जाता बार बार सीता सीता करते.. प्यास लगती पर पानी कौन देता.. बेटा बहु अपने कमरे में.. इसी बुखार में कमजोरी के कारण एक रात बाथरूम में गिर गए.. पैर टूट गया.. पैसे की कमी नहीं थी.. अच्छा खासा पेंशन मिलता था.. तीनों बच्चों ने अपना जान छुड़ाते हुए समझदारी से फैसला लिया और पटना के बड़े प्राइवेट नर्सिंग होम में एडमिट करवा अपना कर्तव्य पूरा किया..
देखरेख के लिए फूल टाइम नर्स रखा गया.. दो महीने रहना पड़ा हॉस्पिटल में ऑपरेशन कर रॉड लगा पैर में.. और इन दो महीनों में बहुत कुछ बदल गया.. लगभग चालीस साल की नर्स इंदु विधवा थी एक बेटी की मां थी.. ससुराल वालों ने पति की मृत्यु के बाद घर से निकाल दिया था.. मायका भी साधारण हीं था… मां बेटी का गुजारा बहुत कष्ट से हो रहा था.. भाई की आमदनी भी कम थी और पांच बच्चे मां बाप की जिम्मेदारी.. भाभी अक्सर बुरा भला कहती इंदु और उसकी बेटी शुभा को.. बच्ची को मनहूस कहती तो इंदु का कलेजा छलनी हो जाता.. शुभा तेरह साल की हो गई थी .. सरकारी स्कूल में नाम तो लिखाया था इंदु ने पर भाभी घर के काम करने के लिए आई शुभा को अक्सर स्कूल नहीं जाने देती..इंदु के सामने जब शुभा रोकर मामी के बुरे बर्ताव के बारे में बताती तो इंदु का कलेजा फट जाता..पर अकेली औरत एक बेटी के साथ कहीं और रहती तो दरिंदों से कैसे बचाती खुद को और बेटी को..नरेंद्र बाबू के लिए इंदु और इंदु के लिए नरेंद्र बाबू #तिनके का सहारा #बन गए थे.. इन दो महीनों में इंदु की निः स्वार्थ सेवा और उसके दुःख ने नरेंद्र बाबू को बहुत कुछ सोचने पर विवश कर दिया.. उन्होंने डिस्चार्ज होने के बाद इंदु से शादी कर शुभा को गोद लेने की प्रक्रिया शुरू कर दी… दुखियारी मां और बेटी के लिए नरेंद्र बाबू# तिनके का सहारा बन गए और नरेंद्र बाबू के लिए भी ये दोनो मां बेटी… पेंशन के पैसे बहुत हैं हम तीनों के लिए.. शुभा पढ़ लेगी.. मेरी भी उम्र बढ़ रही है.. इस बार मलेरिया होने और पैर टूटने पर अपने बच्चों का व्यवहार देख मैं आज की हकीकत से वाकिफ हो गया हूं.. मुझे भी अब सहारे की जरूरत है भले हीं वो #तिनके का सहारा #क्यों ना हो..
मुझे भी अब सहारे की जरूरत है.. मैं शुभा और इंदु के सुरक्षित भविष्य के लिए ठोस कदम उठाऊंगा…
#स्वलिखित सर्वाधिकार सुरक्षित #
Veena singh